आखिर बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या पर भाजपा ने क्या किया?

आखिर बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या पर भाजपा ने क्या किया?

विगत लगभग एक महीने से भारतीय जनता पार्टी लगातार बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या को उठा रही है। भाजपा का कहना है कि 1951 से लेकर 2011 तक झारखंड में सनातनी हिन्दू और आदिवासियों की जनसंख्या घट गयी है। भाजपा के नेता लगभग प्रति दिन अपने प्रेस बयान और संवाददाता संमेलनों में इस बात का जिक्र कर रहे हैं। उनका मानना है कि झारखंड बांग्लादेशी घुसपैठियों का रणनीतिक पनाहगाह बन गया है। उनका आरोप यह भी है कि वर्तमान हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली इंडिया गठबंधन की सरकार प्रदेश में बांग्लादेशी घुसवैठियों के प्रति उदार भाव रखती है। यही कारण है कि इधर के दिनों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का यहां आना बढ़ गया है। इस संदर्भ में एक मामला झारखंड उच्च न्यायालय में भी चल रहा है। कायदे से उस पर सुनवाई भी हो रही है। विगत दिनों माननीय न्यायालय ने झारखंड के कई जिला उपायुक्तों को यह सबक दिया कि वे अपने-अपने जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की सूची बनावे और उसे न्यायालय में दाखिल करें। हालांकि, कई आधिकारिक मंचों से झारखंड सरकार, उसके मंत्री और अधिकारियों ने बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे किसी प्रकार की समस्या को नकारती रही है लेकिन भाजपा लगातार इस मामले को लेकर आक्रामक रवैया अपनाए हुए है।

सच पूछिए तो झारखंड भाजपा मुद्दा विहीन हो चुकी है। या ऐसा कहें कि झारखंड भाजपा को मुख्यमंत्री हेमंत और उनके रणनीतिकारों ने दिशाहीन बना दिया है। बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या यदि इतनी ही जटिल और भयावह होती तो झारखंड निर्माण से लेकर अभी तक साढ़े 13 वर्षों तक प्रदेश में किसी न किसी रूप में भाजपा शासन में रही है। यदि भाजपा इस मामले को लेकर ईमानदार होती तो वह अपने शासनकाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों पर किए गए कार्रवाई के बारे में कुछ न कुछ बताती। क्योंकि भाजपा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी खुद कहते हैं कि वर्ष 1951 से लेकर आजतक बांग्लादेशियों का घुसपैठ जारी है।

दूसरी बात यह है कि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी जब भाजपा में नहीं थे तो उन्होंने कई अवसरों पर यह कहा कि झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ की कोई समस्या नहीं है। यही नहीं, एक खास भाजपा सूत्र का तो यहां तक कहना है कि जब प्रदेश में रघुवर दास की सरकार थी तो उस समय कई हिन्दूवादी संगठन और भाजपा के कुछ विधायकों ने मुख्यमंत्री दास को बांग्लादेशी घुसपैठियों पर कार्रवाई की बात कही लेकिन वे नकार गए।

इस मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है कि भाजपा जब-जब सत्ता से बेदखल होती है और चुनाव का वक्त आता है, तो भाजपा नेताओं को बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या याद आती है। भट्टाचार्य या फिर कांग्रेस के प्रवक्ताओं का तर्क है कि घुसपैठ अंतरराष्ट्रीय सीमा से होता है। केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार है और सीमा सुरक्षा बल, जिस मंत्रालय के पास है और जो घुसपैठियों को रोकने के लिए जिम्मेदार है उस गृह मंत्रालय की जिम्मेबारी अमित शाह के पास है। घुसपैठ यदि हो रहा है तो केन्द्रीय गृहमंत्रालय उसके आंकड़े राज्य सरकार को साझा करे। फिर राज्य सरकार उसपर कार्रवाई करेगी। भट्टाचार्य राजनीतिक बयान देने में माहिर हैं लेकिन यह तर्क उनका ठीक है। घुसपैठ को रोकना या फिर घुसपैठियों को बाहर का रास्ता दिखाना अकेले राज्य सरकार के बूते की नहीं है। इसके लिए केन्द्र सरकार को भी सहयोगी रवैया अपनाना पड़ेगा। इसलिए प्रदेश भाजपा को पहले केन्द्रीय गृहमंत्रालय पर दबाव बनाना चाहिए। यह काम बिना उसके सहयोग से संभव नहीं है।

भाजपा का डेमोग्राफी में बदलाव वाला तर्क सही जान पड़ता है। यह साफ तौर पर झलक रहा है। प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में जिस प्रकार से एक खास वर्ग की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है, वह चिंता का विषय है लेकिन सवाल यह उठता है कि अपने समय में भाजपा ने इस समस्या के समाधान के लिए क्या किया?

अंत में एक बात और समझनी चाहिए कि बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या का समाधान केवल राज्य सरकारों की सक्रियता से ही संभव नहीं है। मान लीजिए राज्य सरकार ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को चिन्हित कर लिया, फिर उसका क्या होगा? विगत 10 वर्षों से भाजपा केंद्र की सत्ता में है और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। कई बार नरेंद्र मोदी की मुलाकात बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना से हुई है। एक बार भी मोदी ने हसीना के साथ बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या पर बात नहीं की।

यहां यह भी बता दें कि जब असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर बड़ा अभियान चल रहा था, उस समय बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय से एक आधिकारिक बयान आया था, जिसमें बताया गया था कि घुसपैठियों को वापस लेने से संबंधित भारत सरकार के साथ उनकी सरकार ने कोई वार्ता नहीं की है और आगे भी ऐसी कोई बात होने वाली नहीं है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा था कि यह मुद्दा भारत का आंतरिक मामला है।

ऐसी परिस्थिति में झारखंड भाजपा या भाजपा के कोई केन्द्रीय नेता बांग्लादेशी घुसपैठ पर किसी प्रकार की कोई बात करते हैं तो इसका क्या मतलब निकाला जाना चाहिए? इसका साफ संदेश यह है कि यह मामला केवल राजनीतिक है। इससे प्रति भाजपा का नेतृत्व भी गंभीर नहीं है। यह केवल राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए किया जा रहा है, न कि समस्या के समाधान के लिए।

कुल मिलाकर, झारखंड का वर्तमान भाजपा नेतृत्व मुद्दे और रणनीतियों को लेकर विभ्रम की स्थिति में है। डीलिस्टिंग पर भाजपा का कोई स्थाई चिंतन नहीं है। खुद बाबूलाल आदिवासी को हिन्दू नहीं मानते हैं। 1932 के खतियान के मामले में प्रदेश भाजपा का कोई स्टैंड नहीं है। पेसा कानून पर प्रदेश भाजपा मौन साधे हुए है। ऐसे में भाजपा का विधानसभा चुनाव का मुद्दा क्या-क्या होगा यह किसी को पता नहीं है। नेतृत्व के संभ्रम और रणनीति विहीनता की स्थिति में प्रदेश भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में झारखंड विधानसभा का चुनाव लड़ना तय किया है। संभवतः झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा राष्ट्रीय मुद्दे पर ही चुनाव लड़ेगी क्योंकि प्रदेश में उसके पास कोई मुद्दा नहीं दिख रहा है।

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