गौतम चौधरी
वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान है लेकिन इसका विशेष अर्थ संहिताओं से है। प्राचीन भारतीय ज्ञान को जिस सांचे में ढ़ाला गया उसे वेद की संज्ञा दी गयी। प्राचीन ऋषियों ने वेद के माध्यम से मानव जीवन के लगभग सभी पहलुओं पर अपना अध्ययन हमें हस्तांतरित किया है। नहीं समझने वाले या अधूरे ज्ञान वाले वेद को नकारते हैं लेकिन वैदिक ऋचाओं में मानव जीवन के हर पहलुओं का ज्ञान संकलित है। इसे जितना ज्यादा समझा जाए उतना ही ज्ञान उपलब्ध होगा। कुछ आधुनिक विद्वानों ने वैदिक गणित की रचना की है। उसी प्रकार वैदिक विज्ञान पर भी इन दिनों काम हो रहा है। वैदिक ज्ञान के आधार पर ही आयुर्वेद और योग आज दुनिया में प्रसिद्ध हो रहा है। उसी प्रकार वेदों में भूगोल पर भी व्यापक जानकारियां उपलब्ध है। अगर उन जानकारियों को आधुनिक भूगोल के साथ मिश्रित कर दिया जाए तो हमारा आधुनिक भूगोल और अधिक समृद्ध हो जाएगा।
भूगोल के बारे में आम धारणा यह है कि यह जमीन के सतह का अध्ययन करता है लेकिन प्राचीन भारत में भूगोल केवल पृथ्वी के सतह का ही अध्ययन नहीं करता था अपितु पृथ्वी के अंदर और बाहर की जानकारी भी उपलब्ध कराता था। पृथ्वी के अध्ययन से ही भारतीय ज्योतिषियों ने पूरे ब्रह्मांड तक की जानकारी हासिल कर ली थी। भारत के प्राचीन विद्वानों ने पृथ्वी की परिधि, व्यास, अक्षांश, देशांतर, समुद्र, नदी, पर्वत, पठार, मैदान ध्रुव, जलवायु आदि का तो अध्ययन किया ही, साथ में पृथ्वी के अंदर क्या है और नदियों के उद्गम की प्रक्रिया क्या है, इसका भी व्यापक अध्ययन कर रखा था।
वैदिक युग भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था और इसका भूगोल उस समय की समाज और संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण था। वैदिक भूगोल केवल भारतीय उपमहाद्वीप के बारे में ही जानकारी प्रदान करता है, अपितु इसमें विश्व भूगोल की झलक मिलती है। वैदिक भूगोल को अभी तक डिकोर्ड नहीं किया गया है। यदि इसे व्याख्यायित किया जाए तो मानव सभ्यता के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करा सकता है साथ ही भूगोल को समृद्ध भी कर सकता है।
वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप को सप्तसिंधु या आर्यावर्त भी कहा जाता था और इसका महत्वपूर्ण हिस्सा सिंधु नदी था। सिंधु नदी के किनारे बसे ग्राम्य जीवन के साथ ही ग्राम्य उपजातियों का विकास हुआ। इसके बाद वैदिक समय के लोगों ने नदियों के किनारे निवास किया और अपने ग्राम्य जीवन को सुधारा। वैदिक साहित्य में उपमहाद्वीप के पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं का वर्णन मिलता है। पूर्व में वैदिक भूगोल का भाग ब्रह्मावर्त था, जिसमें गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, कृष्णा, और कावेरी नदियां शामिल थीं। पश्चिम में वैदिक भूगोल का भाग कुरुक्षेत्र था, जो आज के हरियाणा राज्य में स्थित है। वैदिक ऋषियों ने हमें अक्षांश और देशांतर की जानकारी उपलब्ध कराई है। ध्रुर्व के बारे में भी वेद हमें विस्तार से बताता है। वैदिक भूगोल का एक महत्वपूर्ण पहलू ज्योतिष शास्त्र है, जिसमें सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, और नक्षत्रों के गति और प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। यह विज्ञान आज भी बेहद सटीक है और हमें काल गणना की सटीक जानकारी उपलब्ध करा रहा है। ज्योतिष के माध्यम से ही वैदिक लोग समय का अध्ययन करते थे और विशेष आयोजनों के लिए मुहूर्त तय करते थे। वैदिक समय में भूगोल के अन्य महत्वपूर्ण अंशों में समुद्र और नदियों के महत्व का भी उल्लेख मिलता है। सिंधु नदी के किनारे ही सिंधु सभ्यता का उदय हुआ था और वैदिक साहित्य में इसका विस्तार से उल्लेख मिलता है। नदियों के पास के भूभाग में कृषि के लिए उपयुक्त भूमि थी, जिससे खाद्य संसाधन में सुधार हुआ और समाज का विकास हुआ।
वैदिक भूगोल का अध्ययन हमें इस समय की भारतीय सभ्यता के विकास के पीछे की कहानी समझने में मदद करता है। इसके माध्यम से हम जान सकते हैं कि कैसे भूमि, नदियां और नक्षत्रों का अध्ययन उनके जीवन और समाज को उन्नत बनाया जा सकता है। वैदिक भूगोल का अध्ययन हमें हमारे पूर्वजों की धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन के प्रति भी गहरी समझ प्रदान करता है और हमें यह सिखाता है कि हमारी सभ्यता किस तरह विकसित हुई है।
वैदिक काल में, भारतीय सभ्यता ने अपने आस-पास की प्राकृतिक परिस्थितियों का गहराई से अध्ययन किया है। वे अपने भूगोल को पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, और अग्नि) के साथ जोड़ते थे और उनका विकास और प्रयोग करते थे।