डाॅ. चैतन्य सक्सेना
हिंदी फिल्मों के इतिहास में आशा पारेख का नाम एक लाजवाब अदाकारा, एक बेमिसाल नृत्यांगना एवं एक बेहद कामयाब हीरोइन के रूप में दर्ज है। सन् 59 से सन् 63 तक का समय उनके फिल्मी कैरियर का स्वर्णिम काल माना जा सकता है। इस दौरान उनकी एक के बाद एक कई फिल्में सुपर हिट हुईं।
इन फिल्मों की कामयाबी ने उन्हें शोहरत के ऊंचे मुकाम पर पहुंचा दिया और सुपर स्थान का दर्जा दिला दिया। उनकी बिंदास एवं टाॅम ब्वाॅय की छवि ने उन्हें करोड़ों जवां दिलों की धड़कन बना दिया था। उन्होंने लगभग डेढ़ दशक तक अपने लाखों करोड़ों चाहने वालों के दिलों पर राज किया।
अपने दौर की सुपर स्टार आशा पारेख का जन्म 2 अक्तूबर 1942 को मुंबई में एक मध्यम वर्गीय जैन गुजराती परिवार में हुआ। उनकी मां ने उन्हें बचपन से ही शास्त्रीय नृत्य की तालीम दिलाना शुरू कर दिया था। नृत्य गुरू पंडित बंशीलाल भारती से भी उन्होंने शास्त्रीय नृत्य की तालीम हासिल की।
आशा पारेख ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत एक बाल कलाकार रूप में सन् 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘अरमान’ से की। मशहूर फिल्म निर्देशक विमल राय ने उनकी नृत्यकला से प्रभावित होकर सन् 1954 में प्रदर्शित अपनी फिल्म ‘बाप बेटी’ में एक किरदार निभाने को दिया। बतौर हीरोइन ‘दिल दे के देखो’ उनकी पहली हिंदी फिल्म थी। शम्मी कपूर इस फिल्म में उनके हीरो थे।
उनकी पहली ही फिल्म सुपर हिट हुई, उन्होंने शोहरत और कामयाबी के रास्ते पर मजबूती के साथ जो के पहला कदम बढ़ाया, फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मशहूर निर्देशक नासिर हुसैन की वो बेहद पंसदीदा हीरेाइन थीं। यही वजह रही कि उन्होंने अपनी आधा दर्जन फिल्मों ‘जब प्यार किसी से होता’ है, ’फिर वही दिल लाया हूं’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘बहारों के सपने’, ‘प्यार का मौसम’ एवं ‘कारवां’ में आशा पारेख को ही हीरोइन के रूप में लिया। इनमें से ‘बहारों के सपने’ छोड़कर बाकी सभी फिल्मों ने बाक्स आफिस पर धूम मचाई।
आशा पारेख की झोली ढेर सारे सम्मान एवं अवार्डस से भरी है। फिल्म ‘कटी पतंग’ में शानदार अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला। 1992 में उन्हें पदम श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। सन 2002 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। इनके अलावा उन्हें कई संस्थाओं ने अवार्ड देकर सम्मानित किया है। आशा पारेख सन 1948 से 2001 तक सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष भी रही हैं। इसके अलावा सन् 1994 से 2000 तक सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष का पद भी संभाला। 81 साल की उम्र में भी वे अपने को सामाजिक कार्यों में व्यस्त रखती है।
(आलेख में व्यक्त लेखक के विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)