गौतम चौधरी
इस्लाम का सूफी फिरका अध्यात्मिक इस्लामिक रहस्यवाद का नेतृत्व करता रहा है। इस्लाम का सूफीवाद भले वर्तमान भारतीय भूमि पर उत्पन्न नहीं हुआ लेकिन इस अध्यात्मिक रहस्यवाद ने भारतीय संस्कृति को प्रभावशाली तरीके से प्रभावित किया है। मोईउद्दीन चिश्ती, शेख फरीद, बुल्ले शाह से लेकर कई ऐसे सूफी संत हुए जिन्होंने भारत के पारंपरिक आध्यात्मिक ज्ञान को समृद्ध किया। तपस्वी और रहस्यवादी परंपरा हमेशा से प्राचीन भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा हैं। भारत में अपने आगमन के साथ सूफीवाद अपने साथ इस्लाम से पहले मौजूद भारतीय पारंपरिक और धार्मिक पहचान के आधार पर सभी मतभेदों को दूर करने वाला एक विचार लेकर आया।
सूफीवाद ने सामाजिक स्तर पर सांप्रदायिक सौहार्द और शुद्धतावादी दृष्टिकोण से सांप्रदायिक सद्भाव के पोषण में मदद की। सूफियों के संत जीवन और धर्मार्थ व्यवहार ने कई लोगों को आकर्षित किया, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में शांति और सद्भाव की स्थापना हुई। सूफी इस्लाम का मानना है कि मुसलमानों को सैद्धांतिक मुद्दों और सांप्रदायिक मतभेदों को दूर करना चाहिए ताकि इस्लाम का शांति का संदेश पूरी दुनिया में फैलाई जा सके। दुर्भाग्य से, कुछ स्व-प्रशंसित सूफियों के कट्टरपंथी दृष्टिकोण के कारण, जो राजनीति से प्रेरित हैं और दुश्मन देशों के मार्गदर्शन में काम कर रहे हैं, सूफीवाद की प्रासंगिकता को सीमित कर रहा है। इस श्रेणी के सभी सूफियों में से एक सरवर चिश्ती का नाम इन दिनों चर्चा में है।
अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम होने का दावा करने वाले सरवर चिश्ती पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और एसडीपीआई (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) जैसे कट्टरपंथी संगठनों के साथ संबंध के लिए अब जाने जाने लगे हैं। वर्तमान में विभिन्न राज्यों की पुलिस द्वारा पीएफआई की सैकड़ों आपराधिक मामलों जैसे की आर्म्स ट्रेनिंग, आईएसआईएस, देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्ता की जांच की जा रही है। स्व-प्रशंसित सूफी, सरवर चिश्ती ने हाल ही में पीएफआई के समर्थन में एक बयान दिया और मुस्लिम सशक्तीकरण के रूप में उनके आपराधिक कृत्यों को सही ठहराया, जो की एक सूफी उपदेशक के तौर पर बहुत ही घृणित व गैरजिम्मेदाराना बयान है। मुगल सल्तनत काल में भी सूफी संत अमूमन राजनीति से अपने आप को अलग रखते थे लेकिन सरवर चिश्ती साहब न केवल राजनीति में संलिप्त हैं अपितु उन्होंने पीएफआई एवं एसडीपीआई के लिए खुले समर्थन कर सूफीवाद के मूल सिद्धांतों व मूल्यों से अपने आप को काट लिया है। चिश्ती साहब का काम यही खत्म नहीं होता है। उन्होंने सांप्रदायिक भाषण देने के लिए एक संत के मजार क्षेत्र को चुना। सरवर चिस्ती साहब के इस गैर धार्मिक कृत्य ने अजमेर सरीफ दरगाह की धर्मनिरपेक्ष एवं शांतिपूर्ण छवि को ठेस पहुंचाया है। सरवर चिश्ती द्वारा की गई सभी गतिविधियाँ एक सूफी प्रचारक के रूप में उनकी साख पर सवाल खड़ा कर रहा है। चिश्ती साबह के इस कृत्य को किसी कीमत पर सूफियाना अंदाज नहीं कहा जा कसता है।
सूफी परंपराओं के विपरीत, सरवर चिश्ती ने खुद को अजमेर शरीफ दरगाह का संरक्षक होने का झूठा दावा किया, ताकि वे अक्सर पाकिस्तान की यात्रा कर सके। उनका असल मकसद सिर्फ पाकिस्तान के सत्ताधारी प्रतिष्ठान और मीडिया घरानों तक पहुंच हासिल करना है। इस कदम के परिणाम पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए। सरवर की लगातार प्रेस विज्ञप्ति और वीडियो, जिनमे भारत सरकार की आलोचना की जाती है, को पाकिस्तानी मीडिया में व्यापक रूप से भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने के लिए उद्धृत किया जाता है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि सरवर चिश्ती की एक दूसरी पत्नी भी है जो एक पाक सेना अधिकारी की विधवा है। अपनी पत्नी के माध्यम से, सरवर पाकिस्तान के कई शीर्ष सैन्य अधिकारियों से मिल चुके है और वहां के सेना के अधिकारियों के बीच वे पसंद किये जाते है। एक दुश्मन देश की सेना के अधिकारियो के करीब होने से वह क्या हासिल करना चाहता है, यह चिश्ती साहब को सार्वजनिक करना चाहिए। क्या कोई और सूफी इस तरह की नापाक हरकतें कर सकता है? सूफियों की अत्यधिक उदीयमान शांतिपूर्ण छवि को देखते हुए, सरवर चिश्ती का ऐसी गतिविधियों में शामिल होने के कारण उनके खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत विभिन्न बिंदुओं पर एफआईआर दर्ज की गई है।
परिणाम स्वरुप सरवर चिश्ती पीएफआई जैसे कट्टरपंथी संगठनों के अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए मुस्लिम पीड़ित कार्ड खेल रहे हैं। मुस्लिम उत्पीड़न कार्ड की अनिश्चित प्रकृति को देखते हुए, इस मामले में राज्य के हस्तक्षेप से हमारे समाज के एक विशेष वर्ग में अशांति और बेचैनी हो सकती है। इसलिए, यह नागरिक समाज और बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी बनती है की वे संचार के आधुनिक उपकरणों का उपयोग करते हुए सामूहिक पहल करें ताकि सरवर चिश्ती जैसे लोगों के बुरे और देश तोड़क आम भारतीय मुसलमान वाकिफ और जागरूक हो सके। चिश्ती साहब के कारनामों पर ससमय हस्तक्षेप भारत में सूफियों खंडित हो रही छवि को सुधारने में कारगर साबित होगा।