जनजाति मंच ने मुख्य राजनीतिक दलों को सौपा ज्ञापन, विधानसभा चुनाव में धर्मान्तरित एसटी सुरक्षित क्षेत्र से न दें टिकट

जनजाति मंच ने मुख्य राजनीतिक दलों को सौपा ज्ञापन, विधानसभा चुनाव में धर्मान्तरित एसटी सुरक्षित क्षेत्र से न दें टिकट

रांची/ शनिवार को जनजाति सुरक्षा मंच के जिला संयोजक हिंदूवा उरांव के नेतृत्व में झारखंड प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों के प्रदेश अध्यक्षों को ज्ञांपन सौंपा, जिनमें मंच ने मांग की है कि वे धर्मांतरित आदिवासियों को सुरक्षित सीट से अपना उम्मीदवार न बनावें।

मंच ने इस संदर्भ का ज्ञापन भाजपा प्रदेश अध्ययक्ष बाबूलाल मरांडी, जेएमएम अध्यक्ष शिबू सोरेन, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर, राष्ट्रीय जनता दल प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह यादव को दिया है।

ज्ञांपन में मुख्य रुप से आगामी विधानसभा मे अनुसूचित जनजातियों हेतु आरक्षित सीट पर धर्मान्तरित जनजाति व्यक्ति को प्रत्याशी नहीं बनाने के संबंध दिया गया। ज्ञापन में आगे कहा गया है कि जनजाति सुरक्षा मंच की राँची जिला ईकाई जनजाति सुरक्षा के लिए विगत 18 वर्षों से यह प्रयास कर रहा है।

ज्ञापन में कहा गया है कि अनुसूचित जनजाति समुदायों के धर्मान्तरित लोगों को जनजाति का सदस्य नहीं माना जाए, एसटी की सूची से हटाया जाए। ठीक वैसे ही जैसे अनुसूचित जाति एससी के संवैधानिक प्रावधान है।

आगे कहा गया है कि जनजातियों के उन लोगों को, जिन्होंने/जिनके पुरखों ने अपनी परम्परागत धर्म-संस्कृति, रूढ़ि प्रथा को छोड़कर धर्मांतरण करके अन्य धर्म जैसे ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया हो वैसे व्यक्ति या समूह के लोग जनजाति समुदाय के सदस्य नहीं रहे।

जनजाति समुदाय से शादी-विवाह कर जनजाति का आरक्षण का लाभ लेकर अपने पत्नियों को खड़ा कर रहे हैं। जैसे-वार्ड, पार्षद, पंचायत समिति, मुखिया, जिला परिषद, विधायक, सांसद आदि बना रहे हैं। इनको बंद किया जाय।

यह मुद्दा 1967 में सबसे पहले स्व. कार्तिक उराँव ने उठाया था। केरल बनाम चन्द्रमोहनन-2004 एवं मेघालय में जयंतिया हिल्स स्वात्त जिले में डोलोई-ग्राम प्रमुख के निर्वाचन के मामलों में 2006, सर्वाेच्च न्यायालय के दोनों निर्णय भी इसका समर्थन करते हैं। नौकरियों में आरक्षण का बड़ा भाग ऐसे धर्मान्तरित लोग हड़प जाते हैं, ऐसे लोग अनुसूचित जनजातियों व अल्पसख्यकों दोनों को देय लाभों का अर्थात् दोहरा लाभ ले रहे हैं।

स्व. कार्तिक बाबू ने स्पस्ट किया कि ईसाई बने 10 प्रतिशत कथित आदिवासी आरक्षण सुविधाओं का 70 प्रतिशत लाभ उठा रहे हैं और गरीब, अनपढ़ वास्तविक 90 प्रतिशत आदिवासियों के हिस्से में केवल 30 प्रतिशत भाग बचा रहता है। स्थिति में अभी भी कोई विषेष परिवर्तन नहीं हुआ है सिवाय इसके कि धर्मान्तरित आदिवासियों का प्रमाण बढ़कर अब 16-17 प्रतिशत हो गया है।

इस पर समाजनीति अध्ययन केन्द्र, दिल्ली ने कुछ वर्षों पूर्व एक विस्तृत अध्ययन किया जो आंखे खोल देनेवाला है। इसे ूूू.बचेपदकपं.वतह में देखा जा सकता है। पूरे देश में जनजातियों में इसके विरूद्ध बहुत आक्रोश है। अभी देश में चुनाव होनेवाला है अनुसूचित जनजातियों के लिए झारखण्ड में 28 सीटें आरक्षित है।

आपसे अनुरोध है कि इन आरक्षित सीटों में से किसी सीट पर आपकी पार्टी जनजाति के किसी धर्मान्तरित व्यक्ति को टिकट देकर अपना प्रत्याषी नहीं बनाएं।

अनारक्षित/समान्य सीट पर ऐसे किसी व्यक्ति को प्रत्याशी बनाया जाता है तो जनजाति समाज को कोई आपत्ति नहीं होगी, ऐसा हुआ तो जनजाति समाज चुनावों में उसका विरोध करने को विवश होगा और यह पूरा प्रयास करेगा कि ऐसा व्यक्ति/प्रत्याशी जनजाति समाज का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाए। प्रतिनिधी मंडल में प्रतिनिधि मेघा उराँव, सोमा उराँव, नरेश मुण्डा, बिरसा मिंज, अमित मुण्डा शामिल थे।

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