रांची/रांची में कडरू ओवरब्रिज के पास एक मकान में माइनिंग माफियाओं की महफिल सजी है। खान विभाग के बड़े साहब के हाथों में छलकता हुआ जाम है और अधखुली आंखों की लालिमा छाये सुरूर की कहानी कह रही है। खान विभाग के बड़े साहब के अधर मस्त अंदाज में फड़फड़ाते हैं। भीतर से तमिल गाने के बोल फूट पड़ते हैं। बगल में बैठे मिस्टर वायडू कहते हैं, ‘‘वेल डन सर.. आपने मुझे नॉस्टेलजिक कर दिया।’’ थोड़ा और नशा चढ़ते ही साहब लड़खड़ायी आवाज में बोल पड़ते हैं, ‘‘कुपेंद्र तुम बालू को ठीक से कंट्रोल नहीं कर रहे हो। अगर ऐसा ही रहा तो ऊपर मैनेज करना मुश्किल हो जाएगा। अगर नहीं सुधरे तो लोहा के साथ बालू भी वायडू के हवाले करना होगा।’’ डर के मारे वायडू की हालत खराब हो जाती है। ‘‘नहीं सर..प्लीज ऐसा मत कीजिए..बालू का मामला आयरन ओर से ज्यादा कंप्लीकेटेड है। आयरन ओर में तो चंद खिलाड़ी हैं.. कभी इंवायरमेंटल क्लीयरेंस और कभी माइनिंग प्लान का डर दिखाओ.. और नहीं तो शाह कमीशन की रिपोर्ट दिखा दो, वे डर के मारे सबकुछ करने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेकिन बालू में सैकड़ों प्लेयर हैं..किसका कनेक्शन कहां है..कहना मुश्किल है। मैं नहीं कंट्रोल कर पाऊंगा।’’ कुपेंद्र सिंह के होठों पर शातिर मुस्कान थिरक उठती है। ‘‘सर, संतालपरगना से कलेक्शन में थोड़ी कमी आई है। ऊपर की चिंता आप छोड़ दीजिए। मैं सब संभाल लूंगा।’’
दरअसल, यह मजमून झारखंडनामा नामक एक ब्लाॅग पर चल रहे सत्ता, ठेकेदार, अधिकारी और दलालों के आपसी गठजोड़ पर लिखे गए क्षद्म रिपोर्ट से ली गयी है। ब्लाॅगर ने बालू के किस ठेकेदार पर यह क्षद्म रिपोर्ट प्रस्तुत की है इसका तो उन्होंने ब्योरा नहीं दिया है लेकिन इशारे-इशारे में उन्होंने वर्तमान सत्ता के साथ ठेकेदारों के गठजोड़ को उद्घाटित करने की पूरी कोशिश की है।
कुपेन्द्र नामक ठेकेदार, जिसपर केन्द्रित वह रिपोर्ट है उसके बारे में इन दिनों कई बातें प्रचलित है। कहा जा रहा है कि इस ठेकेदार का रूतवा इतना जबरदस्त है कि उसके मात्र मुंह खोलने पर इन दिनों सत्ता के गलियारे में तूफान खड़ा हो जाता है। विगत दिनों झारखंड शासन के खान विभाग के अधिकतर कर्मचारियों का तबादला कर दिया गया। इसके पीछे का क्या कारण पता नहीं लेकिन जानकारों की मानें तो उस तबादले के लिए प्रदेश के एक कद्दावर नेता जिम्मेदार है। दरअसल, प्रदेश के पूर्व काबीना मंत्री एवं वर्तमान निर्दलीय विधायक ने उसी ठेकेदार के बारे में अपने आधिकारिक ट्वीटर एकाउंट से एक नकारात्मक ट्वीट किया था। इसके बाद पूरे शासन में हड़कंप मच गया। शासन के सिपहसालारों ने पता लगाने की कोशिश की कि आखिर किस कर्मचारी ने बालू के गैर कानूनी खेल को विधायक तक पहुंचाई है। खैर विधायक इतने कच्चे खिलाड़ी थेड़े हैं, सो जानकारी नहीं मिल पायी तो पूरे महकमें के कर्मचारियों का तबादला दूरसे विभाग में कर दिया गया।
