कमलेश पांडेय
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हिंदुओं-सिखों के लिए पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना का ऐलान करके एक बार फिर से भाजपा-कांग्रेस पर राजनीतिक रूप से बढ़त ले ली है। ऐसा करके वह तीसरे मोर्चे यानी भाजपा-कांग्रेस विरोधी क्षेत्रीय दलों के एक ऐसे मशहूर नेता बन चुके हैं जो अपने हिसाब से भाजपा और कांग्रेस को एक साथ सियासी पटखनी देते हैं और दोनों पार्टियां उफ तक नहीं कर पातीं। दिल्ली और पंजाब इसका जीता जागता उदाहरण हैं।
देखा जाए तो पुजारी – ग्रंथी सम्मान योजना एक क्रांतिकारी सोच है जिससे भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान को बल मिलेगा। अब इसका श्रेय भी आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को मिलेगा। भाजपा और कांग्रेस समेत अन्य क्षेत्रीय दल ऐसा साहसिक पहल अपने अपने राज्यों में कर सकते थे लेकिन उन्होंने एक मौका गंवा दिया हालांकि अब केंद्र सरकार और अन्य राज्य सरकारों पर भी इसे लागू करने का दबाव बढ़ेगा।
आप मानें या न मानें लेकिन मंदिर और गुरुद्वारा जैसे उपासना स्थल हमारे जनजीवन के संचालन का एक अभिन्न केंद्र समझे जाते हैं। जब पूंजीवादी लोकतांत्रिक सरकारें शिक्षा और स्वास्थ्य से मुंह फेर रहीं हैं, तब एनजीओ/ट्रस्ट संस्कृति से मंदिरों को जोड़कर शैक्षणिक और स्वास्थ्यगत क्षेत्रों में एक बड़ी लकीरें खींची जा सकती हैं। आज भी भुखमरी मिटाने के लिए भंडारा/लंगर संस्कृति इनके आसपास ही फैली रहती हैं। दान पर पलने वाले असहाय भिखारियों के श्रद्धा के केंद्र भी धार्मिक उपासना स्थल ही हैं।
हमारे धर्मनिरपेक्ष सरकार का समाज कल्याण विभाग बजट की कमी का रोना रो सकता है, उसके अधिकारी-कर्मचारी घपला कर सकते हैं लेकिन मंदिरों-गुरुद्वारों से जो अहर्निश समाज कल्याण चलता रहता है, इस पुनीत भावना को समझने-समझाने में हमारी सरकारें विफल रही हैं। उन्होंने मंदिरों के अधिग्रहण करके उसकी आय की बंदरबांट की लेकिन उससे गरीब मंदिरों के कल्याण की योजना नहीं बनाई। इस अकूत आय को हिन्दू शिक्षा – जनस्वास्थ्य पर खर्च करने में कोताही बरती।
पहले के राजा-महाराजा और व्यापारी मंदिरों-गुरुद्वारों की मदद किया करते थे ताकि भारतीय संस्कृति पुष्पित-पल्लवित होती रहे लेकिन धर्मनिरपेक्ष सोच और मनुवादी विरोधी लोकतांत्रिक राजनीति ने हमारी सभ्यता-संस्कृति को ऐसी चोट पहुंचाई जिसकी भरपाई करने में दशकों लगेंगे। आप अपने आसपास देख रहे होंगे कि बहुत ही कम पारितोषिक पाकर और दान-उपदान पर निर्भर रहकर पुजारी वर्ग मंदिरों की दिन-रात सेवा करते आए हैं। गांव में मंदिरों की आय कम है लेकिन शहरों में होने वाली मोटी आय पर मुहल्ला कमेटी कुण्डली मार कर बैठी हुई हैं और पुजारियों को उचित मानदेय तक नहीं देतीं।
ऐसे में जब केजरीवाल सरकार उन्हें 18000/- रुपये प्रतिमाह सम्मान धनराशि देगी तो इससे न केवल पुजारियों-ग्रंथियों को आर्थिक मदद मिलेगी बल्कि गरीब मंदिरों-गुरुद्वारों में भी रौनक लौटेगी। वहीं, यदि मंदिरों व उनके पुजारियों आदि का रणनीतिक सदुपयोग करने में आप पार्टी व उनके रणनीतिकार सफल रहे तो आप के जनाधार में भी व्यापक इजाफा होगा। इससे पूरे देश में उसका स्वतरू विस्तार होता चला जाएगा। विरोधी विपक्ष इसे भी मनुवादी फैसला करार देकर बदनाम करने की कोशिशें करेगा लेकिन इससे डरने की जरूरत नहीं है।
आप रणनीतिकारों को चाहिए कि वह इसी बहाने मंदिरों-गुरुद्वारों को बागवानी व पर्यावरण संरक्षण से जोड़ें। इससे फल-फूल, सब्जियां और औषधीय पौधों का संरक्षण-सम्वर्द्धन होगा। ये सभी चीजें आसपास के लोगों के काम आएगी। कहना न होगा कि हमारे संवैधानिक नियम-कानूनों में सबकुछ मौजूद है लेकिन निहित सियासी कारणों से ईमानदारी पूर्वक उसका अनुपालन नहीं हो पाता है। इससे समाज और संस्कृति दोनों को वैचारिक दीमक नष्ट कर रहे हैं। आप इस स्थिति को रोके, क्योंकि राष्ट्रवादी भाजपा भी नीतियों के मामले में कांग्रेस और समाजवादियों की पिछलग्गू साबित हो रही है।
