हरिओम शर्मा
राजस्थान के नेता और सरकारी अधिकारी रामगढ़ बांध का नामोनिशां मिटाने पर उतारु हैं। जी हां…! इसमें कोई संदेह नहीं। राजस्थान की राजधानी जयपुर समेत प्रदेश के लोग खूब जान चुके हैं कि बांध का गला सुनियोजित रणनीति के तहत लगातार घोंटा जा रहा है लेकिन जिम्मेदारों को इसकी हकीकत नहीं दिखती।
दशकों पहले तक जयपुर की लाइफलाइन रहा रामगढ़ बांध पर्यावरण प्रेमियों की लाख कोशिशों के बावजूद अपना अस्तित्व खोता नजर आ रहा है। करीब एक सदी पुराना रामगढ़ बांध कई दशकों तक जयपुर शहर की जलापूर्ति का मुख्य स्रोत रहा। 1980 के दशक में एशियाई खेलों की नौकायन प्रतियोगिता का साक्षी रहा राजधानी जयपुर के समीप ऐतिहासिक रामगढ़ बांध शासन और प्रशासन की नाक के नीचे अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। अधिकारी आते गए और अपना कार्यकाल पूरा कर चले गए लेकिन रामगढ़ बांध के जलग्रहण पर लगा अतिक्रमण का ग्रहण और बढ़ता गया। न्यायालय की ओर से गठित निगरानी समिति और आला अधिकारियों के दिशा निर्देशों का भी इस पर कोई असर नहीं हुआ। जल संग्रहणन और पर्यावरण की दृष्टि से अति महत्वपूण रामगढ़ बांध पूरी तरह प्रभावशाली पूर्व नौकरशाह और माफिया के निशाने पर है। इसके चलते क्षेत्र की जैव विविधता पर भी खतरा मंडरा रहा है।
जयपुरवासियों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि रियासतकाल में जयपुर की पानी की समस्या को ध्यान में रखकर बनवाया गया रामगढ बांध कभी इस तरह दुर्दशा का शिकार होगा लेकिन जिम्मेदारों को इसकी हकीकत नहीं दिख रही। लगता है राजनेता और अधिकारियों ने इसे पूरी तरह नेस्तनाबूद करने की ठान रखी है। कैचमेंट एरिया में बड़े-बड़े फॉर्म हाउस, होटल-रिसोर्ट निर्माण व अन्य अतिक्रमण के चलते बांध का गला घुटता ही जा रहा है। गत वर्ष मानसून की अच्छी बारिश के बावजूद बांध में पानी नहीं पहुंच पाया। इस बार फिर अच्छे मानसून की उम्मीद है लेकिन रामगढ़ के दुर्दिन दूर होना मुश्किल ही लगता है।
एतिहासिक रामगढ़ बांध की तिल-तिल कर कैसे मौत हो रही है, इसे देखने का सिंचाई विभाग और अन्य संबंधित विभागों के अधिकारी हौसला ही नहीं जुटा पाते। सिर्फ कार्यालयों में एसी की हवा खा रहे अफसरों ने इसकी चिंता नहीं की। इसीका नतीता रहा कि बांध के जलग्रहण क्षेत्र में अतिक्रमण और एनिकटों की संख्या बढ़ती गई। बांध के क्षेत्र में अवरोधों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है । इसके चलते बांध में पानी की आवक निरंतर रुक रही है। ऐसे अवरोध कोई एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों हैं जिन्हें हटाना तो दूर अफसरों को मौके पर जाकर देखने तक की फुर्सत नहीं है। इसके चलते मानवीय जीवन पर तो संकट के बादल मंडरा ही रहा है साथ ही वन्यजीवों का आवास भी प्रभावित हो रहा है।
बांध के भराव क्षेत्र से लगते अचरोल और चंदवाजी में दर्जनों कच्चे-पक्के एनिकट बना दिए जाने से बहाल क्षेत्र बाधित हुआ है। करीब 7 से 16 फीट तक ऊंचे एनिकट विभिन्न विभागों के जिम्मेदारों को नजर नहीं आते। कार्रवाई के नाम पर यहां कई जगह विभाग ने एक दो जगह कुछ एनिकटों को कुछ फीट तोडकर कार्रवाई की इतिश्री जरूर की है।