दरअसल, झारखंड की कोख में अमीरी है तो गोद में गरीबी। यह दिन व दिन और प्रभावशाली होती जा रही है। झारखंड में हर जगह चार गुने ज्यादा दाम पर अवैध बालू उपलब्ध है। कहीं बालू की किल्लत मसहूसस नहीं हो रही है। झारखंड में 500 बड़े बालू घाट टेंडर के लिए सूचीबद्ध हैं। बाकी छोटे बालूघाट केवल ग्राम-पंचायतों के काम और निजी जरूरतों के लिए है। टेंडर के लिए सूचीबद्ध 500 बालू घाटों में से 30 में झारखंड सरकार की कंपनी खनन कर रही है। 20 घाटों में अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी खनन हो रहा है। 450 बालू घाटों में दशकों से टेंडर नहीं हुआ है, पर अवैध खनन बदस्तूर जारी है।
आखिर जिन घाटों का टेंडर नहीं हुआ है वहां से बालू तो उठाया जा रहा है लेकिन उसका कोई लेखा-जोखा शासन के पास नहीं है। जानकार बताते हैं कि इस अवैध खनन का पूरा नेटवर्क वर्तमान सत्ता का निकटस्थ एक ठेकेदार संभाल रहा है। यह बालू माफिया के उस मकड़जाल की कहानी है, जिसे भेदने में झारखंड की अब तक की हर सरकार बेबस महसूस करती रही है। सरकार गिराने और चलाने के खेल को महज ताश की बाजी समझने वाले माइनिंग माफियाओं के रसूख के आगे बड़े-बड़े ओहदों बैंने हैं। बालू जैसी आम जनता की जरूरत और विकास की आधार सामग्री पर भी माफिया के कब्जे ने विकास के पूरे तंत्र को ही भ्रष्टाचार के आगोश में ले लिया है।
झारखंड में बालू माफिया के किंगपिन उक्त ठेकेदार के रांची में कडरू ओवरब्रिज के पास स्थित आवास पर बालू के अवैध धंधे का पूरा प्रबंधन काम करता है। जहां से झारखंड की हर अवैध बालू खदान से निकलने वाले एक-एक ट्रक का हिसाब रखा जाता है। कमाल की बात तो यह है कि बालू का वैध कारोबार करने वाली झारखंड सरकार की कंपनी को भी हर डीलर और वितरक की जानकारी हर घंटे यहां दर्ज करानी होती है। सच तो यह है कि झारखंड सरकार की कंपनी के अलावा अधिकतर बालू खदानों पर तलवार लटकी हैं। क्योंकि तीन साल के पट्टों पर खनन करने के बाद ही इन लोगों ने माइनिंग प्लान और पर्यावरण प्लान मंजूर कराए हैं। इसके बाद तीन साल और खनन की हरी झंडी ले ली है। इस तीन साल का विस्तार उक्त ठेकेदार की मर्जी पर निर्भर करता है। उक्त ठेकेदार के द्वारा गैरकानूनी तरीके से वसूली गयी राशि लगभग 200 करोड़ रूपये का बताया जाता है, जिसका बड़ा हिस्सा खान विभाग के बड़े साहब तक इमानदारी से पहुंचा दिया जाता है।
जानकार सूत्रों की मानें तो झारखंड बालू का गैरकानूनी ठेकेदार कडरू ओवरब्रिज के पास कुछ साल पहले नया मकान खरीदा। राजधानी में यह स्थान खान विभाग के छोटे सचिवालय के रूप में मशहूर है। यहां माइनिंग माफियाओं की महफिल सजती है। इसमें खान विभाग के बड़े साहब भी शिरकत करते हैं। यहां माइनिंग कंपनियों के आपसी विवादों का भी निपटारा होता है। खान विभाग के बड़े हाकिम वजनदार फाइलों पर अंतिम फैसले यहीं लेते हैं। यहीं पर बालू की अवैध कमाई का हिसाब होता है और हिस्से के बटवाड़े का लेखा-जोखा रखा जाता है। नेता से लेकर हाकिम तक का हिस्सा तय है। फिर ऊपर वालों की खिदमत में यहीं से थैलियां रवाना की जाती हैं। यहां अब कोयला, लोहा और बाकी खनिजों की भी डील होने लगी है। इस धंधे में पहले से लगे दक्षिण भारतीय महा उस्ताद यहां हाजिरी लगाते हैं।
