जब मातृभूमि की रक्षा करना मुसलमानों का कर्तव्य तो भारतीय सशस्त्र सेना में जाने से कतराते क्यों?

जब मातृभूमि की रक्षा करना मुसलमानों का कर्तव्य तो भारतीय सशस्त्र सेना में जाने से कतराते क्यों?

हसन जमालपुरी

इस्लाम में अपनी मातृभूमि के प्रति वफादारी करना धर्म का एक हिस्सा है। इस्लाम में अपने धर्म का पालन करने और अपने देश के प्रति वफादार होने में कोई फर्क नहीं है। कुरान की आयत हमें बताती है, ‘‘ए इमान वालों अल्लाह को मानों, पैगंबर को भी मानों और उसको भी मानों जो तुम्हारे बीच अधिकार रखता हो।’’ 4ः60। अपने देश और इसके लोगों को प्यार करना एक अच्छे मुसलमान की निशानी है। हजरत मोहम्मद ने कहा है अपने देश के प्रति प्यार यानी देशभक्ति तुम्हारे धर्म का हिस्सा है। एक सच्चा मोमीन, मुसलमान अपने देश से बहुत प्यार करता है, इसके हितों की रक्षा करने के लिए कार्य करता है। इसके विपरीत जो अपने देश से प्यार नहीं करते वे एहसान फरामोश हैं। वे गद्दारी की भावना से ग्रस्त होते हैं और इस तरह के लोग न तो सच्चे पवित्र और सच्चे मुसलमान नहीं होते।

मुसलमानों में भारतीय सेनाओं में भर्ती होने के प्रति कुछ आशंकाएं हैं। इसकी वजह अज्ञानता और उनमें विश्वास की कमी होना है। इस प्रकार की मिथ्याओं को सबूत और तथ्यों से दूर करने की जरूरत है ताकि भारतीय सेना की सही छवि प्रस्तुत की जा सके। भारतीय फौज में भारतीय मुसलमानों की नुमाइंदगी एक बहस का मुद्दा रही है और उन कारणों को जानना जरूरी है, जिसकी वजह से ऐसा हो रहा है। भारतीय फौज में अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के लिए किसी प्रकार का आरक्षण नहीं है। इसके लिए यहां एक अनुठी प्रतिनिधित्व व्यवस्था लागू है जो क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखने के लिए की गयी है और जिसका आधार आरएमपीआई रिक्वटेवल मेल पोपुलेशन इंडेक्स। भार्ती योग्य पुरूष जनसंख्या सुची है जिसके द्वारा क्षेत्रीय वितरण को सुनिश्चित किया जाता है व किसी धर्म या जाति के प्रति कोई पक्षपात नहीं किया जाता। यह अधिकारी श्रेणी से निचले स्तर तक लागू होता है। अधिकारी स्तर पर यह सबके लिए खुली प्रतियोगिता है जो योग्या है, उन्हें चुन लिया जाता है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास ऐसे अनेकों मुस्लिम अधिकारियों से भरा पड़ा है जो बहुत उंचे पदों पर पहुंचे। भारतीय सेना में अभी तक 9 मुस्लिम मेजर जेनरल रैंक के अधिकारी हुए हैं, जबकि वायुसेना को एक बार एयर चीफ मार्शल ने कमांड किया है। भारतीय सेना अकादमी आईएमए में एक मुस्लिम कमांडेंट जबकि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी एनडीए में दो कमांडर हुए हैं। इन आंकड़ों में दिनों दिन सकारात्मक वृद्धि होगी और जहां तक भारतीय सशस्त्र सेनाओं का इस बात को साबित करने का प्रश्न है, तो आकाश अंतिम सीमा है। स्काई इज द लिमिट। भारतीय मुसलमानों को बड़ी तादाद में आना चाहिए और इस उत्कृष्ठ व पूर्णतः व्यवसायिक सेना का हिस्सा बनकर अपनी मातृभूमि की सेवा करनी चाहिए।

भारतीय मुसलमानों को यह अवगत कराने की जरूरत है कि भारतीय सेना ही एक मात्र ऐसा संस्थान है जहां राष्ट्रीय अखंडता एक संस्था के रूप में विद्यमान है, जिसका मकसद बहुलवाद, सहिष्णुता, अखंडता और बहुधर्म के अस्तित्व को बढ़ावा देना है। इस प्रकार की सोच कि कोई अपनी मर्जी से इबादत नहीं कर सकता, रोजे नहीं रख सकता और अपनी इच्छानुसार मांस आदि का सेवन नहीं कर सकता। यह बहुत बड़ी गलतफहमी है। भारतीय सेना के सेवानिवृत लेफिनेंट जनरल सैयद अताहसनैन लिखते हैं कि एक ग्रेनेडियर की रेजिमेंट जो मुस्लिम सिपाहियों का ही एक उपयुनिट है को हमेशा ही किसी न किसी गैरमुस्लिम अफसर ने कमांड किया। यह भी एक सच्चाई है कि उन सिपाहियों के साथ वह गैर मुस्लिम अफसर भी 30 दिन रोजे रखता है और उनकी पांचों वक्त की नमाज का नेतृत्व करता है।

ज्हां भी सेना में 120 की संख्या में मुस्लिमान मौजूद हैं, वहां नियम के अनुसार उनका धार्मिक मार्गदर्शन करने के लिए एक धार्मिक शिक्षक की तैनाती अनिवार्य है। जहां कहीं भी मुस्लिम सिपाहियों की उपयुनिट होती है, वहां मंदिर, गिरजा घर और गुरूद्वारा की भांति ही एक मस्जिद का होना भी अनिवार्य है। अगर किसी अखिल भारतीय स्तर की मिली-जुली फौजी यूनिट में मुसलमान ही तैनात हैं तो वहां पर एक सर्वधर्म स्थल स्थापित किया जाता है, जहां सैनिकों को बहुधर्मों के अस्तित्व की अच्छाइयां सिखाई जाती है जो असली भारत की तस्वीर पेश करती है। सेना ऐसा अपने सैनिकों के लिए करती है जिससे उसकी धर्मनिर्पेक्ष और सहिष्णु संस्कृति झलकती है।

भारतीय सशस्त्र सैनाओं के अधिकारियों के लिए एक ही कानून है कि बेशक वे अपना धर्म निभाएं किन्तु सैनिक का धर्म, उसको कमांड करने वाले अफसर का धर्म भी बन जाता है। वैसे तो मुस्लिम नौजवान हर तरफ नौकरियों की तलाश में रहते हैं किन्तु भारतीय सशस्त्र सेनाओं के विभिन्न कैडरों में भर्ती होने से वे झिझकते हैं। भारतीय सैनाएं भारत के ताने-बाने को मजबूत करने में अपना बहुत बड़ा योगदान दे सकती है। अतः मुस्लिम नौजवानों को इनमें भर्ती होकर इसका हिस्सा बनने में गर्व महसूस करना चाहिए।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)

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