कमलेश पांडेय
विधि की कैसी विडंबना है कि जिन मुद्दों को इतिहास ने हवा दी, उन्हें सुलझाने में आधुनिक राजनीतिक विज्ञान और भूगोल भी नाकाम प्रतीत हो रहे हैं। कहीं इसके लिए शासकों की बहसियाना हरकतें तो जिम्मेदार नहीं हैं जो रोटी, कपड़ा और मकान; शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान से इतर धर्मयुद्ध को बढ़ावा दे रहे हैं। यही नहीं, हथियारों के लोकतंत्र से वैचारिक शांतिप्रियता और सहअस्तित्व की जनभावना को कुचल रहे हैं।
दरअसल, धर्मयुद्ध किसी चीज़ या व्यक्ति के खिलाफ़ एक भावुक संघर्ष है, जो 11वीं से 13वीं शताब्दी में, रोमन कैथोलिकों ने अपनी पवित्र भूमि (वर्तमान में इजरायल, जॉर्डन, लेबनान और फिलिस्तीनी भूमि) के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण पाने के लिए किया था। तब, रोमन कैथोलिकों ने भूमि पर नियंत्रण रखने वाले मुसलमानों के खिलाफ सैन्य लड़ाई लड़ी। कुछ हद तक सफल भी हुए। लेकिन इसी ऊहापोह में तब के अधूरे स्वप्न आज तक इस पवित्र भूमि को बेचौन किए हुए हैं।
फिलवक्त, ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह ख़ामेनेई ने इजरायल पर हाल में ही किये गए मिसाइल हमले की तारीफ करते हुए कहा कि अगर जरूरी हुआ तो ईरान फिर से ऐसा करेगा। उन्होंने इस्लामिक मुल्कों को भड़काते हुए कहा कि ईरान का दुश्मन फलस्तीन, लेबनान, सीरिया, मिस्र, यमन और इराक का भी दुश्मन है। इस्लामी देशों का दुश्मन एक है, लिहाजा एकजुट होने की जरूरत है। इजरायल का खात्मा करके रहेंगे, जो मुमकिन होगा वो करेंगे। दरअसल, ईरान की ग्रैंड मस्जिद से दिए गए इस भाषण को ईरान की आगे की योजना के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। इसलिए मैंने आधुनिक धर्मयुद्ध के आगाज को भांपते हुए अतीत से इसके तारों को जोड़ने का बौद्धिक प्रयत्न किया है, ताकि समकालीन दुनिया की तपिश को कुछ कम किया जा सके।
बताया जाता है कि ख़ामेनेई ने लगभग 5 साल बाद यह भाषण दिया है क्योंकि अब उन्हें इजरायल के पलटवार का डर सता रहा है। इससे पहले जनवरी 2020 में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड के जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद भाषण दिया था, तब अमेरिका के खिलाफ सीधे युद्ध की आशंका थी। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब ईरानी सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई ने भारतीय मुसलमानों को लेकर विवादास्पद बयान दिए, जिसने विवाद पैदा कर दिया था। नौबत ये आ गई कि भारत ने खामेनेई के बयान पर न केवल तीखी प्रतिक्रिया दी बल्कि उन्हें आईना भी दिखा दिया।
ऐसे में सीधा सवाल है कि ईरान के सर्वाेच्च नेता आखिरकार तेहरान के दोस्त भारत के खिलाफ क्यों जहर उगलते रहते हैं? क्या ऐसा करते रहने के लिए कोई उन्हें बाध्य करता है? या फिर कुछ और बात है क्योंकि जिस अंदाज में ईरान के सर्वाेच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई भारत के मुसलमानों को पीड़ित बता रहे हैं, वह कोई शुभ संकेत नहीं है। वो उस भारत के बारे में ऐसा कह चुके हैं, जो ईरान का तब साथ दे रहा है, जब दुनिया का कोई मुल्क उनके साथ खड़े होने तैयार नहीं हैं।
याद दिला दें कि तब ईरानी सुप्रीम लीडर ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट श्एक्सश् पर एक पोस्ट किया जिसमें उन्होंने गाजा और म्यांमार के साथ कश्मीर की तुलना कर दी और भारत के मुसलमानों को भी पीड़ित बता दिया। यही वजह है कि खामेनेई की इस टिप्पणी पर भारत सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय ने तो इसे गलत सूचना पर आधारित और अस्वीकार्य करार दिया और उन्हें अपने देश में अल्पसंख्यकों की हालत देखने की सीख भी दे दी। पाकिस्तान और बंगलादेश में अल्पसंख्यकों की दुर्गति यदि वो देख लेते तो शायद उनके विचार भी बदल जाते।
