राधाकांत भारती
हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थों में अमरकंटक का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसी पुण्य भूमि में नर्मदा,सोन,महानदी तथा ज्वालावती जैसी पावन नदियों के उद्गम स्थान हैं। भारत की सारी नदियों में नर्मदा सर्वाधिक प्राचीन पुण्यसलिला मानी जाती है। इसके दोनों तटों पर अनेक देवस्थान तथा नगर शोभायमान हैं।
धार्मिक पृष्ठभूमि : –
पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी तथा सरयू आदि पावन सरिताओं में स्नान करने पर जो फल मिलता है, वह नर्मदा के दर्शन मात्रा से ही प्राप्त हो जाता है। नर्मदा को शिव की पुत्राी होने के कारण ‘शांकरी’ भी कहा जाता है। प्राचीग्रंथों में अमरकंटक को तपोभूमि कहा गया है। रामायण काल में यह ऋषभ के नाम से जाना जाता है। एक कथा के अनुसार लंकापति रावण एक बार अपने पुष्पक विमान द्वारा मैकाल पर्वत के क्षेत्रा मंे जा रहा था कि उसकी दृष्टि नीचे बिखरी सौंदर्यराशि पर पड़ी। चारों ओर की प्राकृतिक छटा देखकर उसका मन मुग्ध हो उठा। उसने कुछ दिन यहां रूककर अपने आराध्य शंकर की अर्चना की। फिर जांबूनदमणि बनाकर उसको वहां स्थापित किया। प्राचीनग्रंथों के अनुसार भगवान राम के पूर्वज रघुवंशी राजाओं का इस क्षेत्रा पर राज्य था। दसवीं शताब्दी में पूर्व यह चेदि शासकों के आधिपत्य में था। आज भी चेदिकालीन मंदिर तथा खंडहर इस पर्वतीय क्षेत्रा में देखे जा सकते हैं।
तीर्थस्थलों का दशग्नीय विवरण: –
अमरकंटक में अनेक स्थल हैं जो यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मंदिरों तथा कुंडों की तो यहां भरमार है। कुछ मंदिरों की शिल्पकला देखने योग्य है। यहां का मुख्य स्थान नर्मदा माता का कुंड है। नर्मदा कंुंड ही नर्मदा का उद्गम स्थान है। कुंड में निर्मित मंदिर नर्मदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिरों के इसी परकोटे में ओंकारेश्वर-महादेव का मंदिर भी दर्शनीय है। कुंड के समीप ही कालेपत्थर से निर्मित एक हाथी की प्रतिमा है। कहा जाता है कि जगतगुरू शंकराचार्य ने कुछ समय यहां पर निवास किया था। यहां के अनेक देवस्थानों का निर्माण तथा जीर्णाेद्वार चेदि तथा कलचुरि राजाओं ने करवाया था।
नर्मदा के पावनकुंड से लगभग तीन-चार किलोमीटर दूर सोननदी का उद्गम स्थान है। यह स्थान सोनभूड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां चट्टानों को काटकर एक पतली सी धारा के रूप में प्रवाहित होती है। थो़ड़ा आगे जाकर यह धारा जलप्रपात के रूप में नीचे गिरती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सोन,संपूर्ण नदियों की मुखिया है। अतएव इसे सोन नदी भी कहा जाता है।
अन्य दर्शनीय स्थल : –
अपने उद्गम से निकलने के बाद नर्मदा मंद गति से प्रवाहित होती हुई लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर एक विशाल प्रपात के रूप में नीचे गिरती है। इस प्रपात का नाम कपिलधारा है। कहा जाता है कि कपिलमुनि ने इसी स्थान पर घोर तपस्या की थी और यही पर उन्हें आत्मज्योति का साक्षात्कार हुआ था।
ठहरने का स्थान : – अमरकंटक में अहिल्याबाई की धर्मशाला पर्याप्त बड़ी है। यात्राी प्रायः इसी धर्मशाला में ठहरते हैं।
यात्रा मार्ग : –
पूर्वी रेलवे की कटनी बिलासपुर शाखा में कटनी से 217 किलोमीटर और बिलासपुर से 101 किलोमीटर के फासले पर पेडरा रोड स्टेशन है। इस स्टेशन पर उतरने से रीवां से आने वाली मोटर-बसें मिल जाती हैं। स्टेशन के पास गौरेला ग्राम है जहां कई धर्मशालाएं हैं।
(उर्वशी)