सीताराम गुप्ता
क्या आप किसी ऐसे स्थान की कल्पना कर सकते हैं जहाँ पर प्रसिद्ध बाँसुरीवादक पन्नालाल घोष की बाँसुरी, केशवराव भोले का खोल, मधुकर गोलवलकर की तार शहनाई, पी.एल.देशपांडे का सारिंदा, हीराबाई बड़ोदकर, सुरेशबाबू माने तथा पं. डी.वी. पलुस्कर के तानपुरे, उस्ताद क़ादरबख़्श खाँ की सारंगी, ग्वालियर के बंदे अली ख़ान की बीन, पाकिस्तानी ठुमरी और गजल गायक उस्ताद नजाकत अली व सलामत अली के तानपुरे तथा उस्ताद अल्ला रखा खाँ का तबला एक ही स्थान पर रखे हों? पुणे के राजा दिनकर केलकर संग्रहालय में उपरोक्त सभी उस्ताद कलाकारों के वाद्ययंत्रा एक जगह पर रखे हैं। विभिन्न राग-रागनियों के चित्रा भी यहाँ टंगे हैं।
राजा दिनकर केलकर संग्रहालय के अंतिम भाग में परिचय होता है संगीत की इसी दुनिया से। यहाँ अनेक वाद्ययंत्रा प्रदर्शित हैं। इन वाद्ययंत्रों की सबसे बड़ी विशेषता है इनकी बनावट तथा उस्ताद संगीतकारों द्वारा इनका प्रयोग। यहाँ जो तानपूरा रखा है वह सवाई गंधर्व का है तथा साथ ही उनके कपड़े भी प्रदर्शित हैं। बाल गंधर्व का तंबारो नामक वाद्य रखा है तो उनका प्रयोग किया जाने वाला सरौता भी बराबर में रखा है। पं. पटवर्धन का सतार भी यहीं पर देखा जा सकता है।
प्रदर्शित अन्य वाद्ययंत्रों में दक्षिण भारत का नंदुनी, सुरबहार, गोटुवाद्यम, लकड़ी का बना स्वरमंडल, मगरयाज़्ा, विल्लाडीयाजा, वायलिन, द्विदंड़ी तथा त्रिदंडी तंबूरा, जनजातीय तंबूरा तथा लकड़ी का बना शंकु के आकार का तंबूरा व रबाब प्रमुख हैं। महाराष्ट्र का लकड़ी का बना सर्पाकृति तंबूरा भी है तथा साथ ही तुणतुणे नामक वाद्ययंत्रा भी। अनेक प्रकार की सारंगियाँ हैं तथा कश्मीरी वाद्य संतूर या शततंत्राी भी जो काष्ठ द्वारा निर्मित है। एच.एम.वी. कम्पनी के दो ग्रामोफोन भी यहाँ प्रदर्शित किये गए हैं।
संग्रहालय में कई ऐसे वाद्ययंत्रा भी रखे हैं जो अपनी बनावट तथा सामग्री के हिसाब से विचित्रा कहे जा सकते हैं। बंगाल में निर्मित काँच के खोल का ढोलक तथा अफ्रीका का जेब्रे की ख़ाल से मढ़ा हुआ ड्रम ऐसे ही विचित्रा वाद्य हैं। विभिन्न प्रकार के ढोलक, घटम, तिमिला, संबल, पंबई, डमरू, पुष्करम, किनीकिट्टी, मोंडाई आदि वाद्यों के अतिरिक्त कुंदलम्, घुंघरू, गुमट्टई, घंटा, मंजीरे, पखावज व हारमोनियम आदि वाद्य भी रखे हैं।
मकरवीणा, मयूरवीणा, रूद्रवीणा, सरस्वतीवीणा, विचित्रावीणा, नारायणवीणा आदि अनेक प्रकार की वीणाओं के अतिरिक्त एक ऐसी वीणा भी है जो शुतुरमुर्ग के अण्डे के खोल से बनाई गई है। कच्छपवीणा का आकार कछुए जैसा है। आदिवासी मेंडोलिन, बुलबुल, पाइपफोन जैसे वाद्य हैं तो शंखवाद्य, नागस्वरम्, मूगवीणा, शहनाई, सूर, कहाली तथा बीन जैसे वाद्य भी हैं। गोटुवाद्यम् है तो पंचमुखवाद्यम् भी है जिसमें पाँच तबले जैसे वाद्य एक साथ रखे हैं।
यह तो संग्रहालय का मात्रा एक भाग है। संग्रहालय को देखते-देखते थककर चूर हो जाते हैं फिर भी संग्रहालय को एक बार और देखने का मन करता है। यह संभव नहीं होता लेकिन एक बार इस संग्रहालय को देखने के बाद कौन है जो इसे बार-बार देखने की इच्छा नहीं करेगा? अगली बार जब भी महाराश्ट्र में मुंबई, शिरड़ी अथवा अजंता-ऐलोरा जाने का कार्यक्रम बने पूना अर्थात् पुणे जाने का कार्यक्रम भी अवश्य बनाएँ और राजा दिनकर केलकर संग्रहालय में संजोई गई विभिन्न कलाकृतियों का अवलोकन करें।
(उर्वशी)