सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर आधारित है प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर आधारित है प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति

पंकज कुमार सिंहा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति को देखने से ऐसा लगता है कि यह पूर्ण रूपेण सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से प्रभावित और प्रेरित है। वर्तमान भारत के विदेश नीति में प्रभावशाली राष्ट्रों से समान दूरी बना कर रखने की कूटनीति का व्यापक असर देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 9 वर्ष के कार्यकाल में विश्व पटल पर भारत को नए सिरे से स्थापित किया। अभी हाल ही में मोदी की संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रवास कूटनीति के खयाल से बेहद सफल माना जा रहा है। हालांकि कुछ चरमपंथी मुस्लिम संगठनों ने मोदी के भाषण का वहिष्कार किया लेकिन उस वहिष्कार से भी भारत की रणनीति को फायदा ही हुआ है। अमेरिकी डेमोक्रेट कांग्रेस की सदस्य इहलान उमर के कारनामों से दुनिया परिचित हो गयी और नरेन्द्र मोदी की सधी चाल से पाकिस्तान भी बेनकाब हो गया है। यही नहीं इहलान के कृत्य ने अमेरिका में डेमोक्रेटों के प्रति भी अविश्वास का भाव पैदा कर दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन काल के 9 वर्ष पूरे हो गए है। इस दौरान यह सवाल उठ रहे हैं कि इन वर्षों में भारत की विदेश नीति में आखिर क्या बदलाव आया। खास बात यह है कि मोदी का कार्यकाल अपनी खास विदेश नीति के लिए भी जाना जाता है। प्रधानमंत्री मोदी का बतौर पीएम प्रथम कार्यकाल हो या दूसरा कार्यकाल विशेषज्ञों ने कहा है कि मोदी के नेतृत्व में पिछले 9 वर्षों में भारत की विदेश नीति बहुआयामी रही है। दुनिया के बारे में मोदी सरकार की सोच पुरानी बेड़ियों से मुक्त है। इसमें विदेश मामलों में व्यवहारिक रणनीति पर फोकस बढ़ा है। ऐसे में सवाल उठता है कि मोदी सरकार की विदेश नीति का एजेंडा क्या रहा है। मोदी सरकार की विदेश नीति पिछली सरकारों से कैसे भिन्न रही है।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने प्रथम शपथ ग्रहण समारोह के दौरान ही अपनी विदेश नीति की रूपरेखा स्पष्ट कर दी थी। अपने प्रथम शपथ ग्रहण समारोह में मोदी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सहित दक्षेस के सभी नेताओं को आमंत्रित किया था। इतना ही नहीं अपने पहले विदेश दौरे के लिए उन्होंने भारत के पड़ोसी मुल्क भूटान को चुना तो दूसरी बार पीएम बनने के बाद वह पहली विदेश यात्रा मालदीव की की। मोदी प्रधानमंत्री बनते ही 2014 में पहले दिन से विदेश नीति और विदेशों में भारत की छाप छोड़ना प्रारंभ कर दिया था। अगस्त 2014 में भारत के पड़ोस के अलावा पहली विदेशी यात्रा के दौरान मोदी ने जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ अच्छे संबंध बनाए। एक ऐसी दोस्ती पनपी जो पिछले साल जुलाई में आबे की दुखद हत्या के साथ ही खत्म हुई। प्रधानमंत्री आबे के अंतिम संस्कार में भाग लेने जापान पहुंचे थे।

पिछले 75 वर्षो में नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री है जिन्होंने अरब देशों के विरोध के बावजूद इजरायल की यात्रा कर पूरे विश्व को भारत के बदलते और आत्मनिर्भर विदेश नीति का परिचय दिया है। पीएम मोदी के लिए इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा था, क्रांति शब्द के सबसे अच्छे मायनों में आप क्रांतिकारी नेता हैं। आपके इजराइल आने से पहले हमारे 3000 वर्षों के अस्तित्व में कोई भी भारतीय नेता इजराइल नहीं आया था। आप ऐसा करने वाले पहले भारतीय नेता हैं।

नरेंद्र मोदी अब तक के किसी भी प्रधानमंत्री से ज्यादा विदेश यात्रा कर चुके हैं। इस साल अप्रैल तक उन्होंने 67 विदेश यात्राएं की थीं। इनमें संयुक्त राष्ट्र महासभा की यात्रा भी शामिल है। भारत की विदेश नीति के मामले में सबसे बड़ा बदलाव अमेरिका के साथ संबंधों में आया है। दशकों तक एक दूसरों को चिंता भरी निगाहों से देखने के बाद अब भारत और अमेरिका सबसे नजदीकी रणनीतिक साझेदार हैं। कई ऐसे बुनियादी समझौतों को मंजूर किया है, जिस पर दोनों पक्षों को राजी होने में कई साल लग गए। अमेरिका अब भारत को नई दिल्ली की मॉस्को के साथ की नजदीकी के चश्मे से नहीं देखता। भारत भी अमेरिका को इस्लामाबाद से उसके रिश्तों के चश्मे से नहीं देखता। भारत और अमेरिका के सैन्य और रणनीतिक तौर पर गैर नाटो देशों में सबसे नजदीकी रिश्ते हैं। इस साझेदारी को बनाने में नरेंद्र मोदी का निर्णायक हाथ रहा।

आज अमेरिका भारत का सबसे बड़ा वित्तीय साझेदार है। दोनों देशों के बीच व्यापार अब 162 अरब डॉलर से ज्यादा का है। 20-22 अरब डॉलर का तो हथियारों का ही सौदा है। हमने अमेरिका के साथ सारे बुनियादी समझौतों पर मंजूरी तो दे ही दी है। इनमें से कुछ प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में मंजूर हुए, जो नजदीकी संबंधों का आधार बढ़ाने के लिए हैं। हमने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से चर्चा करके आज सारे मुद्दों पर जीत हासिल कर ली है। प्रधानमंत्री मोदी ने हमारे रिश्तों को एक नया आयाम दिया है।

