रांची/ मधुपुर विधानसभा उपचुनाव की रणभेरी बजते ही मधपुर झारखंड की राजनीति का महीने भर के लिए केंद्रबिंदु बन गया है। यहां के परिणामों से सत्ता और सियासत के कई समीकरण तय होने वाले हैं। भाजपा जहां अल्पसंख्यक बहुल विधानसभा क्षेत्र में कामयाबी का झंडा गाड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती है, वहीं झामुमो के लिए हेमंत सरकार बनने के बाद तीसरी विधानसभा सीट पर उपचुनाव जीतकर सत्ता के जनादेश की नाक ऊंची रखने की कवायद है।
जेएमएम के जे समीकरण का तो दारोमदार ही मधुपुर पर टिका है। झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी जेएमएम की सियासत के सामाजिक आधार को राजनीतिक पंडित उसके अल्टरनेटिव फूल फ़ॉर्म जुलाहा-मांझी महतो से परिभाषित करते हैं। इसे मुस्लिम-मांझी-महतो या ट्रिपल एम समीकरण भी कहा जाता है। ज्ञात हो कि झारखंड की स्थानीय भाषाओं की बोलचाल में मुस्लिम समुदाय को समेकित रूप से जुलाहा या जोल्हा कहा जाता है। दिवंगत विधायक हाजी हुसैन अंसारी इस ट्रिपल एम समीकरण में एक एम या जेएमएम में जे का नेतृत्व करते थे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हाजी के बेटे हफीजुल को विधायक बनने से पहले ही मंत्री बनाकर झामुमो में हाजी की विरासत सौंप दी है। इसके साथ ही पार्टी ने हफीजुल को मधुपुर का भावी विधायक मानकर जे समीकरण की भी कमान थमा दी है।
मधुपुर विधानसभा के चुनाव परिणाम का गणित केवल मधुपुर की नुमाइंदगी ही तय नहीं करेगा बल्कि यह प्रदेश में गैर भाजपा सियासी नेतृत्व की केमिस्ट्री भी निर्धारित करेगा। खासकर कांग्रेस और झामुमो के अल्पसंख्यक नेतृत्व की दावेदारी पर काफी हद तक असर करेगा। हफीजुल मुसलमानों में भी अंसारी समुदाय से आते हैं, जिसका राज्य में संख्याबल भी काफी है और सियासत में भी अल्पसंख्यकों की ओर से काफी दबदबा है। हफीजुल अगर जीतते हैं तो उन्हें झामुमो में निर्विवाद रूप से सबसे बड़े मुस्लिम लीडर का तमगा हासिल होगा। वहीं झामुमो वोटों और सीटों की दावेदारी में कांग्रेस की ओर से फुरकान अंसारी को दिखाकर अंसारी और मुस्लिम वोटों पर सबसे अधिक दावेदारी को नकारने की स्थिति में भी होगा। अगर हफीजुल हारते हैं तो झामुमो को पार्टी के लिए नया मुस्लिम चेहरा खोजने की दरकार होगी।
कांग्रेस कोटे से मुस्लिम मंत्री आलमगीर आलम की काट में झामुमो कोटे से भी मुस्लिम मंत्री देने का दबाव पार्टी नेतृत्व पर पड़ सकता है। झामुमो में एक और मुस्लिम विधायक गांडेय से सरफराज अहमद हैं। परंतु वे कद्दावर कांग्रेस नेता और बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। उनकी छवि बुद्धिजीवी राजनीतिज्ञ की भी है। ऐसे में झामुमो में उनका कद ऊंचा करना नेतृत्व को कितना जंचेगा, यह तो समय की कसौटी पर ही तय होगा। इन कारणों से झामुमो अपनी सियासत के सामाजिक आधार को बरकरार दिखाने के लिए मधुपुर फतह के लिए पूरी ताकत लगाएगा।