शादाब सलीम
संविधान बचाना, लोकतंत्र बचाना और धर्मनिरपेक्षता बचाना, यह सब विपक्ष के घिसे पिटे बुरी तरह औंधे मुंह गिरे हुए मुद्दे हैं। यह ऐसे फ्लॉप हुए हैं जैसे रामगोपाल वर्मा की आग फ्लॉप हुई थी। वास्तव में सफल मुद्दा धर्म बचाना, सनातन बचाना है। इसमें जनता का अच्छा इंटरेस्ट है। विपक्ष जब भी संविधान,लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता बचाने पर उतारू होता है तब एनडीए धर्म बचाने पर उतर आती है, वास्तव में विपक्ष खेलता ही गलत पिच पर है। धर्म बनाम धर्मनिरपेक्षता का द्वंद्व रचा जाता है और विपक्ष उसमें फंस जाता है। एक तरह से न धर्म खतरे में हैं न लोकतंत्र और न ही संविधान, धर्मनिरपेक्षता को थोड़े बहुत खतरे में माना जा सकता है लेकिन धर्मनिरपेक्षता को बचाने वाली कोई जनता इस देश में है नहीं क्योंकि धर्मनिरपेक्षता किसी को नहीं चाहिए. जो धर्मनिरपेक्षता बचाने निकल भी पड़ते हैं, यह उनकी मजबूरी का मामला है।
अब देखिए जो चीजें खतरे में ही नहीं हैं उन्हें बचाने हेतु लड़ाई लड़ी जा रही है और यह लड़ाई दोनों तरफ से लड़ी जाती है। यह एकदम बकवास, बोकस और लफ्फाजी से भरा हुआ मुद्दा है। ऐसे किसी द्वंद्व की जरूरत ही नहीं है। समस्या तो बेरोजगारी, महंगाई, आवास, कम भुगतान पर काम हैं जिनपर द्वंद्व होते ही नहीं हैं और होते भी हैं तो दो चार दिन में ठंडे पड़ जाते हैं। बुरी तरह राजनीतिक वेश्यावृत्ति में लिप्त टीवी मीडिया धर्म बनाम धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा बनाकर रखती है. वह सांप्रदायिकता को धर्म साबित कर देते हैं और उनका सदाबहार मुद्दा सनातन विरुद्ध ओवैसी है जिसे वह बाकायदा प्रायोजित कार्यक्रम की तरह चलाते हैं। राहुल गांधी ने भी पता नहीं किस चाटूकार के कहने पर मोहब्बत की दुकान जैसे फर्जी मुद्दे पर काम करना शुरू कर दिया. यह मुद्दा भी मीडिया द्वारा प्रायोजित उस मुद्दे की तरह ही है।
विपक्ष को अगर सरकार चाहिए तो इन लफ्फाजी वाले मुद्दों से दो मील दूर हट जाना चाहिए. इस देश में बराबर लोकतंत्र काम कर रहा है और संविधान बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट है. फिर संविधान में ऐसा क्या बिगड़ रहा है जिसे बचाने चार दीवाने निकल रहे हैं. रही धर्मनिरपेक्षता तो इस देश की एक प्रतिशत से भी कम आबादी धर्मनिरपेक्ष है. यहां के लोग कभी धर्मनिरपेक्ष रहे ही नहीं. संविधान में भी यह शब्द जबरदस्ती बाद में फंसाया गया है. इसका विशेष रूप से उल्लेख करने की जरूरत ही नहीं है। विपक्ष को इन सब फर्जी मुद्दों को छोड़कर इंडिया गठबंधन पर काम करना चाहिए अन्यथा फिर से आ रहे हैं मोदी साहब। यदि इंडिया गठबंधन नहीं बना तो फिर एनडीए सरकार निश्चित,यदि बन जाता है तो एनडीए किसी को तोड़े बगैर सरकार नहीं बना पाएगा।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)