अमेरिका के साथ भारत के इस रिश्ते से रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक रिश्ते पर कोई असर नहीं पड़ा है। ये बात यूक्रेन के साथ ताजा संकट में साफ हो गई। कीव के साथ करीबी संबंध बनाए रखने के साथ-साथ भारत ने ये भी साफ कर दिया कि हमारी विदेश नीति हमेशा स्वतंत्र रहेगी। इसलिए प्रधानमंत्री ने 2022 के ैब्व् समिट के मौके पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से कहा था कि ये समय युद्ध का नहीं है। यूक्रेन के साथ रूस के जंग के बीच जहां अमेरिका समेत कई देश रूस पर तमाम तरह की पाबंदियां लगा रहे थे. वहीं, भारत ने रूस से तेल आयात की भी मंजूरी दी। इस फैसले की पश्चिमी देशों ने आलोचना भी की, लेकिन नई दिल्ली ने सीधा जवाब दिया।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, अगर यूरोप के देश, पश्चिमी देश और अमेरिका इतने चिंतित हैं, तो वो ईरानी तेल को बाजार में क्यों नहीं आने देते? वेनेजुएला के तेल को क्यों नहीं इजाजत देते? उन्होंने तेल के बाकी सारे स्रोत घेर लिए हैं।और वो कहते हैं कि बाजार जाकर अपने लोगों के लिए सबसे अच्छा सौदा मत करो। मेरे विचार से ये उचित बात नहीं है। एस जयशंकर ने कहा था, यूरोप को इस मानसिकता से बाहर निकलना है कि यूरोप की समस्याएं विश्व की समस्याएं हैं, लेकिन विश्व की समस्याएं यूरोप की समस्याएं नहीं हैं।

मोदी के प्रथम कार्यकाल में पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक का मामला हो या अनुच्छेद 370 हटाने का मसला भारत ने अपने कूटनीतिक कौशल का परिचय दिया है। दोनों मसलों पर पाकिस्तान पूरी तरह से अलग-थलग हो गया। इस दौरान मोदी सरकार ने रूस और अमेरिका दोनों विरोधी देशों के साथ अपनी रिश्तों में निकटता बनाए रखी। मजबूत नेता के नेतृत्व में मजबूत भारत की यही छवि दुनिया भर में बसे भारतीय मूल के लोगों को भा रही है. और उन्हें भारतीय होने पर गर्व हो रहा है, इससे पहले ऐसा कोई भारतीय नेता नहीं रहा, जिसका विदेशों में रहने वाले भारतीयों के साथ ऐसा जुड़ाव रहा हो।

अप्रवासी भारतीयों को भारत के विकास की दिशा से जोड़कर काम पर लगाया, बल्कि भारतीय मूल की पहली, दूसरी, तीसरी और बाद की पीढ़ियों का साथ लिया। इजरायल ने अपने अस्तित्व के लिए ये तरकीबें अपनाई थीं. मेरे विचार से भारत दूसरा देश है जिसने ये कुशलता ग्रहण की है। कोरोना महामारी काल में भारत ने वैक्सीन डिप्लोमेसी में एक मिसाल बनाई है. कोविड जब चरम पर था, तो भारत टीके निर्यात करने वाले पहले देशों में शामिल रहा।

गुयाना के राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए कहा था, उन्हें एक दोस्ताना भारत के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता है, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी साझेदारी के लिए तैयार हो. भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि संकट के दौरान भी वो एक भरोसेमंद साझेदार है। भारतीय कूटनीति की पहुंच ने दुनिया भर में परेशान भारतीय नागरिकों को राहत दी। यूक्रेन, यमन और अब सूडान में फंसे भारतीय नागरिक, प्रधानमंत्री के बनाए नजदीकी रिश्तों के कारण मुश्किल हालात से सही सलामत निकल पाए। आज भारत एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय ताकत के तौर पर स्थापित हो चुका है। जिसको शायद सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक चुनौती में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।

नरेंद्र मोदी की विदेश नीति से भारत को ठोस वित्तीय फायदे भी हुए हैं। हाल में हासिल किए गए इन्हीं फायदों को भारत अपनी सक्रिय विदेश नीति के जरिए सुरक्षित करना चाहता है। भारत को 1.4 अरब नागरिकों की जिंदगियां बेहतर करने के सपने को पूरा करने के लिए सीमाओं पर स्थिरता का रहना जरूरी है. खासकर चीन के साथ भूगौलिक-रणनीतिक रिश्ते सुधरने चाहिए। बेशक चुनौती बहुत बड़ी है. इसमें भारतीय कूटनीति की कुशलता और प्रधानमंत्री मोदी के पर्सनल टच की आजमाइश होगी।

उनकी तस्वीरें भारतीय विदेश नीति को परिभाषित करती हैं। दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेताओं के बीच आत्मविश्वास से भरा एक मजबूत नेता। एक मजबूत भारत का प्रतिनिधि। एक ऐसा देश जो आर्थिक विकास कर रहा है। दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश, जिसे पश्चिमी देश विस्तारवादी चीन के मंसूबों पर विराम लगाने वाले एशिया के शक्तिशाली देश के तौर पर देखते हैं।भारत की विदेश नीति बहुत ही गतिशील है। भारत को ये अहम स्थान हमारी क्षमता, खासकर प्रधानमंत्री की दूसरे नेताओं के साथ साझेदारी में काम करने की क्षमता के कारण मिला है।

(लेखक झारखंड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के सह प्रशिक्षण प्रमुख हैं। आपके विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं हे।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »