भीलवाड़ा, राजस्थान के एक प्रेमी युगल की शौर्य कथा, जिसे आज भी लोग अपने बच्चों को सुनाते हैं

भीलवाड़ा, राजस्थान के एक प्रेमी युगल की शौर्य कथा, जिसे आज भी लोग अपने बच्चों को सुनाते हैं

राजस्थान के रेगिस्तानी वादियों में कई ऐसी प्रेम कथा है, जिसे सुन आप अपने आप को रोक नहीं पाएंगे और भावुक हो जाएंगे। इन कथाओं में रोमांच और रोमांस दोनों है। आपको बदा दें कि आदिवासी समाज अद्भुद है। काम के सिलसिले में देश के कई भागों का भ्रमण कर चुका हूं। पूर्वोत्तर को छोड़ लगभग सभी प्रांतों में जाना हुआ है। हर प्रदेश में वहां की मूल जाति अपने मूल चिंतन और आस्था को आज भी संजोए हुए है। इस समाज के जो मूल्य हैं वह आम भारतीय समाज के मूल्यों से थोड़े भिन्न हैं लेकिन वह समाज में इस प्रकार रचा-बसा है कि उससे अलग कर समाज को पहचानना कठिन हो जाता है। आदिवासी समाज की मान्यताओं के साथ उनके विभिन्न पारंपरिक रीति-रिवाज बेहद रोचक और आकर्षक हैं। आज हम भील जाति की एक प्रेम कहानी पर चर्चा करेंगे। यह कथा वीरजी भील की है। इस कथा में वीरजी भील और उसकी युवा पत्नी चर्चा है। खास कर वीरजी की पत्नी ने जो उसके लिए साहस दिखाया है वह अदम्य है। तो आइए, सुनते हैं, वीरजी भील की प्रेम कथा।

यह कहानी वीरजी भील की है। वीरजी की नई शादी हुई थी। उसकी पत्नी का नाम धीरा था। धीरा, अत्यंत सुंदर और बहादुर लड़की थी। वीरजी शिकार के लिए धनुष-बाण लेकर जंगल गया था। शिकार का भी अपना भाग्य होता है। वह दिन वीरजी के लिए बेहद मनहूंस दिन था। तीर-धनुष लिए वीरजी जंगल छानता रहा लेकिन उसे शिकार नहीं मिला। थककर चूर वह एक पत्थर पर जैसे बैठा उसे निंद आ गयी और देखते ही देखते वह सो गया।

कब शाम हो गयी और कब रात गहराया वीरजी को इसका पता ही नहीं चाला। जंगल की राज कितनी भयावह होती है वह जंगल में रहने वाला ही समझ सकता है। रेगिस्तानी या फिर महाद्वीपीय जलवायु वाले क्षेत्र में तापांतर अधिक होता है। राजस्थान का यह क्षेत्र भी लगभग उसी तरह का है। यहां दिन में गर्मी होती है जबकि रात का तापमान बड़ी तेजी से गिरता है। जैसे ही रात हुई ठंढी हवा चलने लगी। अब वीरजी की तंद्रा टुटी तो निशा का प्रथम पहर बीत रहा था। म नही मन वीरजी ने कहा कि आज की खुराक नसीब न हुई। वह कुछ बुदबुदाता हुआ तीर-धनुष अपने कंधे पर उठाया और घर की ओर चल दिया। उसके पैर बेहद भाराी हो रहे थे। एक तो थकान थी और दूसरा शिकार नहीं मिलने की कष्ट। भारी पांव वह अपने घर की ओर चला जा रहा था। हवा, तेज और ठंढी थी।

तभी किसी ने उसे ललकारा। वह और कोई नहीं क्षेत्र का दुर्दान्त डाकू कालू था। एक झुरमुट की ओट से कालू ने कहा, कौन है, और कहां जा रहे हो? चूंकि वीर थका था और मन भी उसका भारी था उसलिए वह मुठभेड़ टालने की कोशिश करने लगा। लेकिन अपने क्षेत्र में बेरोकटोक घूमने वाले को दस्यु राज कालू कैसे बर्दाश्त करता? डाकू कालू ने अपने हथियार से वीर पर भयंकर प्रहार किया। वीरजी धराशायी हो गया और एक ओर लुढक गया।

काफी रात बीत चुकी थी। जब वीर अपने घर नहीं लौटा तो वीर की पत्नी धीरा अपने पति को ढुंढने निकली। जब धीरा उधर से गुजर रही थी तो उसने देखा उसका पति वीर निढ़ाल जमीन पर पड़ा है और उसके सिर से खून की धारा बह रही है। दस्यु कालू डरावनी-सी हंसी हसता वहीं खड़ा था।

धीरा, सुंदर तो थी ही सथ ही बहादुर भी थी। वह शेरनी की तरह झपटी और अपने दराते से उसने कालू के सिर पर भरपूर वार किया। डाकू कराहता हुआ जमीन पर फैल गया। पति को तब तक होश आ गया था। उसने पहले सामने खड़ी पत्नी को, फिर घायल डाकू को देखा। वीरजी उठा और अपने खून से अपनी पत्नी धीरा की मांग भरी। धीरा और वीर की प्रेम कथा आज भी राजस्थान के भीलवाड़े वाले क्षेत्र में प्रचलित है। धीरा और वीर के शौर्य को आज भी लोग याद करते हैं साथ ही धीरा के जीवन मूल्य और अपने पति के प्रति प्रेम की कथा क्षेत्र में लोग अपने बच्चों को सुनाते हैं।

(देवव्रत जोशी के द्वारा लिखित इस प्रेम कथा को को संपादित कर अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। इस कथा को हिन्दी वेबदुनिया के डिजिटल साइट से प्राप्त किया गया है।)

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