नमामी गंगे ही क्यों नमामि यमुने क्यों नहीं?

नमामी गंगे ही क्यों नमामि यमुने क्यों नहीं?

हाल ही में जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत ने कहा है कि गोमुख से गंगासागर तक गंगा स्वच्छ हो गई है। यह केवल बयान है अथवा सच्चाई, यह विश्लेषण का विषय है किंतु नमामि गंगे परियोजना जिस प्रतिबद्धता से चल रही है उससे मां गंगा के स्वास्थ्य में सुधार तो दिखाई दे रहा है। क्या मां यमुना नदी नहीं है? फिर उसके लिए प्रतिबद्धता क्यों नहीं? क्या प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर राजनीति का अखाड़ा बन चुकी मृतप्राय यमुना की स्थिति दयनीय नहीं है। नमामि यमुने कब शुरू होगा? क्या वेंटिलेटर पर पड़ी यमुना का दर्द कम है अथवा उसे देखकर भी हम अनजान बने हुए हैं?

क्या यमुना मात्र प्रदूषित जल का नाम है? मेडिकल की शब्दावली में जब किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य में भारी गिरावट आ जाती है, बीमारी अधिक फैल जाती है, सांस लेने में दिक्कत होती है तो उसे वेंटिलेटर पर रखा जाता है। आज यमुना की हालत भी उस बीमार व्यक्ति जैसी ही हो चुकी है। उसमें न तो स्वच्छता है और न ही प्रवाह वह बेजान सी पड़ी है। विडंबना है कि एक तेज प्रवाह वाली, स्वच्छ और स्वस्थ नदी हरियाणा और फिर देश की राजधानी दिल्ली में आकर सबके सामने दम तोड़ रही है। सरकारी व्यवस्थाएं मौन हैं। कभी-कभी दिखावे के लिए मौन टूटता है तो कागजों पर कुछ मीटिंग,इटिंग,फोटो व लाखों-करोड़ों का खर्च। यमुना की सफाई और प्रदूषण जस का तस बना हुआ है। दिल्ली, हरियाणा पर दोषारोपण करती है तो यू.पी. दिल्ली पर। ध्यातव्य है कि समूची जैव संपदा नदियों से प्राप्त जल रूपी जीवन तत्व से ही अस्तित्व में है। नदियाँ ही वह प्रमुख आधार हैं जिस पर किसी समाज अथवा राष्ट्र की अर्थव्यवस्था टिकी होती है। कुएं, ट्यूबवेल, नहरें आदि सिंचाई के स्रोत कहीं न कहीं नदियों से ही पूरित होते हैं। यह विडंबना ही है आज कुकरैल, पाण्डू, ससुरखदेरी, उटांगन, काली, नकटिया, नीम,हिंडन,चंबल, सेंगर, कैन, बेतवा जैसी सैकड़ों नदियां दम तोड़ रही हैं। यमुना की बदहाली भी सर्वविदित है।

हमारी समूची ज्ञान परंपरा में यमुना की महत्वपूर्ण चर्चा एवं प्रतिष्ठा मिलती है। यमुना सूर्य की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की जुड़वां बहन हैं। तपस्वी ऋषियों के तप से सूर्य द्वारा कालिंद पर्वत को यमुना के उद्गम हेतु वरदान की बात अनेक स्थानों पर मिलती है। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने आदिकाव्य रामायण के अयोध्याकांड में यमुना को- संतेरुर्यमुनां नदीम्। अर्थात् सूर्य कन्या यमुना कहकर संबोधित किया है। वहां यमुना की निर्मलता और आध्यात्मिक महत्व का उद्घाटन करते हुए माता सीता, राम और लक्ष्मण के द्वारा यमुना में स्नान एवं पूजा का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। भक्तिकाल का ब्रजभाषा में रचित कृष्ण भक्तिकाव्य तो बिना यमुना के पूर्ण ही नहीं होता। भगवान कृष्ण के जन्म से ही अनेक लीलाएं यमुना के साथ जुड़ी हुई हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी अपनी यमुना छवि नामक कविता के माध्यम से सूर्य पुत्री यमुना कहकर यमुना की शोभा का वर्णन किया है।

अन्य अनेक नदियों की तरह यमुना भी देव तुल्य हिमनदों से जन्म लेती है। हिमालय की श्रंखला के कलिंग पर्वत से उद्भुत होकर यह उत्तराखंड के यमुनोत्री नामक स्थान पर प्रकट होती हैं। कलिंदजा, कालिंदी,यमी,असित, काली गंगा, यमुना, जमुना और जमना आदि विभिन्न नामों से जानी जाने वाली यह नदी यमुनोत्री से प्रकट होकर प्रयागराज तक की लगभग 1400 किलोमीटर की यात्रा तय करके गंगा में मिल जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में वदरी,कमलाद, गिरि, सिरमौर,टोंस आदि नदियां यमुना की सहायक बनती हैं तो मैदानी क्षेत्रों में चंबल, सेंगर, छोटी सिंधु,केन, बेतवा आदि। इन सभी के सहयोग से ही यह गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी बनती है। यमुना का बेसिन लगभग 3,66, 223 वर्ग किलोमीटर माना जाता है,जिसकी पेयजल, सिंचाई एवं औद्योगिक आवश्यकताओं की आपूर्ति इससे जुड़ी है। लगभग 350 किलोमीटर का पर्वतीय रास्ता तय कर यमुना मैदानी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश से होकर हरियाणा के यमुनानगर जिले में हथनी कुंड बैराज पर पहुंचती है। वहां से हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि के लिए नहरें निकाली गई हैं। यहां से आगे बढते ही हरियाणा के लुधियाना और पानीपत जैसे औद्योगिक शहरों का रसायनयुक्त प्रदूषित जल और औद्योगिक कचरा यमुना में गिरना आरंभ होता है। दिल्ली में यमुना सीमावर्ती गांव पल्ला व झंगौला क्षेत्र से प्रवेश करती है और फिर वजीराबाद वाटर वर्क्स पहुंचती है। वजीराबाद वाटर वर्क्स पर प्रवाह को फिर रोका गया है और यहीं से नजफगढ़ ड्रेन और जीटी करनाल बाईपास की तरफ से आने वाला बड़ा नाला बिना उपचारित सीधे भारी प्रदूषित जल के साथ यमुना में गिरता है। इसमें सीवेज की बड़ी मात्रा के साथ-साथ भारी औद्योगिक कचरा और रसायनयुक्त जल भी है। थोड़ा आगे जाते ही आईटीओ नाला, सराय काले खां नाला और कालिंदी कुंज पर नोएडा की तरफ से आने वाला नाला सीधे यमुना में गिरते हैं। कालिंदी कुंज दिल्ली में यमुना का लगभग अंतिम बिंदु है जहां फिर बैराज बनाकर जल रोक दिया गया है और यहां से आगरा नहर जुड़ती है। ध्यातव्य है कि देश की राजधानी यमुना के किनारे, देश की आध्यात्मिक नगरी वृंदावन और मथुरा यमुना के किनारे, विश्व के अजूबों में गिना जाने वाला ताजमहल और औद्योगिक नगरी आगरा यमुना के किनारे हैं। क्या ये ही यमुना के सबसे बड़े प्रदूषक, शोषक और हत्यारे नहीं हैं? क्या संविधान में इस हत्या के लिए किसी दंड का प्रावधान है?

यमुना के किनारे एवं आसपास के सभी गांवों में यमुना को जमना माई कहकर संबोधित किया जाता है। स्नान एवं पूजा की परंपराएं हैं। ये गांव यमुना को प्रदूषित नहीं करते। हाल ही में मैंने स्वयं दिल्ली में यमुना की लगभग पूरी यात्रा की है। दिल्ली में प्रवेश के समय यमुना में बहाव तो कम है लेकिन जल है। वहां जल थोड़ा प्रदूषित है लेकिन वजीराबाद, कश्मीरी गेट बस अड्डा, आईटीओ और फिर कालिंदी कुंज के आगे यमुना में न जल है न बहाव है, है तो केवल सीवेज के नालों की गंदगी। छठ पूजा जैसे बड़े अवसरों पर कुछ घाटों पर सफाई दिखती है। दिल्ली में यमुना में स्नान और आचमन की बात तो दूर उसे छूने से भी त्वचा रोगों का खतरा है।

यमुना क्षेत्र में कुछ खेती हो रही है जहां की सब्जियों को घातक रसायनयुक्त बताते समाचार लगातार छपते रहते हैं। दिल्ली में यमुना लगभग 50 किलोमीटर की यात्रा तय करती है जबकि सरकारी रिकॉर्ड उसे वजीराबाद से कालिंदी कुंज तक 22 किलोमीटर ही गिनता है। इस पूरे ही बहाव क्षेत्र में नदी क्षेत्र की जैव संपदा बुरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। बड़े नालों के अलावा इस पूरे बहाव क्षेत्र में छोटे- बड़े लगभग दो दर्जन नाले यमुना में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से गिर रहे हैं। सीवेज ट्रीटमेंट के नाम पर आईटीओ, ओखला और कोंडली आदि में जो संयंत्र लगे हैं वे आधे अधूरे हैं। क्या यमुना को प्रदूषण मुक्त किए बिना नमामि गंगे परियोजना पूर्णता प्राप्त कर सकती है? क्या उस परियोजना के तहत यमुना की बदहाली ठीक करने के लिए दिल्ली की सरकारी संस्थाओं को धन मुहैया नहीं हुआ है? यदि धन मिला है तो कहां लगा है और यदि धन नहीं मिला तो क्यों नहीं मिला?

विडंबना ही है कि रिहायशी इलाकों का अपशिष्ट तो प्रदूषण कर ही रहा है। इसके साथ-साथ राष्ट्रीय राजधानी की लगभग 40,805 औद्योगिक इकाइयों में से केवल 64 फीसद यानी 26,077 ही कॉमन इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) के रूप में पंजीकृत हैं वहीं 23,149 इकाइयां औद्योगिक कचरा सीधे यमुना में छोड रही थी। क्या शासन-प्रशासन इस अनदेखी के लिए जिम्मेदार नहीं होना चाहिए? आंकड़ों के अनुसार नजफगढ़ ड्रेन यमुना में 70 फीसद प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है जिसमें अकेले गुरुग्राम से निकलने वाले 3 बड़े नालों की हिस्सेदारी 40 फीसद है। क्या उस अपशिष्ट का शोधन वही नहीं होना चाहिए? वर्ष 1993 में बने यमुना एक्शन प्लान का क्या हुआ और क्यों नही हुआ? इस योजना का उद्देश्य था- सीवेज उपचार संयंत्रों का निर्माण करना, कच्चे सीवेज को नदी में न छोड़ने हेतु निगरानी और यमुना को प्रदूषण से मुक्त करने के उपाय आदि। दिल्ली और आसपास के यमुना बेसिन में जनसंख्या वृद्धि,औद्योगीकरण और शहरीकरण का दबाव तो निरंतर बढ़ता गया लेकिन व्यवस्था निर्माण के नाम पर हजारों करोड़ रुपए का बजट लगने के बाद भी धरातल पर परिणाम लगभग शून्य हैं।

यमुना की बदहाली को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है। जिसके अंतर्गत नजफगढ़ ड्रेन की सफाई के लिए प्रयास शुरू हुए हैं। आंकड़ों के अनुसार अब तक इस ड्रेन से 5 लाख मीट्रिक टन गाद निकाली जा चुकी है। इसके साथ-साथ दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट भी विचारणीय है जिसके अनुसार 26 सर्वेक्षित ट्रीटमेंट प्लांट में 16 केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते। दिल्ली जल बोर्ड संसाधनों की कमी कहकर पल्ला झाड़ लेता है तो मुख्यमंत्री अधिकारों और पैसे की कमी की दुहाई देते हैं। कुल मिलाकर अभी तक ढाक के तीन पात वाली बात चरितार्थ हो रही है।

जल स्रोत जीवन और पर्यावरण का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इस संबंध में भारत में जल नियम 1974 में पारित किया गया जिसका उद्देश्य जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण है। इस अधिनियम के अंतर्गत नदियों में जल की गुणवत्ता तथा सफाई के कार्यक्रम चलाए जाए और प्रदूषण के लिए जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही का प्रविधान भी रखा गया। जुलाई 2019 में ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों पर भारी जुर्माना लगाने की बात कही। इसके अंतर्गत दिल्ली एनसीआर समेत कई राज्यों में 100 से अधिक औद्योगिक समूहों को प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्र में चिन्हित किया गया। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने यमुना मैली से निर्मल यमुना पुनर्जीवन योजना 2017 के सभी पहलुओं को गंभीरता से लागू करने की बात कही। तदुपरांत भी यमुना नाले में कैसे तब्दील होती जा रही है?

दोषियों पर दंडात्मक कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही है? क्या माँ यमुना का संकट अथवा हत्या हम सबका सामूहिक संकट नहीं है? हरियाणा, दिल्ली और आगे उत्तर प्रदेश में यमुना भिन्न भिन्न प्रकार के प्रदूषण के साथ-साथ अतिक्रमण का भी शिकार हो रही है। पूजा सामग्री, टूटी फूटी मूर्तियां, वैध एवं अवैध उद्योग जल प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं। दिल्ली,नोएडा,वृंदावन,मथुरा और आगरा जैसे महत्वपूर्ण स्थान भारी शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के केंद्र बन रहे हैं। इन्हें जलापूर्ति यमुना से ही होगी। यदि यमुना नहीं बचेगी तो इन्हें जल कहां से मिलेगा?

आज यह विचारणीय होना चाहिए कि नदी रहेगी तो विकास होगा, जीवन रहेगा और संस्कृति भी रहेगी। इसलिए नदियों का महत्व समझें। देश की सैकड़ों नदियां मर चुकी है। यमुना वेंटीलेटर पर पड़ी है। यमुना को वेंटिलेटर से हटाकर फिर से एक स्वस्थ और जीवनदायिनी नदी बनाना है तो भिन्न भिन्न प्रकार के अपशिष्ट निपटान हेतु व्यापक योजना बनानी होगी। यमुना की स्वच्छता व प्रदूषण मुक्ति को केवल सरकारी कार्यक्रम से हटकर सहकारी अथवा जनभागीदारी बनाने की आवश्यकता है।

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