हालांकि, उनके सर पर भी इस्लाम का भूत सवार है जिसके चलते वो भारत की मित्रता भावना को भी नजरअंदाज कर बैठते हैं। दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब खामेनेई ने भारत में मुसलमानों या दूसरे मामले को लेकर टिप्पणी की है। उनका तल्ख अतीत गवाह है कि वे पहले भी ऐसा करते रहे हैं। इसलिए उनके पिछले बयानों की चर्चा हम यहां करेंगे। उसके पहले ताजा बयान को भी जान-समझ लेते हैं।
मसलन, खामेनेई ने एक्स (पूर्व नाम ट्वीटर) पर लिखा, ‘‘इस्लाम के दुश्मनों ने हमेशा हमें इस्लामी उम्मा के रूप में हमारी साझा पहचान के प्रति उदासीन बनाने की कोशिश की है। अगर हम म्यांमार, गाजा, भारत या किसी अन्य जगह पर एक मुसलमान की तकलीफ से अनजान हैं, तो हम खुद को मुसलमान नहीं मान सकते।श्श् इसके बाद खामनेई के बयान पर भारत सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय ने दो टूक कहा, श्श्हम ईरान के सर्वाेच्च नेता की भारत के अल्पसंख्यकों के बारे में की गई टिप्पणियों की कड़ी निंदा करते हैं। ये गलत सूचना पर आधारित और अस्वीकार्य हैं। अल्पसंख्यकों पर टिप्पणी करने वाले देशों को सलाह दी जाती है कि वे दूसरों पर टिप्पणी करने से पहले अपना रिकॉर्ड देख लें।’’
यदि अतीत की बात करें तो अगस्त 2019 में खामेनेई ने ट्विवटर पर एक पोस्ट में मुसलमानों की स्थिति के बारे में चिंता जताई थी। तब भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जा को खत्म कर दिया था। इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए खामेनेई ने लिखा, श्श्हम कश्मीर के मुसलमानों की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। हमारे भारत के साथ अच्छे संबंध हैं लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार कश्मीर के महान लोगों के प्रति न्यायपूर्ण नीति अपनाएगी और इस क्षेत्र के मुसलमानों पर अत्याचार और उत्पीड़न को रोकेगी।श्श्
वहीं, मार्च 2020 में एक और ट्वीट में उन्होंने लिखा, श्श्पूरी दुनिया के मुसलमान भारत में अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति को लेकर दुखी हैं। भारत सरकार को इस्लामी दुनिया से भारत को अलग-थलग होने से रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। ‘वहीं, वर्ष 2018 में एक बयान में खामेनेई ने कहा था कि फिलिस्तीनी राष्ट्र और गाजा के घिरे हुए लोगों की सहायता करना जरूरी है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक और कश्मीर के लोगों के प्रति सहानुभूति और सहयोग को भी उन्होंने इस्लामिक उम्माह के कंधों पर महान जिम्मेदारी बताया था।’
कुछ दशक पहले की बात करें तो 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान ने लगातार खुद को एक कट्टर इस्लामिक देश के रूप में दिखाने की कोशिश की है। इसी में उन्हें सुख मिलता है। ईरान के सर्वाेच्च नेता खुद को इस्लामिक उम्मत के अगुवा के रूप में देखते हैं। हालांकि, ईरान के कट्टरपंथी इस्लामवादी 1979 के पहले भी कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी के भाषणों में भी कश्मीर का जिक्र होता रहा है। 1965 में नजफ में एक भाषण में खुमैनी ने कहा था कि ‘‘अगर मुस्लिम दुनिया एकजुट हो जाए तो यहूदी फिलिस्तीन की इच्छा नहीं करेंगे, फिर हिंदू कश्मीर की चाहत छोड़ देंगे।’’