कहते हैं कि तकरार से शुरू प्यार काफी ऊंचे तक परवान चढ़ता है। उक्त ठेकेदार के भी पूरे झारखंड के बालू रैकेट पर कब्जे की कहानी कुछ वैसी ही है। जब खान विभाग वाले बड़े साहब डालटनगंज में उपायुक्त थे तो ठेकेदार साहब की एक फाइल उनके मेज पर आई। गड़बड़ी देखकर साहब ने मंजूर करने से मना कर दिया। तभी वहां पहुंचे खान विभाग के एक अफसर सिन्हा साहब ने समझाया-‘‘साहब सिद्धांत पर चलने से किसी का भला नहीं होता है। मामला फिफ्टी-फिफ्टी का कर लीजिए। जिंदगी भर का वेतन सालभर में डालटनगंज से लेकर जाएंगे।’’ साहब को बात पते की लगी। सौदा जंचा। डालटनगंज के बाद साहब जिस जिले के भी उपायुक्त बने, वहां ठेकेदार साहब का साम्राज्य फैलाया। सिन्हा भी डालटनगंज के ओहदेदार हो गए। इस बीच झारखंड सरकार की एक एजेंसी ने एक बालू घाट में 35 लाख वर्ग फीट बालू ज्यादा निकालने को लेकर जुर्माने की अनुशंसा की। उस समय के ईमानदार खान सचिव ने कार्रवाई करने की ठान ली। फिर क्या था सिन्हा साहब ने फिर मोर्चा संभाल लिया। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव रहे पटना निवासी अपने रिश्तेदार से खान सचिव को फोन कराया और मामला ठुस करवा दिया। कुछ ही दिनों बाद कई जिलों में उपायुक्त रहने के बाद बड़े साहब भी खान विभाग पहुंच गए। पहले ही दिन ठेकेदार साहब को बुलाया और कहा कि अब खान विभाग की सरकार तुम्हारे हवाले। बस धंधे पर आंच नहीं आए और काम चलता रहे। बालू घाटों में तुम जो चाहोगे वही होगा।
बड़े साहब के खान विभाग संभालने के कुछ ही दिनों बाद पूर्व मंत्री और अभी निर्दलीय विधायक सरयू राय ने खान विभाग में फैले भ्रष्टाचार पर एक ट्विट किया। ट्विट में दी गई जानकारी काफी गोपनीय थी। इसे लीक करने वाले भेदिए की तलाश होने लगी। कुछ पता नहीं चला। आखिरकार साहब ने निदेशालय के हर अफसर का तबादला कर दिया। इसे पुख्ता कर लिया गया कि खान विभाग में पूर्व मंत्री का कोई भेदिया अब मौजूद नहीं है।
ठेकेदार साहब के किस्से लंबे हैं। वर्तमान सत्ता के गलियारे में उनकी धमक है। अभी-अभी कांची नदी पर बना पुल धंस गया। सरकार समर्थक मीडिया ने भ्रम पैदा किया कि यह पुल निर्माण की गुणवत्ता में कमी के कारण धंस गया। लेकिन जानकारों का कहना है कि बालू के अवैध खनन के कारण प्रदेश की नदियां बर्बाद हो रही है। पर्यावरण का जबरदस्त तरीके से शोषण किया जा रहा है। बालू के अवैध शोषण का धंधा यों ही चलता रहा तो प्रदेश के कई पुल और क्षतिग्रस्त होंगे। ब्लॉगर ने एक ठेकेदार की कहानी सार्वजनिक नहीं की है, यहां कई ऐसे जरदगव बैठे हैं, जो प्रदेश को खोखना बनाते जा रहे हैं। उक्त ठेकेदार ने अभी हाल ही में कोई बंद पड़ी सीमेंट की बड़ी फैक्ट्री खरीदी है। जब सरकार और सरकार के नुमाइंदे ठेकेदार और दलाल के साथ हों तो फिर कहना ही क्या है।
(नोट : यह पूरी रिपोर्ट ब्लाॅग झारखंडनामा से ली गयी है। इसमें मैंने अपनी ओर से थोड़ा-बहुत संशोधन किया है। सनद रहे, वायडू, कुपेन्द्र, सिन्हा क्षद्म नाम हैं।)