बिहार की शिक्षा व्यवस्था में संवेदनहीनता से उपजे कई सवाल

बिहार की शिक्षा व्यवस्था में संवेदनहीनता से उपजे कई सवाल

यदि भारत के जलवायु भूगोल का सामान्य अध्ययन भी किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि मार्च-अप्रैल से लेकर मई- जून तक ग्रीष्म ऋतु होती है। उत्तर भारत में मध्य मई तक सामान्य गर्मी होती है। औसत तापमान 32 डिग्री से 35- 36 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है। 15 मई के बाद 15 जून तक सूर्य कर्क रेखा पर प्रायः लंबवत आपतित होता है जिसके कारण संपूर्ण उत्तर भारत में भीषण गर्मी पड़ती है। पश्चिमोत्तर भाग से लेकर इसका प्रभाव पूर्व में बिहार और पश्चिम बंगाल तक पड़ता है। तीव्र गति से गर्म शुष्क हवाएं चलती है जिसे लू कहा जाता है। इस बार गर्मी ने कई दशकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है।15 जून के पश्चात पश्चिमोत्तर भारत में निम्न दाब बलवती होने के फलस्वरूप हिंद महासागर से दक्षिण पश्चिमी मानसूनी हवा चलने लगती है और फिर मौसम वर्षा ऋतु का आ जाता है।

हर वर्ष सामान्यतः अंग्रेजों के शासन के समय से ही मध्य मई से मध्य जून के आसपास तक सभी सरकारी और प्राइवेट विद्यालयों को ग्रीष्म अवकाश के रूप में बंद करने की परिपाटी रही है लेकिन इस वर्ष बिहार में सरकार की संवेदनहीनता को प्रदर्शित करते हुए 15 अप्रैल से 15 मई तक छुट्टी बच्चों को दी गई जबकि विशेष एवं दक्ष क्लास के नाम पर शिक्षकों को स्कूल आने के लिए बाध्य किया गया। बहरहाल बंद विद्यालय में कितने बच्चे आए होगें,इस पर कहने की जरूरत नहीं है। इस दौरान गर्मी भी नहीं पड़ रही थी। पूर्व के वर्षों में इस अवधि में बच्चे मॉर्निंग शिफ्ट में पढ़ते रहें हैं और जब वास्तविक रूप से 15 मई के बाद भीषण गर्मी पड़ने लगती थी तो छुट्टी हो जाती थी।

15 मई के बाद विद्यालय खुल गए। इस दौरान हीट वेव की स्थिति में 48 डिग्री, 49 डिग्री सेल्सियस के तापमान में विद्यालय में पंखा कूलर के अभाव में रहना मुश्किल हो गया। समय भी सुबह छह बजे होने के कारण बच्चे भूखे पेट आने लगे। इसका परिणाम हुआ कि दर्जनों बच्चे और शिक्षक बीमार और बेहोश हुए। उसके बाद आनन फानन में स्कूल बंद कर दिए,फिर भी शिक्षकों को बुलाया गया। शायद इसी फैसले से आहत अपर सचिव के के पाठक जी लंबी छुट्टी पर चले गए। नए अपर सचिव एस सिद्धार्थ के पद पर आने के बाद शिक्षकों की उपस्थिति के समय निर्धारण के लिए जिला शिक्षा पदाधिकारी को अधिकृत कर दिया गया।

अब 10 जून को विद्यालय पुनः खुला, लेकिन भीषण गर्मी के कारण फिर वही घटनाएं सुनने को मिली। मौसम विभाग भी हीटवेव और गर्म पछुआ हवा चलने की भविष्यवाणी की और लोगों को दोपहर में बाहर न निकलने की सलाह दी। इस घटना के बाद शिक्षा विभाग ने अपनी संवेदनशीलता को दिखाते हुए विद्यालय को 15 जून तक बंद करने का आदेश पारित किया। सबसे महत्वपूर्ण बात कि उन्होंने शिक्षकों के लिए भी इस दौरान छुट्टी का प्रावधान किया। शिक्षकों ने मांग किया कि भले ही हमें छुट्टी नहीं दी जाए,लेकिन इन फूल से कोमल बच्चों की जान से खिलवाड़ न किया जाए। अभी सभी निजी विद्यालय बंद हैं। बच्चे अपने अनुकूल वातावरण में गर्मी से बच रहे हैं।

अब बड़ा सवाल यह है कि एक अव्यवहारिक फैसले के कारण गरीब बच्चों की पढ़ाई लगातार दो महीने तक बाधित रही,इसकी भरपाई कौन करेगा?? अभी तक सिलेबस शुरू नहीं हुआ और छह महीने के बाद मैट्रिक,इंटर की वार्षिक परीक्षा होगी तो पढ़ाई पूरी कैसे होगी! क्या एक साल की पढ़ाई छह महीने में हो सकती है?? यदि हम जाड़े में ही गर्मी की छुट्टी दे दें तो क्या प्रकृति गर्म होना छोड़ देगी?? क्या प्रकृति के नियमों को हम बदल सकते हैं? क्या प्रकृति का यह क्रूर रूप मानव द्वारा उसपर नियंत्रण का ही प्रतिफलन नहीं है?? ये कुछ सवाल हैं, जो हमारा पीछा नहीं छोड़ सकते।।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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