यही वजह है कि इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान ने कश्मीर की आजादी को समर्थन दिया। यह भारत के लिए परेशान करने वाला रुख था। उसने यह भी कहा कि कश्मीर की आजादी के लिए, इसके पाकिस्तान में विलय की जरूरत नहीं होगी। तब यह इस्लामाबाद के लिए भी तनाव वाली बात थी। वैसे तो लंबे समय में भारत और ईरान ने कश्मीर मुद्दे को अपने संबंधों को प्रभावित करने से रोकने में कामयाबी हासिल की है, लेकिन ईरान के सर्वाेच्च नेता खुद को इस्लामिक दुनिया का रक्षक दिखाने के लिए ऐसे बयान देते रहते हैं, जो भारत के लिए स्वीकार्य नहीं हैं। संभव है कि भविष्य में उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़े।
बहरहाल, भारत भी उनके जैसे उग्र नेतृत्व को गढ़ रहा है। पाकिस्तान, बंगलादेश, म्यांमार, अफगानिस्तान तो उसका अभिन्न अंग है ही, लेकिन ईरान भी यदि भारतीय भूभाग में भविष्य में शामिल कर लिया जाएगा तो यूरोप तक हिंदुत्व की पहुंच आसान होगी। जिस तरह से हिंदुत्व की कब्र पर पनपे इस्लाम ने कट्टरपंथी रवैया अख्तियार कर लिया है, उससे आज नहीं तो कल ईसाई और यहूदी मिलकर उसका सफाया करेंगे ही, बस भारत भी इसी में अपना सुअवसर देख ले, यही बुद्धिमानी की बात होगी क्योंकि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए आतंकवादियों और उसकी समर्थक सरकारों ने भारत के पास कोई और चारा छोड़ा भी नहीं है।
अभी भी ईरान–इजरायल के बीच भारत शांतिदूत की भूमिका निभा सकता है क्योंकि भारत में इजरायल के राजदूत रुबिन रुबेन अजार ने बताया कि इजरायल ने भारत के जरिए ईरान को संदेश भेजा है, जिसमें उसे संयम और सावधानी बरतने को कहा गया है। वहीं, भारत में ईरान के दूत इराज इलाही ने कहा कि भारत को जंग रोकने के लिए इजरायल को समझाना चाहिए। इसी से भारत के समकालीन महत्व को समझा जा सकता है।
यदि पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों द्वारा 11वीं, 12वीं, और 13वीं शताब्दियों में मुसलमानों से पवित्र भूमि को वापस पाने के लिए किए गए सैन्य अभियान जिसको क्रूसेड भी कहा जाता है, की छाया से मुक्ति पानी है तो सबको हठधर्मिता त्यागनी पड़ेगी अन्यथा आधुनिक धर्मयुद्ध तय है। जब धर्मयुद्ध का मतलब है, किसी विचार या उद्देश्य की रक्षा या उन्नति के लिए किया जाने वाला सशक्त और आक्रामक आंदोलन है, तो फिर भारत क्यों पीछे रहे।
इतिहास में धर्मयुद्ध का मतलब है, धार्मिकता के सिद्धांतों को कायम रखने के लिए लड़ा जाने वाला पवित्र युद्ध। वहीं हिंदू शास्त्रों में धर्मयुद्ध को एक ऐसा युद्ध बताया गया है जिसमें कई नियमों का पालन किया जाता है ताकि युद्ध निष्पक्ष हो। सिख धर्म में धर्मयुद्ध का मतलब है, धार्मिक युद्ध, धार्मिकता का युद्ध, या न्याय के लिए युद्ध। सिख धर्म के कुछ सिद्धांतों के मुताबिक, अगर शांतिपूर्ण तरीके से किसी संघर्ष को सुलझाया नहीं जा सकता, तो सैन्य बल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
क्या अपने कभी सोचा है कि ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह ख़ामेनेई की भाषा ही यदि ईसाई, यहूदी, हिन्दू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध नेता भी बोलने लगे तो फिर पूरी दुनिया का क्या होगा? इसलिए भारत को अपनी वैश्विक भूमिका तय करनी होगी और हर हाल में हिंदुत्व को रक्षात्मक नहीं बल्कि आक्रामक भूमिका में लाना होगा। भाजपा नेता और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को प्रकृति तैयार कर चुकी है बस हिंदुओं को जातिवाद से उबरने की सद्बुद्धि दे भगवान और भाजपा उन्हें राष्ट्र को नेतृत्व प्रदान करने के लिए आगे बढ़ाए. यूपी में उनका शासन मॉर्निंग शोज द डेज वाली कहावत चरितार्थ कर चुका है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)