बांध के जलग्रहण क्षेत्र में अचरोल-जैतपुर खींची मार्ग पर करीब 7 से 10 फीट ऊंचा यहां का सबसे बड़ा पक्का एनिकट गोविंद कोठी हनुमान मंदिर के पीछे की ओर स्थित है। आश्चर्य यह है कि यहां आज तक कोई अधिकारी इस देखने पहुंचा तक नहीं। यहां करीबी पहाडियों सहित जैतपुर-खींची के आसपास से बारिश का पानी आता है। इसी तरह कालिका मंदिर के पास एक अन्य करीब 6 से 8 फीट ऊंचा एनिकट बहाव क्षेत्र में बाधक बना हुआ है। यहां आसपास की पहाडियों से पानी पहुंचता है। इसके आग मीनों की ढाणी मांर्ग के पास जैतपुर खींची सडक पर है जिसमें यहां के वाशिंदों ने पानी संग्रह कर रखा है। इसी सडक से लगते मोदुुकलां की ढाणी मार्ग पर कट के सामने करीब 200 फीट लम्बा और दस फीट चैड़ा एनिकट है जहां विभाग ने कार्रवाई के नाम पर औपचारिकता की थी। लेकिन इसे हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। यहां अन्य एनिकटों से बचा हुआ तथा आसपास का पानी आकर ठहर जाता है और बांध के कंठ सूखे रह जाते हैं। इसी तरह मीना की ढाणी मार्ग के सामने रेत के टिब्बों के पास नाले पर सीसी रोड बनाकर पानी का प्रवाह रोका जा चुका है। पास ही छापर की ढाणी मार्ग पर बने तीन एनिकट जो करीब सात-सात फीट ऊंचे हैं जिन्हें विभाग की ओर से हटाना तो दूर अधिकारियों को इसकी जानकारी तक नहीं है।
जानकारी के अनुसार अचरोल की बंधावाली ढाणी में स्थित कच्चा एनिकट बहाव क्षेत्र में सबसे बड़ा बाधक बना हुआ है। बांध की शक्ल में बना यह कच्चा एनिकट 200 मीटर लंबा और 20 फीट तक ऊंचा है। बारिश के दौरान यहां अनेक ढाणियों से पानी आता है जो अचरोल नदी की ओर बहता है। लेकिन एनिकट के कारण बारिश का पानी बहाव क्षेत्र तक पहुंच ही नहीं पाता। यहां रहने वाले आसपास के कई वाशिंदे दीवार आदि का निर्माण और बाड लगाकर खेती करते हैं। कूकस, चंदबाजी, सीतापुरा, जैतपुर खींची व निम्स के आसपास भी अनेक एनिकट और अवरोध बना दिए जाने से पानी की राह रुक रही है, लेकिन अधिकारी हटाना तो दूर इसे देखने तक नहीं पहुंचते।
प्रदेश में मानसून सक्रिय है लेकिन जिम्मेदार बेपरवाह बने हुए हैं। बारिश का पानी बहाव क्षेत्र तक पहुंच ही नहीं पाता। हाईकोट कमेटी के बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण को लकर सख्त निर्देशों के बावजूद रामगढ़ उपखण्ड प्रशासन से लेकर राज्य सरकार के आला अधिकारियों के पास कोई प्लान नहीं है। ऐसे में इस बार भी बांध का खाली रहना तय है। अधिकारियों की मिलीभगत का ताजा कारनामा इससे पहले और सामने आया है। सिंचाई विभाग की कथित मिलीभगत से रामगढ़ बांध को भरने वाली मुख्य बाणगंगा नदी के बहाव क्षेत्र में सार्वजनिक निर्माण विभाग की ओर से बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र लिए पक्की सडक का निर्माण कर डाला है। ग्रामीणों की शिकायत के बाद अधिकारियों ने कुछ दिनों तक सडक निर्माण के कार्य को रोक दिया लेकिन इसके बाद तुरंत ही आनन-फानन में बहाव क्षेत्र में सडक बना डाली। विभाग के आला अभियंता मौके पर गए लेकिन बैरंग लौट गए। लापरवाही की हद यह कि सडक निर्माण के दारैान सडक के नीचे निकासी के लिए पाइप तक नहीं लगाए गए जो मानसून की बारिश में बहाव में बाधक बनेंगे। हालांकि ग्रामीणों की नाराजगी और मामला उच्चाधिकारियों तक पहुंचने के बाद सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने बहाव क्षेत्र में बनी सडक को अतिक्रमण मानते हुए इसे ध्वस्त करने की बात कही है। लेकिन बहाव क्षेत्र में सडक किसकी सहमति से बनी, इसे लेकर अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं।
