गौतम चौधरी
भारत आगामी 31 अक्टूबर को एक बार फिर से राष्ट्रीस एकता दिवस मनाने जा रहा है। देश के सत्ता प्रतिष्ठानों से लेकर ऐसे सैंकड़ों संगठन हैं, जो 31 अक्टूबर को एक राष्ट्रीय पर्व के तौर पर मनाते हैं। दरअसल, इस दिवस का महत्व इसलिए है कि इसी दिन भारत के उस लौह पुरुष का जन्म हुआ, जिन्होंने आधुनिक संप्रभु भारत की आधारशिला रखी। उस राष्ट्र पुरुष का नाम सरदार वल्लभ भाई पटेल है। 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के सम्मान में हमारा कृतज्ञ राष्ट्र राष्ट्रीय एकता का जश्न मनाता है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल एक ऐसे नेता थे, जिनकी दूरदृष्टि और दृढ़ निश्चय ने एक एकीकृत भारत की नींव रखी। “भारत के लौह पुरुष” के रूप में प्रसिद्ध पटेल के नेतृत्व में स्वतंत्रता के बाद 560 से अधिक देशी रियासतों का एकीकरण हुआ, जिसने आज के इस अखंड, संप्रभु राष्ट्र को जन्म दिया। एकता दिवस केवल उनकी विरासत को श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि भारत की विविधता में एकता की स्थायी प्रतिबद्धता का पुनर्स्मरण है।
जब वर्ष 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, तब देश को 560 से अधिक रियासतों का एक जटिल ताना-बाना विरासत में मिला। प्रत्येक रियासत की अपनी स्वायत्तता और अलग-अलग निष्ठाएं थीं। सरदार पटेल ने इन रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित करने की चुनौती स्वीकार की। यह एक ऐसा कार्य था जिसके लिए अद्वितीय कूटनीति, साहस और दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता थी। उनकी स्थिर दृष्टि और दृढ़ संकल्प ने उन्हें “लौह पुरुष” के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया। राजनयिक समझदारी और व्यवहारिकता के संयोजन से पटेल ने लगभग सभी रियासतों का विलय भारतीय परिसंघ में कराया, जिनमें हैदराबाद, जूनागढ़ और जम्मू-कश्मीर जैसे जटिल और सामरिक दृष्ट से महत्वपूर्ण क्षेत्र भी शामिल थे। इससे भारत की क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित हुई।
एकता के बिना मनुष्यबल कोई शक्ति नहीं है, जब तक वह उचित रूप से समन्वित और संगठित न हो जाए। जब ऐसा होता है तो वह अपनी सीमाओं की रक्षा करने में सक्षम और दुनिया के सामने उन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो जाता है, जो उस भूभाग को लंबे समय तक के लिए प्रभावशाली बना देता है। सरदार पटेल के लिए राष्ट्र की सच्ची शक्ति केवल सीमाओं में नहीं, बल्कि उसके लोगों की एकता में निहित थी।
दरअसल, इन्हीं कुछ विशेषताओं के कारण वर्ष 2014 में भारत सरकार ने सरदार पटेल की जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। इसका उद्देश्य देशवासियों में एकता की भावना को पुनर्जीवित करना और पटेल की “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की दृष्टि को सम्मानित करना था।
इस दिन देशभर में रन फॉर यूनिटी, सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनी और शपथ समारोह आयोजित किए जाते हैं। ता कि हमारे देश वासी अपने पूर्वज का स्मरण कर अपने आप को एकता के लिए प्रस्तुत करें। 31 अक्टूबर को मुख्य समारोह गुजरात स्थित एकता नगर के स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (182 मीटर ऊँचा पटेल का भव्य प्रतिमा) पर आयोजित होता है, जो भारत की शक्ति, साहस और सामूहिक संकल्प का प्रतीक है।
सरदार पटेल की राजनीतिक बुद्धिमत्ता और दूर दृष्टि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी स्वतंत्रता के समय थी। उनका सामाजिक समरसता और समावेशिता में विश्वास आज के विभाजित विश्व में भी प्रेरणा देता है। सरदार पटेल बराबर यह बात दोहराते थे, “धर्म के मार्ग पर चलो, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलो, क्योंकि वही सभी के लिए सही मार्ग है।” ये शब्द हमें याद दिलाते हैं कि भारत के सामाजिक ताने-बाने में न्याय, परस्पर सम्मान और शांति बनाए रखना हमारी साझा जिम्मेदारी है। एकता दिवस, उस भारत के विचार को पुनर्स्थापित करता है जो अपनी विविधता के कारण फलता-फूलता रहा है। यह दिन हर नागरिक को राष्ट्रीय एकता के प्रति समर्पण की याद दिलाता है। साथ ही भारत की सांस्कृतिक विविधता को संजोने और भाषा, क्षेत्र तथा धर्म के बीच बंधन को मजबूत करने का आह्वान करता है।
आज जब भारत क्षेत्रीय असमानताओं, सामाजिक विभाजनों और वैचारिक मतभेदों जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है, तब एकता दिवस का संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। यह केवल एक औपचारिक उत्सव नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय एकता और सामूहिक प्रगति की भावना को पुनर्जीवित करता है। एकता दिवस के मौके, शैक्षणिक संस्थानों में एकता पर वाद-विवाद और निबंध प्रतियोगिताएं आयोजित करने की परिपाटी भी प्रारंभ की गयी है। सरकारी संस्थान परेड और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं और नागरिक राष्ट्र की अखंडता बनाए रखने की शपथ लेते हैं। हर वर्ष स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर आयोजित समारोह देशभक्ति और गर्व की भावना को फिर से जगाता है। इस प्रकार के तमाम कार्यक्रम, यह संदेश देता है कि भारत चाहे जितना विशाल और विविध हो, उसका दिल और आत्मा एक है।
मसलन, सरदार पटेल के शब्द आज भी प्रेरणादायक हैं, “मेरी केवल एक इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक बने और देश में कोई भूखा न रहे, किसी की आँखों में आँसू न हों।” उनका दयालु व समावेशी राष्ट्रवाद सेवा और एकता पर आधारित नेतृत्व का सर्वोत्तम उदाहरण है।
