बात धर्म के मर्म को समझिए, पूण्य के फेर में जान मत गमाइए

बात धर्म के मर्म को समझिए, पूण्य के फेर में जान मत गमाइए

यदि अध्यात्म की बात की जाए तो गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है, ‘‘कलियुग केवल नाम आधारा,,, सुमिरि सुमिरि जन उतरे पारा।’’ अर्थात, कलयुग में केवल नाम जपकर ही संतुष्टि पा सकते हैं। किसी सरोवर, नदी में स्नान करने की कोई जरूरत नहीं है। संतों ने कहा है कि सब कुछ मनुष्य के भीतर है और मानव विवेकहीनता में बाहर भटकता चल रहा है। बाहर सब दिखावा और भौतिक स्थान है। इसे व्यवसाय के लिए बढ़ावा दिया जाता है। मंदिर को प्रतीक के तौर पर समझाया गया था। किसी छोटे जगह पर निर्धारित तिथि और समय को सभी मनुष्य इकट्ठे हो जाएंगे तो अव्यवस्था एवं भगदड़ की संभावना बन जाती है। इसी लिए विभिन्न संप्रदायों ने हर जगह अपना मंदिर बना दिया था कि लोग अपने जगह ही पूजा पाठ कर सकें।

बाद के दिनों में यातायात के विकास और संचार की विकसित तकनीकों के द्वारा किसी स्थान को विशेष पुण्यदाई, महत्वपूर्ण बताकर लाखों करोड़ों लोगों को आकर्षित किया जाने लगा। अब हर जगह की भौतिक स्थिति, पर्यावरण भारी संख्या में लोगों का बोझ सहन नहीं करती है। जिसके कारण भगदड़ होती है और जान माल का नुकसान होता है।

मार्क्सवादी विचारकों के अनुसार धर्म अफीम है, जिसकी नशा खतरनाक होती है। विश्व में युद्ध, संघर्ष, शोषण, अत्याचार इसी के फलस्वरूप हुए हैं। इसलिए वे धर्म,संप्रदाय को सिरे से खारिज करते हैं। बहरहाल हमें सबकुछ स्वीकार करते हुए चेतना जगाने की जरूरत है,ताकि हमारा नुकसान न हो सके। हम देखते हैं कि खूब प्रचार प्रसार करने वाले भी भीड़ भाड़ का हिस्सा नहीं बनते हैं। या तो नहीं जाते हैं और यदि जाते हैं तो वीवीआईपी बनकर सुरक्षित जाते हैं।

एक बात और है कि ऐसी यात्राओं में बच्चों को नहीं ले जाना चाहिए, क्योंकि वे आपके लिए तो महत्वपूर्ण हैं ही, देश के भावी कर्णधार भी हैं। हमारी पूरी धरती हमारे लिए महत्वपूर्ण है। खेत, खलिहान,नदी, तालाब, स्कूल, कॉलेज,वन,उपवन, बगीचा सब कुछ जो जहां है सब मंदिर है और हमारे लिए पुण्य फलदायक है। हमें टीवीपुरम, ढोंगी पत्रकारों की बातों को नहीं मानना चाहिए।

नेहरू जी ने डैम को मंदिर माना था। उस समय देश भुखमरी, अकाल, बीमारी, अशिक्षा आदि से ग्रसित था। उन्होंने डैम से खेतों तक पानी पहुंचाकर अन्न उत्पादन के द्वारा भगवान का साक्षात् प्रसाद वितरण कराया था। आज हम कुछ विकास कर लिए तो टीवी, अखबार, यूट्यूब, रील वालों की बात मानकर हम अंधविश्वास की दलदल में फंसकर अपना नुकसान कर रहे हैं। यदि सच कहा जाए तो हर सभ्यता में बहुसंख्यक जनता नासमझ, धर्मभीरू,भेंड़चाल वाली होती है। इस जन्म में भले ही गरीब है, लेकिन कोई कह दे कि अमुक जगह जाने से पुण्य होता है और मरने पर स्वर्ग मिलता है तो वह आंख मूंद कर चला जाता है। हमारे धर्म का एक ही उद्देश्य है कि अपना कर्म करें। यही कर्म हमारी पूजा है। यदि ईश्वर में विश्वास है तो अपने घर में बैठकर ही ध्यान,योग करें तो मन शांत रहेगा। साथ ही साथ सद विचार, परोपकार, सहयोग की भावना अपने अंदर पैदा करें।

आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »