रूबी खान
बीते अप्रैल महीने, जंतर-मंतर एक बार फिर से चर्चा में आ गया और राष्ट्रीय समाचार माध्यमों की सुर्खिया बटोरने लगा। इस बार मामला पहलवानों का था। भारत के उच्चस्तरीय अंतरराष्ट्रीय कुश्ती पहलवानों में शामिल बजरंग पुनिया, साक्षी मल्लिक, विनेश फोगाट, दीपक पुनिया, सुमित मल्लिक, संगीता फोगाट, अंशू मल्लिक, सोनम मल्लिक और कोचों में शामिल कुलदीप सिंह, सुरजीत मान इत्यादि ने नई दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर 23 अप्रैल, 2023 को सरकार की पैनल रिपोर्ट के उपर असंतोष जताया। उसी दिन कुछ महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ के तत्कालिन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ शारिरिक शोषण का आरोप लगा धरना-प्रदर्शन प्रारंभ कर दिया गया। पहलवानों का यह आन्दोलन 23 अप्रैल से लगातार जारी है। जानकारी में रहे कि सात महिला पहलवानों ने नई दिल्ली स्थित कर्नाट प्लेस पुलिस थाने में बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ शारिरिक शोषण के आरोपों पर प्राथमिकी भी दर्ज कराई है। इध धरने-प्रदर्शन को हरियाणा की खाप पंचायतों, किसान नेताओं तथा उनके संगठनों का भरपूर समर्थन भी प्राप्त हुआ है।
इस मामले में भारत सरकार ने पहलवानों की मुख्य मागों में से कुछ को मानते हुए साकारात्मक निर्णय लिए हैं, जैसे-बृजभूषण के खिलाफ महिला पहलवानों के शारिरिक शोषण के आरोपों पर प्राथमिकी दर्ज करना और भारतीय दंड संहिता की धारा 164 के तहत पीड़िताओं का बयान दर्ज करना तथा 12 मई, 2023 को भारतीय कुश्ती संघ को भंग करना, जिसके परिणाम स्वरूप बृजभूषण की अध्यक्ष के रूप में सभी शक्तियां समाप्त हो गयी हैं।
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उपरोक्त मांगों को मानने के पश्चात धरने की गति मंद पड़ रही है और लोगों के इकट्ठे होने पर रूझान व समर्थन भी कम होने लगा है। सच पूछिए तो भारत सरकार ने महिला पहलवानों के समर्थन में सकारात्मक पहल की है। अब पहलवानों को भी चाहिए कि जब उनकी मुख्य मागें मान ली गयी है, तो अपना धरना-प्रदर्शन वापस ले लें और कानून को अपने तरीके से काम करने दें। इससे सरकार, पुलिस और पीड़ित पक्ष तीनों को आसानी होगी। कानून अपना काम करेगा, जिससे बृजभूषण के विरुद्ध आरोपों की निष्पक्ष रूप से जांच हो पाएगी और दोषी पाए जाने पर उसके विरुद्ध कानून सम्मत कार्रवाई भी की जा सकेगी।
इस मामले में भारत सरकार को भी सतर्क होने की जरूरत है। सरकार को ऐसे नियम कानून बनाने चाहिए जिससे कि भविष्य में कोई प्रभावशाली अधिकारी पहलवानों का शारिरिक शोषण करने की हिम्मत न जुटा जाए। खेल मंत्रालय को खेल से संबंधित लोगों के हाथों में सौंपना चाहिए। खेल मंत्रालय के अंतर्गत भारत सरकार को ऐसी समिति का गठन करना चाहिए जिससे कि महिला पहलवानों की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई हो सके और वर्तमान जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़े। इस समिति में कुछ पूर्व महिला पहलवानों को भी शामिल किया जा सकता है, जिससे समिति बेहतर तरीके से काम करे और उसमें तोकतांत्रिक आदर्श कायम किया जा सके। ऐसी समितियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व जरूरी हो जाता है।
(लेखिका खेल मामले की जानकार हैं। आपके विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)