रामानंदी परम्परा को समझिए और राम की भक्तिधारा के प्रवाह को अवरुद्ध मत कीजिए

रामानंदी परम्परा को समझिए और राम की भक्तिधारा के प्रवाह को अवरुद्ध मत कीजिए

अभी हाल ही में राम जन्मभूमि मंदिर में भगवान श्री रामलला विराजमान हुए। पक्ष व विपक्ष के कई विवादों के बीच जो भी हुआ वह अच्छा ही हुआ लेकिन 22 जनवरी 2024 को जो कथित रामभक्तों ने पूरे देश में तांडव मचाया उससे हमारे राम जी तो खुश नहीं ही हुए होंगे। मुसलमान या कोई अन्य अल्पसंख्यक तो सड़क पर दिख नहीं रहा था लेकिन जो हिन्दू अपने दैनंदिन के कार्य में निकले उन्हें कटु अनुभव का सामना करना पड़ा। अयोध्या से देश के प्रधानमंत्री आदणीय नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वोच्च नेता पूज्य मोहन राव भागवत जी सबको जोड़ने की बात कर रहे थे, जबकि पूरे देश में राम भक्त मस्जिद के सामने से जुलूस निकाल कर मुसलमानों को चिढ़ा रहे थे। ऐसे में मुझे राम को अपना अराध्य मान भक्ति परंपरा को मजबूत आधार प्रदान करने वाले क्रांतिकारी संत रामानंद की याद आ गयी। आइए उनके बारे में कुछ विमर्श कर लेते हैं।

13वीं सदी में हुए संत राघवानन्द जी को अपने समय का सबसे क्रांतिकारी संत माना जाता है। उन्होंने ही सबसे पहले सभी जातियों के लोगों के लिए भक्तिधारा खोला। इसके लिए तमाम समकालीन आडंबरवादियों का विरोध भी झेला।

उनके ही शिष्य पूज्य संत श्री रामानंद जी ने अपने गुरु की परंपरा और शिक्षा को आगे बढ़ाया। रामानंद जी स्वयं गौड़ ब्राह्मण थे मगर उनके शिष्य सभी जातियों से थे। उनके प्रमुख 12 शिष्यों में अनंतानंद, भावानंद, पीपा, सेन नाई, धन्ना, नाभा दास, नरहर्यानंद, सुखानंद, कबीर, रैदास, सुरसरी, पदमावती के नाम शामिल हैं, जिन्हे द्वादश महाभागवत के नाम से भी जाना जाता है।

यह भी कहा जाता है कि वह बनारस में अपने 500 शिष्यों के साथ रहते थे। यह वह दौर था जब भारत गुलाम वंश का भी गुलाम बन चुका था। कबीर और रैदास सहित उनके सभी प्रमुख शिष्य समाज की बुराइयों के खिलाफ बिगुल फूंक रहे थे।

रामानंद जी को वैष्णव भक्तिधारा का संरक्षक और रामानंदी संप्रदाय का संस्थापक माना जाता है। जात-पात से ऊपर उठकर यह धारा उत्तर भारत में तेजी से लोगों को अपने साथ जोड़ रही थी।

रामानंदी संप्रदाय और वैष्णव धारा के इतिहास की जानकारी देने वाला पहला ग्रंथ नाभादास का भक्तमाल है। यह सन् 1660 में लिखा गया। यह वह समय था जब शाहजहां को कैद में डालकर औरंगजेब मुगल बादशाह बन गया था।

इसमें रामानंदी परंपरा को भगवान राम से आद्य गुरु बताया गया। कहा गया रामानंदी परंपरा की दीक्षा रामजी ने सीताजी को, माता सीता ने हनुमान जी को, हनुमान जी ने ब्रह्मा को और ब्रह्मा ने वशिष्ठ को दी और उससे आगे बढ़ती हुई यह चलती जा रही है। हालांकि यह इतिहास लिखने की भारतीय शैली है। किसी भी बात को प्राचीनतम बताने के लिए इसी शैली का इस्तेमाल हमारे मध्यकाल के अन्य ग्रंथों में भी किया गया है।

रामानंद जी के प्रमुख शिष्यों में एक नरहर्यानंद जी को ही नरहरिदास कहा गया है, वही नरहरिदास जी महाराज, गोस्वामी तुलसीदास के गुरु थे। तुलसीदास ने अपने दो बड़े कार्यों से रामानंदी परंपरा की वैष्णव धारा को जन जन तक पहुंचाया। पहला उनका लेखन था, जो रामचरितमानस और अन्य कृतियों से हिंदी साहित्य को समृद्ध करता है। दूसरा उन्होंने रामलीला का मंचन शुरू कराया। हालांकि रामलीला पहले से भी प्रचलित था लेकिन उन्होंने उसे रोचक बनाया और लोगों तक पहुंचाने का काम किया।

कई इतिहासकार यह भी बताते हैं कि तुलसीदास को शासन से भी पूरा सहयोग मिला। उस समय अकबर का राज था। उनके वित्तमंत्री राजा टोडरमल को तुलसीदास का चंवर डुलाते हुए चित्र आज भी आप बनारस के तुलसीदास घाट की तुलसी गद्दी पीठ पर देख सकते हैं। इसके अलावा अकबर ने भी तुलसीदास से गंगा में शाही नौका में मुलाकात कर उन्हें सुना था। इसके बाद अकबर ने राम सीता के चित्र का एक सिक्का भी जारी कराया। यह भी कहा जाता है कि अकबर के आदेश पर बनारस में राजा मान सिंह ने महादेव का मंदिर बनवाना शुरू किया। मान सिंह का विरोध होने पर राजा टोडरमल ने उस मंदिर को पूरा कराया।

उसी मंदिर के बारे में कोलकाता के बिशप रहे हैबर की किताब में पहली बार यह दर्ज किया गया कि उसे औरंगजेब ने तुड़वाकर मस्जिद बनवाई। हैबर की यह किताब उसकी मौत के दो साल बाद आई थी और उससे करीब डेढ़ सौ साल पहले ही अहिल्याबाई होलकर वह महादेव मंदिर बनवा चुकी थीं, जिसमें हम सब दर्शन करने आज जाते हैं।

One thought on “रामानंदी परम्परा को समझिए और राम की भक्तिधारा के प्रवाह को अवरुद्ध मत कीजिए

  1. इतनी आत्मग्लानि की आवश्यकता नही। हिन्दू हमेशा से संयम में ही रहा है। हमले तो हिंदुओं की रामनवमी शोभायात्राओं पर हो रहे है , सर हिंदुओं के कलम किये जा रहे है। और उस पर सेक्यूलर बोल नही पातें।

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