गौतम चौधरी
हिमांचल प्रदेश की यह झील कई रहस्यों को अपने में समेटे हुए है। लोग कहते हैं कि यहां रात में परियां उतरती हैं, जबकि दिन में यहां जलपरी का जमावड़ा रहता है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले झील सम्मोहित करके अपने पास बुलाती है। लोग जैसे ही झील में उतरते हैं कोई अलौकिक शक्ति उसे जल के अंदर खींच लेता और उसकी मृत्यु हो जाती है।
इस झील को हिंदू धर्म की पवित्र झीलों में से एक माना जाता है। यह झील हिमालयी नदी चंद्रा का स्रोत है, जो चिनाब की सहायक नदियों में से एक है।
अगर किदवंतियों की बात करें तो चंद्रा, जो भगवान चंद्रमा की बेटी और भागा, भगवान सूर्य के पुत्र थे, उन दोनों के प्रेम की निशानी यह झील है। स्थानीय कथा के अनुसार दोनों एक दूसरे के प्यार में पागल थे, लेकिन उनके माता-पिता को दोनों का साथ मंजूर नहीं था।
कहा जाता है कि दोनों ने उस दर्रे, जहां वे पहली बार मिले थे, बारालाचा ला से भागने का फैसला किया, लेकिन दोनों दीप्तिमान चंद्रभागा नदी पर मिले, जहां उनका स्वर्गीय गठबंधन हुआ। इसके बाद दोनों अपने प्रेम का उत्सर्ग कर दिया और दो ताल बन गए। एक का नाम सूरज ताल और दूसरा चंद्रताल नामक झील बन गया।
चंद्रताल की प्रसिद्ध झील का उल्लेख हिंदू पौराणिक कथाओं में भी किया गया है। पैराणिक कथा के अनुसार कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध में कौरवों को हराने के बाद पांचों पांडव लंबे समय तक पृथ्वी का राज भोगे। इसके बाद अंतिम यात्रा के लिए द्रौपदी के साथ पांचो भाई स्वर्ग के लिए निकल पड़े। एक-एक कर सभी भाई और द्रौपदी हिमालय के बर्फ में समा गए लेकिन युधिष्ठिर अपने पालतू कुत्ते के साथ बचे रहे। कुत्ता उनका धर्म था। इसीलिए कहा जाता है कि धर्म और प्रारब्ध व्यक्ति का साथ कभी नहीं छोड़ता है। इस कथा में कुत्ता को धर्म का प्रतीक बताया गया है। कथानुसार धर्मराज युधिष्ठिर को इंद्र ने स्वर्ग के लिए इसी झील के पास से उठाया था।
स्थानीय लोगों का मानना है कि चंद्रताल झील में रात को परियां आती हैं। ऐसी ही एक कहानी पास के गांव हंसा के एक चरवाहे की है, जो अपने मवेशियों को चराने झील पर जाया करता था। उसे एक दिन एक परी दिखी और दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया।
स्थानीय कथा अनुसार, चरवाहा पहले से ही शादीशुदा था लेकिन उसने परी को यह नहीं बताया। उसे डर था कि अगर यह बात वह परी को बताएगा तो वह छोड़कर चली जाएगी।
एक दिन गलती से उसके मुंह से निकल गया कि वह शादीशुदा है। इसके बाद परी वहां से चली गई और चरवाहा उसके इंतजार में पागल हो गया और वहीं झील के किनारे मर गया। स्थानीय लोग बताते हैं कि यदि रात में कोई झील के पास जाता है, तो उसे चरवाहे की आवाज और वह चलता हुआ दिखता है।