वहीं, आप नेतृत्व ने दिल्ली-पंजाब में जनहित में जो राजनीतिक अनुप्रयोग किये हैं, उस पर अन्य दलों का फिदा होना जताता है कि आप के पास मौलिक जनहितकारी नीतियां हैं जिन्हें बढ़ावा देकर पूंजीपति उन्मुखी भारतीय लोकतंत्र को सही ढर्रे पर लाया जा सकता है। यही वजह है कि आप की पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना भाजपा-कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी है क्योंकि ऐसा ऐलान करने वाले वे देश के पहले राजनेता हैं।
हालांकि, इससे पहले इस्लामिक मौलवियों को ऐसी ही सम्मान राशि आप और कांग्रेस शासित कुछ राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही हैं जिसके बाद इसे हिन्दू पुजारियों, सिख ग्रंथियों आदि को भी देने की मांगें उठ रही थी जिसे दिल्ली में लागू करने की बात कहकर केजरीवाल ने बाजी मार ली है। यह पुजारियों-ग्रंथियों के लिए हिंदुस्तान के श्धर्मनिरपेक्ष रेगिस्तानश् में किसी जलधारा की तरह है जिससे बहुत कुछ परिवर्तन सम्भव है क्योंकि धर्मनिरपेक्षता के प्रति बदलती सियासी सोच से समाज में भी युगान्तकारी बदलाव आएगा।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 से पहले आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना शुरू की है. उसके तहत मंदिरों में काम करने वाले पुजारियों और गुरुद्वारे के ग्रंथियों को हर महीने 18000 रुपये दिए जाएंगे।
यह पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना दिल्ली के मंदिरों और गुरुद्वारे में काम करने वाले पुजारियों और ग्रंथियों के लिए है जिसके जरिए पुजारियों और ग्रंथियों को हर महीने सम्मान राशि दी जाएगी। आम आदमी पार्टी का दावा है कि यह देश में पहली योजना है जिसके तहत पुजारियों और ग्रंथियों की मदद की जा रही है।
पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना के तहत दिल्ली के सभी मंदिरों और गुरुद्वारों में काम करने वाले पुजारी और ग्रंथी आवेदन कर सकते हैं हालांकि, अब तक इस योजना की पात्रता के लिए कोई सरकारी नोटिफिकेशन नहीं जारी किया गया है। वहीं, चर्च या मस्जिद में काम करने वाले लोगों का कोई जिक्र नहीं किया गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह योजना उनके लिए नहीं है।
इस योजना के तहत आवेदन मंगलवार (31 दिसंबर) से शुरू हो गया। अरविंद केजरीवाल ने वह खुद राजीव चौक के प्राचीन हनुमान मंदिर में पुजारियों के रजिस्ट्रेशन कर पूरे दिल्ली में रजिस्ट्रेशन अभियान शुरू किया। इस योजना के तहत आवेदन करने वाले पुजारियों और ग्रंथियों को हर महीने 18000 रुपये की सम्मान राशि दी जाएगी। केजरीवाल के पोस्ट में कहा गया है कि आम आदमी पार्टी के जीतने पर ये पैसे मिलेंगे। ऐसे में साफ है कि भले ही रजिस्ट्रेशन अभी से शुरू हो रहे हैं लेकिन पुजारियों को पैसा 2025 में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर ही मिलेगा।
अरविंद केजरीवाल ने एक्स पर लिखा आम आदमी पार्टी के जीतने पर दिल्ली में मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारा साहिब के ग्रंथियों को ₹18,000 प्रति माह की सम्मान राशि दी जाएगी। ये योजना समाज में उनके आध्यात्मिक योगदान और हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने के उनके प्रयासों का सम्मान है। ठश्रच् वालों इसे रोकने की कोशिश मत करना, बहुत पाप लगेगा।ष् उन्होंने बीजेपी से अपील करते हुए कहा कि ष्जैसे उसने महिला सम्मान और संजीवनी योजना को पुलिस भेजकर और फर्जी केस करके रोकने की कोशिश की, वैसे इस योजना को रोकने की कोशिश न करें वरना बहुत पाप लगेगा।
वहीं, बीजेपी नेता वीरेंद्र सचदेवा का यह कहना है कि बीजेपी तो कई साल से यह मांग कर रही है कि आप सरकार जिस तरह से इमामों को वेतन दे रही है, पुजारियों और ग्रंथियों को भी दे लेकिन सवाल है कि केंद्र में या बीजेपी व एनडीए गठबंधन शासित राज्यों में वह इसे लागू करने पर क्यों ध्यान नहीं दे-दिलवा पा रहे हैं, यक्ष प्रश्न है।
सच कहूं तो पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना आप नेतृत्व की क्रांतिकारी सोच है जिससे भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान को बल मिलेगा। बस इसका क्रियान्वयन दूरदर्शितापूर्वक और पूरी ईमानदारी से किया जाए, यही जनापेक्षा है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)