अशोक गुप्त
आज का युग चिंता का युग है। हमारे दिमाग को भगवान ने ऐसा बनाया है कि यह तुरन्त प्रतिक्रिया करता है। यदि कोई हमें मारे तो हमारे हाथ स्वतः ही आत्मरक्षा के लिये उठ खड़े होते हैं। कोई बड़ा खतरा देखते ही हम तुरन्त वहां से भाग खड़े होते हैं। वास्तव में हमारे दिमाग का एक भाग हमें ये क्रियाएं करने का आदेश देता है। यह हमारे दिमाग का स्वचालित स्नायुमंडल है जो हमें आत्मरक्षा या लड़ने के लिए तुरंत तैयार कर लेता है। यह स्नायुमंडल और भी बहुत सी क्रियाएं स्वयंमेव करता है।
त तनाव की स्थिति में हमारी पाचन क्रिया धीमी हो जाती है क्योंकि रक्तप्रवाह शरीर की मांसपेशियों और मस्तिष्क की ओर अधिक हो जाता है। हमारा स्नायुमंडल जानता है कि खतरे से बचना भोजन पाचन से अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य है।
हमारी सांसों की गति तेज़ हो जाती है क्योंकि शरीर को अधिक आक्सीजन की आवश्यकता होती है।
त हमारी हृदयगति तेज़ हो जाती है और रक्तचाप बढ़ जाता है। कभी-कभी तो हृदय की धड़कन हमें सुनाई देने लगती है। हमारी स्वेद ग्रंथियां तीव्र गति से कार्य करने लगती हैं और अधिक पसीना आता है।
हमारी मांसपेशियां तनाव के कारण कड़ी हो जाती हैं और हमें गर्दन या पीठ में दर्द होने लगता है।
त प्राचीनकाल में मनुष्य को जैसे जान के खतरे होते थे वैसे अब प्रायः नहीं होते किंतु कई अन्य प्रकार के तनाव उसे थोड़ी-थोड़ी देर के पश्चात् घेरते रहते है। इन तनावों पर भी हमारा स्नायुमंडल उसी प्रकार क्रिया करता है। नौकरी, परीक्षाएं, व्यापारिक समस्याएं और करों संबंधी समस्याएं कभी-कभी अत्यधिक तनावग्रस्त कर देती हैं। ये प्रायः जानलेवा तो नहीं होती किंतु उतनी ही गंभीर लगती हैं।
आइए देखें हम कैसे इन तनावों को कम कर सकते हैं: –
यह मानकर चलें कि दुनियां में सब कुछ हमारी इच्छा से नहीं होता भले ही हम पसंद करें या न करें। जो जैसे होना है वैसे ही होगा, इसलिए परिस्थितियों से अधिक लड़ने का प्रयास न करें। जो कुछ हो चुका है, उसे किसी भी हालत में बदला नहीं जा सकता किंतु उनके प्रति सोचने में आप परिवर्तन ला सकते हैं। जो हो चुका है उसे सच्चाई मानकर स्वीकार करें।
आप जिन कारणों से तनाव अनुभव करते हैं, एक पैन और कागज़ लेकर लिखिए। उनके संभावित परिणाम भी लिखिए। फिर सोचें कि क्या उनके लिए इतनी चिंता करने की आवश्यकता है और चिंता से आप उसके परिणाम में क्या अंतर डाल पायेंगे। अपनी कुछ पुरानी तनावपूर्ण परिस्थितियों की कल्पना कीजिए और याद कीजिए कि उनका क्या हल निकला था और आज उन परिस्थितियों की क्या अहमियत है।
आंखें बंद कर पुरानी परिस्थितियों को एक चलचित्रा की भांति अपने सामने लाइए तो आप बेहतर कल्पना कर सकेंगे कि उन परिस्थितियों में उतना तनावग्रस्त होने की आवश्यकता नहीं थी जितने आप हुए थे। उनको याद करने से आपको वर्तमान परिस्थितियों को कितनी गंभीरता से लेना चाहिए, इसका भी अहसास होगा और अपना तनाव कम कर पाएंगे। तनाव कम करना ही अपने स्नायुमंडल को शांत रखने का तरीका है। इससे आप स्नायु दौर्बल्य से बच सकते हैं।
(स्वास्थ्य दर्पण)