प्रेम रावत जी
शांति क्या है – इस बात को समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है लोगों को कि शांति की परिभाषा क्या है! सिर्फ शांति की परिभाषा ही शांति नहीं है। लोग जब खोजना शुरू करते हैं शांति को तो अपनी परिभाषा को पहले लाते हैं। वह शांति नहीं है। शांति परिभाषाओं की नहीं है, शांति महसूस करने की चीज है। शांति का वास्ता सिर्फ एक चीज से है और वह है मनुष्य। और शांति उसके अंदर है! अगर आप इसको स्वीकार करते हैं तो आप शांति के रास्ते पर चल चुके हैं। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है इस संसार के अंदर, जिसके अंदर वह शांति न हो। चाहे उसने कैसे भी कर्म किए हैं, फिर भी वह शांति उसके अंदर है। अर्थात बाहर की परिस्थितियां कैसी भी हों, शांति आपके अंदर मौजूद है।
शांति वह है, जब मनुष्य के अंदर, वो जो तूफान आते रहते हैं, उनसे निकल करके, वो उस चीज का अनुभव करे, जो उसके अंदर है। हम उस ताकत को, उस शक्ति को, जो इस सारे विश्व का संचालन कर रही है, इस समय वह हमारे अंदर है और उसका अनुभव करना, साक्षात् अनुभव करना – मन से नहीं, ख्यालों से नहीं, साक्षात् अनुभव करना – उससे फिर शांति उभरती है। क्योंकि वो उस चीज का अनुभव कर रहा है, जिसका कि वह एक हिस्सा है और जिसकी कोई सीमा नहीं है। जिसका कभी नाश नहीं होगा, वह भी उसके अंदर है। और जबतक वह उसका अनुभव नहीं कर लेगा, वह अपने आपको पहचान नहीं पाएगा पूरे तरीके से कि वह है क्या ?
लोगों का मानना है कि जब हम वृद्ध हो जाएंगे, जब हम रिटायर्ड हो जाएंगे, तब शांति के बारे में सोचेंगे। परंतु प्रोस्पेरिटी, समृद्धि का मतलब है – पैसा भी हो, अच्छा स्वास्थ्य भी हो और शांति भी हो। शांति के बिना वह प्रोस्पेरिटी अधूरी है। शांति जीवन जीना सिखाती है! हृदय को खोलना शांति है! अपने आपको जानना शांति है! मनुष्य को शांति की जरूरत है, चाहे वह कहीं का रहने वाला हो। एक समय की बात है कि गौतम बुद्ध उस समय गौतम बुद्ध नहीं सिद्धार्थ थे। एक दिन वह बाहर जाना चाहते थे, क्योंकि उनकी परवरिश महलों में ही हुई थी इसलिए उनको बाहर जाने की आज्ञा नहीं थी। जब उनका जन्म हुआ तो ज्योतिषी ने बताया कि या तो ये बहुत बड़े राजा बनेंगे या ये बहुत बड़े संत बनेंगे। और उनके पिता जी नहीं चाहते थे कि वह संत बनें। वे चाहते थे कि वह राजा बनें। इन्हीं कारणों से उनको महल के बाहर ले जाना मना था।
एक दिन जब सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकले तो उन्हें सड़क पर एक वृद्ध व्यक्ति दिखाई दिया। उसके दाँत टूट गए थे, बाल सफेद हो गए थे, शरीर टेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े वह धीरे-धीरे कांपता हुआ सड़क पर चल रहा था। दूसरी बार सिद्धार्थ जब बगीचे की सैर को निकले, तो उनके सामने एक रोगी आ गया। उसकी साँसें तेज चल रही थी। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे व्यक्ति के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था। तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली। चार आदमी उसे उठाकर ले जा रहे थे। उसके पीछे बहुत से लोग थे, वो सभी रो रहे थे।
अर्थी को देखकर उन्होंने पूछा, ‘‘ये क्या है ?’’
सारथी ने कहा, ‘‘इस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी है।’’
‘‘तो सिद्धार्थ पूछते हैं क्या ये मेरे साथ भी होगा ?’’
