वीर सावरकर : सांस्कृतिक हिन्दू राष्ट्र के समर्थक क्रांतिकारी

वीर सावरकर : सांस्कृतिक हिन्दू राष्ट्र के समर्थक क्रांतिकारी

अमरदीप यादव

विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई,1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ। इनके जीवन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के समाचार पत्र ‘केसरी’ का बहुत प्रभाव पड़ा। 18 अप्रॅल, 1898 को चापेकर बंधु (दामोदर हरी चापेकर, बालकृष्ण चापेकर तथा वासुदेव चाफेकर) क्रांतिकारियों को अंग्रेजों द्वारा फांसी दिए जाने पर उन्होंने एक मार्मिक कविता लिखी। फिर रात में उसे पढ़कर खूब रोने लगे तो उनके पिताजी ने उन्हें चुप कराया। तिलक की सिफारिश पर वे श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति लेकर ब्रिटेन चले गये। लंदन का ‘इंडिया हाउस’ उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था। उनके द्वारा ब्रिटिश अभिलेखागारों का गहन अध्ययन कर ‘1857 का स्वाधीनता संग्राम’ नामक लिखा हुआ महत्वपूर्ण ग्रन्थ ब्रिटिश शासन ने भारत और पेरिस में प्रतिबंधित कर दिया। विश्व इतिहास में यह एकमात्र ग्रन्थ था, जिसे प्रकाशन से पहले ही दो देशों में प्रतिबन्धित कर दिया गया। अन्ततः 1909 में हालैण्ड से यह प्रकाशित हुआ। यह स्वाधीनता समर का सर्वाधिक विश्वसनीय ग्रन्थ है।

सावरकर के अनुयायी मित्र मदन लाल ढींगरा ने 01 जुलाई, 1909 को इण्डियन नेशनल एसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने आए सर विलियम कर्जन वायली को गोली मार दी। घटना के बाद उन्होंने ढींगरा को कानूनी सहयोग दिया। अंग्रेजों ने हत्या की योजना में शामिल होने के आरोप में सावरकर को गिरफ्तार करने के बाद उन्हें 13 मार्च, 1910 को मोरिया नामक जलयान से भारत लाया जाने लगा। 10 जुलाई, 1910 को जब जहाज फ्रांस के मोर्सेल्स बन्दरगाह पर खड़ा था, वो शौचालय से समुद्र में कूदकर तैरते हुए तट पर पहुँच गये। तट पर खुद को फ्रांसीसी पुलिसकर्मी के हवाले कर दिया। फिर अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें फ्रांसीसी पुलिस से ले लिया। यह अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विपरीत था। इसलिए यह मुकदमा हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक पहुँचा; जहाँ उन्हें अंग्रेज शासन के विरुद्ध षड्यंत्र रचने के अपराध में आजन्म कारावास की सजा सुनाई गयी।

वे पहले स्नातक थे जिनकी उपाधि स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अंग्रेज ने वापस ले लिया। फिर नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षड्यंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को कालापानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। इस प्रकार उन्हें दो जन्मों का आजीवन कारावास मिला। उनकी लंबाई 5 फ़ीट 2 इंच थी, वे जब सेल्युलर जेल पहुंचे तो उनका वज़न 112 पाउंड था, जेल में रहने के बाद वो गंजे हो गए थे।उन्हें 698 कमरों की सेल्युलर जेल में 13.5 गुणा 7.5 फ़ीट की कोठरी नंबर 52 में रखा गया था।”अंडमान की जेल में रहते हुए पत्थर के टुकड़ों से लगभग 6000 कविताएं दीवार पर लिखीं और कंठस्थ किया। जेल में इन पर घोर अत्याचार किये गये। कोल्हू में जुतकर तेल निकालना, नारियल कूटना, कोड़ों की मार, भूखे-प्यासे रखना, कई दिन तक लगातार खड़े रखना, हथकड़ी-बेड़ी में ही रहना जैसी अमानवीय यातनाएँ दी जाती थीं। 

1921 में उन्हें अन्दमान से रत्नागिरी भेजा गया। अंडमान से वापस आने के बाद सावरकर ने एक पुस्तक लिखी ‘हिंदुत्व – हू इज़ हिंदू?’ जिसमें उन्होंने पहली बार हिंदुत्व को एक राजनीतिक विचारधारा की संज्ञा दी। वे हिन्दू राष्ट्र के समर्थक क्रांतिकारी थे। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा उदाहरण मिले जो एक क्रांतिकारी अच्छा कवि, साहित्यकार और अच्छा भी हो। “बहुचर्चित पुस्तक ‘द आरएसएस-आइकन ऑफ द इंडियन राइट’ के लेखक और वीर सावरकर की जीवन संघर्ष यात्रा पर शोध करने वाले नीलांजन मुखोपाध्याय लिखते हैं, “हिंदुत्व की परिभाषा देते हुए सावरकर कहते हैं कि इस देश का नागरिक वही हो सकता है जिसकी पितृ भूमि, मातृभूमि और पुण्य भूमि यही हो।”

“पितृ और मातृ भूमि तो किसी की हो सकती है, लेकिन पुण्य भूमि तो सिर्फ़ हिंदुओं, सिखों, बौद्ध और जैनियों की ही हो सकती है। वे राजनीति के हिन्दूकरण और हिन्दुओं के सैनिकीकरण के प्रबल पक्षधर थे। 26 फरवरी, 1966 को उन्होंने देह त्याग दिया। उनकी 100वीं जयंती पर बनी पहली फ़िल्म “वीर सावरकर” को फ़िल्म डिवीज़न द्वारा 1983 में बनाया गया। प्रेम वैद्य इसके निर्देशक थे फिल्म के बारे में उनके अनुभव अमेरिका के मैगज़ीन- “अमेरिकन सिनेमैटोग्राफर” में दर्ज किए गए थे।2001 में सावरकर के जीवन पर आधारित दूसरी फिल्म का निर्माण सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान ने किया था। यह सार्वजनिक दान द्वारा वित्तपोषित दुनिया की पहली फिल्म है। 28 मई 2012 को इसके गुजराती भाषा संस्करण में  गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा डीवीडी जारी किया गया था। इसके निर्माता सुधीर फड़के और संगीतकार तथा निर्देशक वेद राही है। सावरकर की भूमिका शैलेंद्र गौड़ द्वारा निभाई गई है।

वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति केआर नारायणन के पास सावरकर को ‘भारत रत्न’ देने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया था। इसमें पीछे विभिन्न विचारधाराओं के दलों की गठबंधन सरकार और राष्ट्रपति के कांग्रेस के वैचारिक पृष्ठभूमि का होना प्रमुख कारण माना गया। 

26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के दो दिन बाद ही सावरकर की 131वीं जयंती थी। उन्होंने संसद भवन में जा कर सावरकर के चित्र के सामने सिर झुका कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। फिर 30 दिसंबर 2018 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंडमान निकोबार गए थे तब उन्होंने उस सेल्युलर जेल की कोठरी में जाकर सावरकर के चित्र के समक्ष अपनी श्रद्धा प्रकट की थी। ऐसे दृश्य को देखकर सावरकर को मानने वाले मतवालों के दिल में उम्मीद जगाती है कि सावरकर को “भारत रत्न” देने की उनकी मांग पूरी होने का समय आने वाला है।


(लेखक भाजपा OBC मोर्चा झारखंड प्रदेश अध्यक्ष है। लेखक के विचार निजी है, इससे janlekh.com प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)

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