बहुसंख्यक हिन्दू भारतीय मुस्लिम समाज की जटिलता को समझने की कोशिश करें 

बहुसंख्यक हिन्दू भारतीय मुस्लिम समाज की जटिलता को समझने की कोशिश करें 

बात अभी हाल फिलहाल की ही है। दरअसल, मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी परिसर में एक प्राध्यापक ने एक छात्र को 26/11 के कुख्यात आतंकवादी के नाम से बुलया। इस पर वह छात्र भड़क गया और प्राध्यापक को डांट लगा दी। किसी ने इस पूरे प्रकरण का वीडियो रिकार्ड कर सोशल मीडिया पर चस्पा दिया। देखते ही देखते वीडियो सुर्खियां बटोरने लगा और वायरल हो गया। कहा जा रहा है कि उस संवाद को लाखों की संख्या में लोगों ने देखा और सुना। सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले अपने अपने मंच पर इस पूरे प्रकरण की सकारात्मक चर्चा करते देखे जा रहे हैं। 

उक्त वीडियो में छात्र अपने शिक्षक से यह कहते नजर आ रहा है कि सहपाठियों के सामने उसे इस प्रकार बुलाना या संबोधन ठीक नहीं है। सच पूछिए तो इस प्रकार की घटना खतरनाक है। ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों को ऐसी संकीर्ण धारणा के नुकसान के बारे में बिल्कुल ही पता नहीं है। ठीक है कि आजकल लोग उच्च शिक्षा प्राप्त कर ले रहे हैं लेकिन उन्हें समाज की संवेदनशीलता का थोड़ा भी ज्ञान नहीं होता है। इसलिए आम लोगों को शिक्षित करने के जरूरत है। इसके साथ ही वर्तमान संकट से बचाने के लिए और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। 

दूसरी बात, इस प्रकरण ने साबित कर दिया है, हमारा भारतीय समाज बुरी तरह असहिष्णु होता जा रहा है। समाज कई भागों में विभाजित भी हो गया है और उस विभाजन की खाई दिन व दिन चैड़ी होती जा रही है। इसके लिए हमें अपने शिक्षा में सुधार की जरूरत है। हमें बहुत जल्द शिक्षा के उस पद्धति का विकास करना होगा जिसमें आपसी गतिरोध नहीं के बराबर हो। 

उस सिद्धांत पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, जो उस समय प्रगति और सद्भाव का स्तंभ बन गया जब भारत एक देश के रूप में उभर रहा था। इस बात की आवश्यकता बढ़ रही है कि लोगों को उस विभाजनकारी आख्यानों के बारे में जागरूक किया जाए, जो भारत के मुसलमानों और हिंदुओं को आपस में विलग कर रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सांप्रदायिक विभाजन, विभाजनकारी ताकतों की जीत है। यही नहीं यह सामान्य समाज के लोगों के दिमाग को अपराधी बनाता है। साथ ही एक-दूसरे के प्रति नकारात्मकता पैदा करता है। इस प्रक्रिया को बदलने की जरूरत है। 

हमारे दौर के लिए यह भी जरूरी है कि किसी कीमत पर समाज में नकारात्मक प्रवृत्ति पैदा न हो। इसके लिए सिविल सोसाइटी को जागरूक करना होगा और समावेशी व बहुलतावादी सोच से उन्हें लैस करना पड़ेगा। लोगों को यह समझाना जरूरी है कि मुसलमान अपने साथ कितनी चिंता लेकर चल रहे हैं। कई बार सार्वजनिक समारोहों, स्कूलों, कॉलेजों और राजनीतिक रैलियों में उन्हें अजीब नजरों से देखा जाता है। 

मुसलमानों के बारे में गलत सूचना है कि उनका राजनीतिक दृष्टिकोण अलग है, राजनीतिक दर्शन अलग है और आकांक्षाएं अलग हैं। यह निहायत गलत अवधारणा है। यह उजागर करना महत्वपूर्ण है कि भारतीय मुसलमान एक हाशिए पर रहने वाला समुदाय है, जो आर्थिक रूप से पिछड़ा है, राजनीतिक रूप से कम प्रतिनिधित्व वाला है और शैक्षिक रूप से कमजोर है। यही नहीं कुछ नकारात्मक और बाहरी शक्तियों द्वारा प्रेरित नेतृत्व ने  मुस्लिम समाज में एक प्रकार का डर भी पैदा कर दिया है, जिसके कारण कई प्रकार की समस्या खड़ी हो रही है। इस जटिल सामाजिक मनोविज्ञान को समझना होगा। यह जितना मुसलमानों के लिए जरूरी है उतना ही बहुसंख्यक हिन्दुओं के लिए भी आवश्यक है। 

सरकारी एजेंसियों को शामिल करके सुधारात्मक उपाय अपनाना समय की मांग है। मुसलमानों के बारे में नफरत और प्रतिशोध पूर्ण व्याख्यानों की निंदा करके विभाजनकारी आख्यानों को ठीक किया जा सकता है। शिक्षा, सहिष्णुता और सामाजिक समानता के संदेश को फैलाना जरूरी है। साथ ही अनुकूल माहौल बनाने की भी जरूरत है। इसके लिए हम कॉलेज और विश्वविद्यालयों को इस अभियान का हिस्सा बना सकते हैं। यह बहुत अच्छा होगा यदि विभिन्न आयु वर्ग के विद्यार्थियों को विभाजनकारी राजनीति के नुकसान के बारे में बताया जाए। इसके लिए विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के परिसर में भिन्न भिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करने की जरूरत है। 

जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए यह भी जरूरी है कि विभिन्न धार्मिक संप्रदाय एक-दूसरे को दुश्मन न समझ कर भागीदार के रूप में देखे। आम लोगों में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक समस्याओं के बारे में जानकारी का अभाव है। भारतीय मुस्लिम समाज आंतरिक रूप से बदल रहा है और नया आकार ग्रहण कर रहा है। इसके लिए बहुसंख्यकों को भी तैयार रहना चाहिए। आम बहुसंख्यक समाज भी मुस्लिम समाज के बारे में नकारात्मक लक्षणों से जोड़ने वाली कहानियों से तंग आ चुका है। बहुसंख्यक समाज विगत कुछ वर्षों में जिस प्रकार असहिष्णु हुआ है, वह भारतीय समाज की विशेषता कभी नहीं रही है। इसलिए मुसलमानों के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करने की जरूरत है। 

मुसलमानों में सद्दाम और कलाम दोनों हैं। बहुसंख्यकों को यह समझना होगा कि उसके लिए जरूरी कौन है। बगल का देश जो हमारा दुश्मन है और इस्लाम के नाम पर बना, आज परेशानी में है। वहां के लोग यह सोचने लगे हैं कि इस्लाम का चरमपंथ पश्चिमी साजिश का नतीजा है। इसलिए अब पाकिस्तानी आवाम भी पश्चिम नहीं पूर्व की ओर देखने को बाध्य हो गया है। इसलिए हम मुसलमानों को समझने की कोशिश करें। इतिहास की नकारात्मक व्याख्या कर वर्तमान और भविष्य को खराब करने से बढ़िया है, अनेकांतवाद व श्यादवाद के दृष्टिकोण को अपनाएं और शांति से अपना भविष्य गढ़े। 

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