सारथी ने कहा, ‘‘यह तो संसार का नियम है जिसका जन्म हुआ है एक दिन उसको यहां से जाना पड़ता है।’’
इन दृश्यों ने सिद्धार्थ को बहुत विचलित किया। सिद्धार्थ ने सोचा कि क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी।
चैथी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकले, तो उन्हें एक सन्यासी दिखाई पड़ा। संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त प्रसन्नचित्त सन्यासी ने सिद्धार्थ को आकर्षित किया और सिद्धार्थ के जीवन को ही बदल दिया। अगर हम भी इन बातों पर ध्यान देते तो सचमुच में शांति का महत्व हमारे जीवन में क्या है हमें समझ में आता। शांति कितनी जरूरी है हमारे लिए, इस बात को हम समझ पाते। और यह समाज की बात हो न हो, पर हमारे जीवन में होनी चाहिए।
बात यह है कि आपके जीवन में खुशी भी आती है, आपके जीवन में सुख भी आता है, आपके जीवन में शांति भी है। पर आपका ध्यान आपकी दुविधाओं और आपकी मुश्किलों पर रहता है। परंतु देखा जाए तो दोनों ही संभावना आपके जीवन के अंदर हैं। खुशी की भी संभावना आपके जीवन में है और शांति की भी संभावना आपके जीवन में है। यह तो उस बनाने वाले का आशीर्वाद है आपके जीवन में। उसने आपको आशीर्वाद दिया है कि अगर आप चाहें तो खुश रह सकते हैं और अगर आप चाहें तो अपने जीवन के अंदर शांति का अनुभव कर सकते हैं। यह संभव है। और इतना ही नहीं अगर आप अशांत रहना चाहते हैं तो आप अशांत भी रह सकते हैं। दोनों ही संभावना रखी गई हैं।
परंतु हमें यह बात मालूम है कि मनुष्य होने के नाते जब हमारे जीवन के अंदर शांति होती है तो हमको अच्छा लगता है। जब हम खुश होते हैं तो हमको अच्छा लगता है। जब हमारे अंदर ऐसी-ऐसी भावनाएं आती हैं कि कितना संुदर हमें मौका मिला है, कितना संुदर हमें यह समय मिला है कि इस संसार के अंदर हम जीवित हैं तो हमको अच्छा लगता है। परंतु दुविधा सबकी यही है कि ‘‘मैं अपनी मुश्किलों से कैसे बचूं ?’’ कई लोग हैं जो कहते हैं कि मैं कैसे जानूंगा कि शांति मेरे अंदर है! हम एक बात भूल जाते हैं कि इन आँखों से हम सबका चेहरा देख सकते हैं, पर अपना चेहरा नहीं देख सकते हैं। और अगर अपना चेहरा देखना चाहते हैं तो इसके लिए आईने की जरूरत है।
शांति के लिए आपको कुछ न कुछ जरूर करना पड़ेगा। पहली सीढ़ी शांति की तरफ कि ‘‘शांति मेरे अंदर है!’’ शांति को मुझे अपने अंदर खोजना है, बाहर नहीं। असली शांति है मनुष्य के अंदर। अपने आपको पहचानना, अपने आपको जानना, इनका ताल्लुकात उसी शांति से है। क्योंकि ये संभावना हर एक मनुष्य के अंदर है। जब मनुष्य उस शांति का अनुभव करने लगता है और वह जान लेता है कि “यह मेरी प्रकृति है, मैं यह हूं!” फिर किसी चीज को बदलने की जरूरत नहीं है।
(प्रेम रावत जी मानवता एवं शांति के विषय पर चर्चा करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय वक्ता हैं। उन्हें इस कार्य के लिए कई संस्थानों द्वारा शान्तिदूत की उपाधि भी प्रदान की गई है। अपने संदेश की चर्चा के अलावा, वे एक परोपकारी संस्था ‘‘द प्रेम रावत फाउंडेशन‘‘ का भी संचालन करते हैं। इस संस्था के अनेक योजनाओं में से एक है – ‘‘जनभोजन योजना!’’ इसके अलावा यह संस्था विपदा के समय भी जरूरतमंद लोगों के लिए राहत सामग्री पहुंचाने का कार्य कर रही हंै। उनके संदेश के संबंध में अधिक जानकारी वेबसाइट www.premrawat.com द्वारा प्राप्त की जा सकती है।)