हसन जमालपुरी
अभी हाल ही में देश की कानून संहिताओं में व्यापक बदलाव किया गया। सरकार ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) सहित नए आपराधिक कानूनों को पूरे देश में लागू कर दिया। अब इन्ही तीनों सहिताओं के आधार पर आपराधिक प्राथमिकियां दर्ज की जाएगी साथ हमें इन्हीं संहिताओं के दायरे में न्याय भी प्राप्त होगा। मसलन, कानून की व्याख्याएं भी इन्हीं सहिताओं के दायरे में की जाएगी।
हमारी सरकार ने दावा किया है कि ये कानून देश की कानूनी प्रणाली को आधुनिक बनाने के व्यापक प्रयास का हिस्सा हैं, जो क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। इन सुधारों को कुछ लोगों द्वारा आवश्यक और लंबे समय से लंबित बताया जा रहा है, लेकिन इनसे महत्वपूर्ण बहस भी छिड़ गई है, खासकर भारत के मुस्लिम समुदाय पर उनके प्रभाव को लेकर। नए कानूनों के सबसे चर्चित पहलुओं में से एक है मॉब लिंचिंग के प्रति उनका दृष्टिकोण, एक ऐसा मुद्दा जिसने भारत में मुसलमानों को असंगत रूप से प्रभावित किया है।
भारतीय न्यास संहिता में मॉब लिंचिंग को विशेष प्रकार से परिभाषित किया है। इसे बड़ा अपराध बताया गया है साथ ही कठोर दंड की बात कही गयी है। इस अपराध को उक्त संहिता में बेहद बारीकी से चिंहित किया गया। संहिता के तहत यदि यह अपराध साबित होता है तो इसमें आजीवन कारावास और कुछ मामलों में मृत्युदंड तक की सजा का प्रावधान है। देश में इस कदम का स्वागत किया जा रहा है। इस प्रकार की हिंसा अधिकतर वैसी परिस्थिति में होती है, जब दो समूह विपरीत जाति, पंथ, भाषा, क्षेत्र आदि के होते हैं। पीछे भी इस प्रकार की कई घटनाएं देखने को मिल चुकी है। इससे मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं पर लगाम तो लगेगा ही साथ ही सांप्रदायिक सौहार्द के लिए भी उपयोगी साबित होगा। हालांकि, लिंचिंग विरोधी प्रावधान को शामिल करना एक सकारात्मक बदलाव है, लेकिन कुछ आलोचकों का तर्क है कि असली परीक्षा इसके कार्यान्वयन को लेकर है।
नए कानूनों का एक और महत्वपूर्ण पहलू पुलिस द्वारा समय पर चार्जशीट दाखिल करने पर जोर देना है। बीएनएसएस के अनुसार चार्जशीट एक निश्चित समय सीमा के भीतर दाखिल की जानी चाहिए और देरी से संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है। इस प्रावधान का उद्देश्य त्वरित न्याय सुनिश्चित करना और भारतीय न्यायिक प्रणाली में अक्सर होने वाली देरी को कम करना है। मुस्लिम समुदाय के लिए, जिसे अक्सर न्याय पाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, यह राहत प्रदान कर सकता है। नए कानून तेजी से मुकदमे चलाने में मदद करेंगे और संभावित रूप से लंबे समय तक प्री-ट्रायल हिरासत को रोकेंगे। इससे हमारे मुस्लिम समुदाय के लोगों को बेहद फायदा होने वाला है, जिसकी अक्सर शिकायत रहती है कि उनके मामले में कानूनी प्रक्रिया लंबी चलती है।
इन प्रावधानों के बावजूद, मुस्लिम समुदाय के भीतर इन कानूनों के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंता बनी हुई है। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों को डर है कि जल्दी चार्जशीट दाखिल करने पर जोर देने से गलत तरीके से गिरफ्तारियाँ बढ़ सकती हैं, खासकर सांप्रदायिक रूप से आरोपित स्थितियों में जहाँ मुसलमानों को अक्सर संदेह की नज़र से देखा जाता है। कानून के जानकारों का कहना है, ऐसी कोई बात नहीं है। यह कानून पूरे देश के लिए है। इसमें किसी खास संप्रदाय को कोई अलग से नािरात्मक ढंग से प्रभावित या निशाना नहीं बनाया गया है। इसके बारे में ऐसा कुछ भी नहीं सोचना चाहिए।
लिंचिंग विरोधी कानून एक सकारात्मक कदम है। मुस्लिम समुदाय इस बात को लेकर सतर्क है कि क्या इसे समान रूप से लागू किया जाएगा। हालाँकि, इन नए आपराधिक कानूनों को स्वाभाविक रूप से मुस्लिम विरोधी कहना अतिशयोक्ति होगी। कानूनों के पीछे का उद्देश्य-भारत की कानूनी प्रणाली को आधुनिक बनाना और सुव्यवस्थित करना, भीड़ द्वारा हत्या जैसे समकालीन मुद्दों को संबोधित करना और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना इसका एक मात्र उद्देश्य है। हालाँकि, मुस्लिम समुदाय पर इन कानूनों का प्रभाव काफी हद तक उनके कार्यान्वयन पर निर्भर करेगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ये कानून अनजाने में अल्पसंख्यक समुदायों को नुकसान न पहुँचाएँ।
सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए पारदर्शी और निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाना महत्वपूर्ण है। नियमित निगरानी, स्वतंत्र निरीक्षण और सामुदायिक सहभागिता विश्वास बनाने और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि ये कानून अपने इच्छित उद्देश्य को पूरा करें और धर्म या अन्य किसी पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना सभी के लिए न्याय करें। भारत में नए आपराधिक कानूनों में देश की कानूनी व्यवस्था को प्रभावित करने वाले कुछ प्रणालीगत मुद्दों को संबोधित करने की क्षमता है।
मुस्लिम समुदाय के लिए, ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि इन कानूनों को निष्पक्ष और बिना किसी पूर्वाग्रह के लागू किया जाए, ताकि न्याय और समानता के सिद्धांतों को सही मायने में कायम रखा जा सके। नए कानूनों ने इस विश्वास को और पुष्ट किया है कि भारत एक निष्पक्षी कानूनों द्वारा शासित देश है और संसदीय सूझबूझ से किसी भी कमी को आसानी से दूर किया जा सकता है। केवल मुसलमानों को ही नहीं देश के सभी नागरिकों को बस लोकतांत्रिक व्यवस्था और संस्थागत मशीनरी में विश्वास रखने की जरूरत है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)