सरफराज खान
विभिन्न संस्कृतियों के देश भारत में एक नहीं दो नहीं बल्कि अनेक नववर्ष मनाए जाते हैं। यहां के अलग-अलग समुदायों के अपने-अपने नववर्ष हैं। अंग्रेजी कैलेंडर का नववर्ष एक जनवरी को शुरू होता है। इस दिन ईसा मसीह का नामकरण हुआ था। दुनियाभर में इसे धूमधाम से मनाया जाता है।
मोहर्रम महीने की पहली तारीख को मुसलमानों का नया साल हिजरी शुरू होता है। मुस्लिम देशों में इसका उत्साह देखने को मिलता है। इस्लामी या हिजरी कैलेंडर, एक चंद्र कैलेंडर है जो न सिर्फ मुस्लिम देशों में इस्तेमाल होता है बल्कि दुनियाभर के मुसलमान भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए इसी का इस्तेमाल करते हैं। यह चंद्र-कैलेंडर है जिसमें एक वर्ष में बारह महीने और 354 या 355 दिन होते हैं। क्योंकि यह सौर कैलेंडर से 11 दिन छोटा है इसलिए इस्लामी तारीखें जो कि इस कैलेंडर के अनुसार स्थिर तिथियों पर होतीं हैं लेकिन हर वर्ष पिछले सौर कैलेंडर से 11 दिन पीछे हो जाती हैं। इसे हिजरी इसलिए कहते हैं क्योंकि इसका पहला साल वह वर्ष है जिसमें हजरत मुहम्मद की मक्का शहर से मदीना की ओर हिज्र या वापसी हुई थी।
हिंदुओं का नववर्ष नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा में पहले नवरात्र से शुरू होता है। मान्यता है कि इस दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। जैन नववर्ष दीपावली से अगले दिन होता है। भगवान महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन यह शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं। बहाई धर्म में नया वर्ष ‘नवरोज’ हर वर्ष 21 मार्च को शुरू होता है। बहाई समुदाय के ज्यादातर लोग नव वर्ष के आगमन पर 2 से 20 मार्च अर्थात् एक महीने तक व्रत रखते हैं। गुजराती 9 नवंबर को नववर्ष ‘बस्तु वरस’ मनाते हैं। अलग-अलग नववर्षों की तरह अंग्रेजी नववर्ष के 12 महीनों के नामकरण भी बेहद दिलचस्प है।
जनवरी, रोमन देवता ‘जेनस’ के नाम पर वर्ष के पहले महीने जनवरी का नामकरण हुआ। मान्यता है कि जेनस के दो चेहरे हैं। एक से वह आगे और दूसरे से पीछे देखता है। इसी तरह जनवरी के भी दो चेहरे हैं। एक से वह बीते हुए वर्ष को देखता है और दूसरे से अगले वर्ष को। जेनस को लैटिन में जैनअरिस कहा गया। जेनस जो बाद में जेनुअरी बना जो हिन्दी में जनवरी हो गया।
फरवरी, इस महीने का संबंध लैटिन के फैबरा से है। इसका अर्थ है ‘शुद्धि की दावत’ । पहले इसी माह में 15 तारीख को लोग शुद्धि की दावत दिया करते थे। कुछ लोग फरवरी नाम का संबंध रोम की एक देवी फेबरुएरिया से भी मानते हैं जो संतानोत्पत्ति की देवी मानी गई है इसलिए महिलाएं इस महीने इस देवी की पूजा करती थीं।
मार्च, रोमन देवता ‘मार्स’ के नाम पर मार्च महीने का नामकरण हुआ। रोमन वर्ष का प्रारंभ इसी महीने से होता था। मार्स मार्टिअस का अपभ्रंश है जो आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। सर्दियों का मौसम खत्म होने पर लोग शत्राु देश पर आक्रमण करते थे, इसलिए इस महीने का नाम मार्च रखा गया।
अप्रैल, इस महीने की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘एस्पेरायर’ से हुई। इसका अर्थ है खुलना। रोम में इसी माह बसंत का आगमन होता था, इसलिए शुरू में इस महीने का नाम एप्रिलिस रखा गया। इसके बाद वर्ष के केवल दस माह होने के कारण यह बसंत से काफी दूर होता चला गया। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के सही भ्रमण की जानकारी से दुनिया को अवगत कराया तब वर्ष में दो महीने और जोड़कर एप्रिलिस का नाम पुनः सार्थक किया गया।
मई, रोमन देवता मरकरी की माता ‘मइया’ के नाम पर मई नामकरण हुआ। मई का तात्पर्य ‘बड़े-बुजुर्ग रईस’ हैं। मई नाम की उत्पत्ति लैटिन के मेजोरेस से भी मानी जाती है।
जून, इस महीने लोग शादी करके घर बसाते थे। इसलिए परिवार के लिए उपयोग होने वाले लैटिन शब्द जेन्स के आधार पर जून का नामकरण हुआ। एक अन्य मान्यता के मुताबिक रोम में सबसे बड़े देवता जीयस की पत्नी जूनो के नाम पर जून का नामकरण हुआ।
जुलाई, राजा जूलियस सीजर का जन्म एवं मृत्यु दोनों जुलाई में हुई। इसलिए इस महीने का नाम जुलाई कर दिया गया। अगस्त, जूलियस सीजर के भतीजे आगस्टस सीजर ने अपने नाम को अमर बनाने के लिए सेक्सटिलिस का नाम बदलकर अगस्टस कर दिया जो बाद में केवल अगस्त रह गया। सितंबर, रोम में सितंबर सैप्टेंबर कहा जाता था। सेप्टैंबर में सेप्टै लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है सात और बर का अर्थ है वां यानी सेप्टैंबर का अर्थ सातवां लेकिन बाद में यह नौवां महीना बन गया। अक्टूबर, इसे लैटिन ‘आक्ट’ (आठ) के आधार पर अक्टूबर या आठवां कहते थे लेकिन दसवां महीना होने पर भी इसका नाम अक्टूबर ही चलता रहा। नवंबर, नवंबर को लैटिन में पहले ‘नोवेम्बर’ यानी नौवां कहा गया। ग्यारहवां महीना बनने पर भी इसका नाम नहीं बदला एवं इसे नोवेम्बर से नवंबर कहा जाने लगा। दिसंबर, इसी प्रकार लैटिन डेसेम के आधार पर दिसंबर महीने को डेसेंबर कहा गया। वर्ष का बारहवां महीना बनने पर भी इसका नाम नहीं बदला।
(युवराज)
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)