रामगढ़ बांध को पुनर्जीवित करने का प्रयास क रने के बजाय संबंधित विभाग के अधिकारी जनहित के फैसलों तक की खुल कर अनदेखी करने से नहीं चूकते। न्यायालय के आदेशों का मखौल उड़ाने वाले अधिकारी सरकार को भी गुमराह करने से नहीं चूकते। गत वर्ष ऐसे ही एक मामले में मुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र में बांध को पुनर्जीवित करने का अनुरोध करने पर जब सरकार के मुखिया की ओर से पूछताछ की गई तो उसके जवाब में जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता की ओर से गोलमोल जवाब दे दिया गया। इससे लगाता है कि बांध को अतिक्रमण से मुक्त कर पुनर्जीवित करने की अफसरों की इच्छाशक्ति मर चुकी है। न्यायालय की ओर से अतिक्रमणों को हटाकर जलग्रहण क्षेत्र में निर्माण और अन्य गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के निर्देश के बावजूद पानी बहाव क्षेत्र में निरंतर अतिक्रमण रुक नहीं पा रहा और बंध का पेटा सूखता और सिमटता जा रहा है। यहां तक कि जयपुर विकास प्राधिकरण तक को न्यायालय की ओर से बांध के बहाव क्षेत्र में अपनी भूमि कम बताने पर फटकार तक लगाई जा चुकी है। जमवारामगढ़ क्षेत्र में जेडीए के अधीन क्षेत्र के अनेक अतिक्रमण अब भी जयपुरवासियों को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
यही नहीं सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक जलस्रोतों पर अतिक्रमण को हटाने के लिए समय-समय पर आदेश दिए गए हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर राजस्व अधिनियम 1959 में संशोधन कर यह कानून बन चुका है कि 1959 में बांध और उसके बहाव क्षेत्रों की जो स्थिति रही, उसे वहीं लाना चाहिए। लेकिन आला अधिकारियों को इसकी परवाह नहीं है। अफसोस इस बात का है कि जयपुर शहर और अन्य संबंधित क्षेत्र के जनप्रतिनिधि भी इसे लेकर बयानबाजी तक ही सीमित हैं, बांध के अस्तित्व को लेकर उनके मन में नतो दर्द का अहसास है और ना इच्छाशक्ति।
रियासतकाल के दौरान वर्षाजल को सहेजने के लिए पूर्वजों ने बांध, बावड़ी, तालबा, झील और अन्य जल स्रोत्रों के निर्माण करवाए। पिछले दशक में कई बार खूब पानी बरसा लेकिन व्यर्थ ही बह गया। सरकार की ओर से ठेकेदार और अफसरों ने जेबें भरने के लिए नए-नए प्लान तो सुझा दिए लेकिन लगभग एक सदी पुराने रामगढ़ जैसे बांध से मुंह मोड लिया। लगभग दो दशक से सूखे पड़े रामगढ़ बांध के जलग्रहण क्षेत्र में होटल और फार्म हाउस विकसित कर लिए गए लेकिन बांध बूंद-बूंद पानी को तरस गया। इसके चलते अचरोल से आने वाली कचराला नदी का पानी भी इस तक नहीं पहुंच पा रहा। इसी तरह नाहरगढ़ की पहाडियों से लेकर अन्य स्थानों से आई जलराशि भी बांध के पेटे तक नहीं पहुंच पाई। जलमहल झील के आकार से छेड़छाड़ का ही नतीजा रहा कि सडकें जलमग्र हो गई। यही हाल जयपुर के समीप के अन्य छोटे-बड़े बांधों का है।
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