नई दिल्ली/ अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एम्नेस्टी इंटरनेशनल ने अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक हजारा समुदाय पर एक रिपोर्ट जारी की है।
इसमें चश्मदीदों के हवाले से बताया गया है कि तालिबानी, हजारा समुदाय पर किस तरह से जुल्म कर रहे हैं। गजनी, जहां तालिबान ने पिछले महीने कब्जा कर लिया था, वहां एक छोटे से गांव में 9 हजारा लोगों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया।
एम्नेस्टी का कहना है कि जुलाई से अब तक तालिबान ने हजारा समुदाय के जितने लोगों को कत्ल किया है, उनमें 9 लोगों का कत्ल बहुत छोटा सा हिस्सा है।
एम्नेस्टी ने गजनी के छोटे से गांव मुंदारख्त में एक ग्रामीण का इंटरव्यू किया, जो कत्लेआम का चश्मदीद था। उसने बताया, 3 जुलाई को अफगानी फौजों और तालिबानियों के बीच खूनी जंग शुरू हो गई। डर से हम लोगों ने अपना गांव छोड़ दिया और गर्मी के मौसम में जो हमारे चारागाह थे, हम वहां चले गए। ये हमारे वो पारंपरिक ठिकाने हैं जहां अस्थाई घर बने हैं। जब गांव से हम 30 परिवार भागे थे तो हमारे पास पर्याप्त मात्रा में खाना-पीना नहीं था।
4 जुलाई की सुबह 5 मर्द और 4 औरतें गांव लौटे, ताकि कुछ रसद जमा कर सकें। हमने देखा कि हमारे घरों को लूट लिया गया था। तालिबानी आराम से लेटे हुए हमारा इंतजार कर रहे थे।
45 साल के वाहेद करामान को तालिबानियों ने उसके घर से उठा लिया था। उसके हाथ-पैर तोड़ दिए गए थे। उसके पैर में गोली मार दी थी और उसके बाल उखाड़ लिए थे। उसके चेहरे को कुचल दिया था। 63 साल के जफर रहीमी को भी इसी तरह बेरहमी से पीटा गया था। उसकी जेब में कुछ कैश मिला तो तालिबानियों ने उस पर इल्जाम लगाया कि वह अफगान सरकार के लिए काम करता है। इसके बाद तालिबानियों ने रहीमी का गला उसी के मफलर से घोंट दिया। रहीमी को गांव के तीन लोगों ने दफन किया। उन्होंने बताया कि उसके पूरे जिस्म पर जख्म थे और बांह की पेशियां तक उखाड़ ली गई थीं।
40 साल के अब्दुल हाकिम को तालिबानी घर से खींच लाए और लाठियों और बंदूकों के बट से उसे पीटा। उसकी बांह उखाड़ ली। दो गोलियां पैर में और दो सीने पर मारी थीं। पास के एक गड्ढे में उसकी बॉडी फेक दी थी। हमने सबको कफन-दफन किया। हमने तालिबानियों से सवाल किया कि ये सब क्यों कर रहे हो, तो उन्होंने जवाब दिया-जब जंग होती है तो सभी मरते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे पास बंदूकें हैं या नहीं। सभी को मरना पड़ता है।
दो दिन तक कत्ल का ये दौर चलता रहा। तीन और लोगों-अली जन टाटा (65), जिया फकीर शाह (23) और गुलाम रसूल रेजा (53) को कत्ल किया गया। ये लोग मुंदारख्त से निकलकर पास के अपने गांवों में जाने की कोशिश कर रहे थे। तालिबानी चेक पोस्ट पर इन्हें रोका गया और वहीं पर कत्ल कर दिया गया। दो लोगों को पैर और सीने पर गोलियां मारी गईं। जिया फकीर के सीने पर इतनी गोलियां मारी गई थीं कि उसे टुकड़ों में दफन करना पड़ा।
तीन और लोगों को उनके घरों में ही कत्ल कर दिया गया। 75 साल के सईद अहमद तालिबानियों के आगे गिड़गिड़ा रहे थे कि वो बुजुर्ग हैं और उन्हें बख्श दिया जाए, उन्हें अपने जानवरों को चारा देना है। तालिबानियों ने उन्हें तीन गोलियां मारी थीं। 28 साल का जिया डिप्रेशन का शिकार था और शायद ही कभी अपने घर से बाहर आता था। जब तालिबानियों ने गांव पर कब्जा किया तो उसने घर छोड़ने से इंकार कर दिया। मां ने मिन्नतें कीं तो घर छोड़ दिया। अकेला ही पास के इलाके में जा रहा था, तभी तालिबानियों ने उसे पकड़ा और कत्ल कर दिया। इसी तरह दिमागी बीमारी से जूझ रहे 45 साल के करीम बख्श को भी सिर में गोली मारी गई।
तारीख 8 अगस्त 1998, तालिबान के लड़ाकों ने अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ में दाखिल होते ही कोहराम मचाना शुरू कर दिया था, जो जहां मिला गोली मार दी। कई दिन तक हजारा समुदाय के हजारों लोगों को चुन-चुन कर मारा गया। तालिबान ने लाशें भी दफन नहीं करने दीं। तब बल्ख के तालिबान गवर्नर मुल्ला मन्नान नियाजी ने एक भाषण में कहा था, उज्बेक लोग उज्बेकिस्तान जाएं, ताजिक ताजिकिस्तान चले जाएं और हजारा या तो मुसलमान बन जाएं या कब्रिस्तान जाएं।
अब 23 साल बाद एक बार फिर अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत लौट आई है। इसको लेकर हजारा लोग दहशत में हैं। ऐसी रिपोर्ट्स आईं हैं कि कई जगहों पर उनकी बेटियों से तालिबानी लड़ाके जबरन शादी भी कर रहे हैं। हालांकि, अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है, जबकि कुछ इलाकों में कत्लेआम की भी खबर है।