हसन जमालपुरी
भारतीय कानून प्रणाली में सुधार का संघर्ष निरंतर चल रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को न्याय पहुंचाना और कानूनी प्रक्रियाओं में सुधार करना है। हाल ही में भारतीय संविधान में कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं, जिन्होंने कानूनी प्रक्रियाओं में बदलाव लाने के साथ-साथ न्यायिक प्रणाली की दृष्टिकोण को भी समायोजित किया है। बीते एक जुलाई से बदले गए सारे कानून प्रभावी हो गए हैं। अब उन्हीं कानून के द्वारा हमें न्याय दिलाया जाएगा। या हम उन्हीं कानून के द्वारा न्यायालय में अपने लिए न्याय मांग सकते हैं। इसलिए इन कानूनों को जानना बेहद जरूरी है। सथ ही इसकी सकारात्मका पर भी गौर किया जाना चाहिए।
भारतीय कानून में किए गए कुछ महत्वपूर्ण संशोधनों ने न्यायिक प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए हैं। ये संशोधन न केवल कानूनी प्रक्रियाओं को तेजी से और सुलभता से व्यवस्थित करने का प्रयास करते हैं, बल्कि न्याय पहुंचाने में भी सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते दिखते हैं।
सबसे पहले, संशोधन ने अपराधिक मामलों के न्याय दिलाने में समय सीमा को निर्धारित करने के प्रयास किए हैं। अब 35 धाराओं में ऐसी समय सीमाएं तय की गई हैं, जिनका पालन करना अदालतों के लिए अनिवार्य होगा। इससे अदालतों में मामले तेजी से सुने जा सकते हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रियाओं में तेजी आएगी और पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय मिल पाएगा।
भारतीय दंड संहिता में नए बदलाव का दूसरा पक्ष भी बेहद महत्व का है। दूसरा महत्वपूर्ण सुधार यह है कि अब इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दर्ज की गई शिकायतों को संबंधित एजेंसियों में तुरंत एफआईआर दर्ज किया जा सकता है। यह प्रक्रिया न केवल समय बचाएगी, बल्कि अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने में भी सहयोगी होगी। इससे लोगों को न्याय मिलने में जो समय लगता था उसमें कमी आ जाएगी।
तीसरा महत्वपूर्ण सुधार यह है कि अब घोषित अपराधियों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया जा सकता है। यह विशेष रूप से बड़े अपराधों के मामलों में न्याय पहुंचाने में महत्वपूर्ण होता है, जहां प्रमुख अभियुक्त अनुपस्थित हो सकते हैं।
चौथा सुधार यह है कि अब बलात्कार पीड़िता के लिए ई-बयान, जीरो एफआईआर, ई-एफआईआर और चार्जशीट डिजिटल रूप से होंगे। इससे पुलिस की कार्रवाई तेज़ और पारदर्शी होगी, जिससे अपराधियों को जल्दी न्यायिक प्रक्रिया में शामिल किया जा सकेगा।
भारतीय दंड सहिता में अगला बदलाव, अब 7 साल या उससे अधिक की सजा वाले सभी अपराधों में फोरेंसिक विशेषज्ञों की भूमिका अनिवार्य होगी। इससे अपराधियों के खिलाफ प्रमाण सम्पर्क में बदलाव आ सकता है और न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी।
दंड सहिता में पहली बार मॉब लिंचिंग को परिभाषित किया गया है। बताया गया है कि किसी खास समूह के द्वारा सामूहिक रूप से किया गया अपराध मॉब लिंचिंग की श्रेणि में आएगा। इसके लिए अलग से दंड की प्रक्रिया और प्रावधान तय किया गया है।
ये सुधार भारतीय न्यायिक प्रणाली में बड़ा परिवर्तन लेकर आया है। विशेषज्ञों की मानें तो इससे न केवल त्वरित न्याय मिलेगा अपितु लोगों को न्याय और न्याय दिलाने वाली संस्थाओं पर भी विश्वास बढ़ेगा। इससे लोकतंत्र में मजबूती का भी दावा किया जा रहा है।
नए धाराओं के अनुसार तेजी से न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाने से अदालतें अपराधियों के मामलों को तेजी से सुन सकती हैं। इससे न्यायिक प्रक्रिया में लंबाई कम होती है और न्यायिक प्रक्रिया का पारदर्शिता से पालन होता है।
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने से अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की जा सकती है। यह सुधार अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई को सुनिश्चित करता है और अपराध की स्वर्णिम प्रक्रिया में सुधार लाता है।
न्यायिक प्रक्रिया में सुधाररू अनुपस्थिति में मुकदमा चलाने से न्यायिक प्रक्रिया में सुधार होता है, जिससे अपराधियों के खिलाफ तेजी से न्यायिक प्रक्रिया समाप्त हो सकती है। इससे न्यायिक प्रक्रिया की सुविधा और प्रभावकारिता में सुधार होता है।
इस मामले में हम देखते हैं कि भारतीय कानूनी प्रणाली में नए सुधारों के लागू होने से कानूनी प्रक्रियाओं में व्यापक सुधार आएगा। ये सुधार न केवल अपराधियों के खिलाफ तेजी से कार्रवाई करने में मदद करते हैं, बल्कि भारतीय समाज को न्याय प्रणाली में विश्वास भी दिलाते हैं। इन सुधारों का पालन करने से अपराधियों के खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और सही न्याय प्रदान करने की क्षमता में सुधार हो सकता है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)