गौतम चौधरी
रांची रू हेमंत शासन के दौरान तीन विधानसभा उप चुनाव में शिकस्त हो चुकी भाजपा को मांडर से बहुत उम्मीद है। प्रदेश भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव को केवल हार-जीत के रूप में नहीं देख रही है। इसे भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा के साथ जोड़ लिया है। मसलन, भाजपा मांडर विधानसभा किसी प्रकार भी जीतना चाहती है, जबकि सत्तारूढ़ महागठबंधन में कई प्रकार के अंतरविरोध हैं। यही नहीं भाजपा को इस बात से भी उम्मीद है कि मांडर का जनजातीय वोट इस बार कई भागों में विभाजित होगा, जबकि भाजपा जनजातीय वोटों के साथ अन्य वर्ग व अपने कैडर वोटों के बदौलत चुनाव जीत जाएगी। ऐसे भी गंगोत्री कुजूर को गेम चेंजर नेता के रूप में देखा जाता है। गंगोत्री प्रदेश की ऐसी महिला भाजपा नेत्री हैं, जो न केवल भाजपा की हार्डकोर कार्यकर्ता रही है अपितु उसका अपना खुद का राजनीतिक आभामंडल है।
मांडर विधानसभा उप चुनाव को लेकर भाजपा की ओर से गंगोत्री कुजूर मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस ने पूर्व विधायक बंधु तिर्की की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की को मैदान में उतारा है। उप चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन 2019 में भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर मांडर विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले देव कुमार धान ने भी निर्दलीय पर्चा दाखिल कर दिया। धान के मैदान में उतरने से मांडर का चुनाव बेहद रोमांचक हो गया है। यही नहीं धान इस चुनाव को त्रिकोणीय बना देंगे। दरअसल, झारखंड के आदिवासी राजनीति में धान का अपना दबदबा है। मांडर में भी बड़ी संख्या में आदिवासी वोटर धान के साथ जुड़े हुए हैं। इसलिए धान के चुनाव में उतरने से विधानसभा चुनाव का समीकरण बदलने की पूरी संभावना है।
मांडर विधानसभा क्षेत्र में फिलहाल शिल्पी तिर्की का पलड़ा भारी दिख रहा है। शिल्पी के पिता बंधु तिर्की, मांडर के विधायक थे और आय से अधिक संपत्ति के मामले में उन्हें सजा सुनायी गयी। इसके कारण उनकी विधयकी चली गयी। 2019 में मांडर विधानसभा क्षेत्र से उन्हें 92491 मत प्राप्त हुए थे जबकि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार देव कुमार धान को 69364 मत प्राप्त हुए। मांडर विधानसभा चुनाव में 2019 से पहले बंधु, 2009 एवं 2005 में भी चुनाव जीत चुके हैं। 2009 में बंधु को 58924 एवं 2005 में 56597 मत प्राप्त हुआ। इस प्रकार मांडर में बंधु की पकड़ बेहद मजबूत है। सामान्य रूप से देखें तो शिल्पी को अपने पिता की छोड़ी जमीन का लाभ मिलेगा।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि मांडर में बंधु तिर्की की स्थिति मजबूत है लेकिन बंधु तीनों चुनाव कांग्रेस के खिलाफ जीते हैं। 2019 का भी चुनाव उन्हें झारखंड विकास मोर्चा पार्टी की टिकट पर जीते थे। इस बार बंधु की पुत्री कांग्रेस की उम्मीदवार है। दूसरी बात यह है कि देव कुमार धान के चुनाव में खड़े हो जाने से ही 2014 में गंगोत्री चुनाव जीत गयी थी। प्रेक्षकों का मानना है कि गंगोत्री को आदिवासी वोटों में विभाजन का लाभ मिला था। धान फिर से मैदान में हैं, संभवतरू इस बार भी आदिवासी वोटों में विभाजन की पूरी संभावना है। यही नहीं कम्युनिस्ट वोट भी इस बार बंधु की पुत्री शिल्पी को मिलता नहीं दिख रहा है। ऐसे में शिल्पी के लिए मांडर विधानसभा का उप चुनाव जितना आसान दिखता है उतना है नहीं।
सरकार में इकट्ठे रहने के बाद भी महागठबंधन की दो महत्वपूर्ण पार्टियों (कांग्रेस व झामुमो) के बीच लगातार सह और मात का खेल चल रहा है। अभी हाल ही में राज्यसभा चुनाव के दौरान भी यह देखने को मिला। झामुमो का मांडर के आदिवासी समाज में तो पकड़ बेहद कमजोर है लेकिन मुस्लिम और कुर्मी मतदाताओं के बीच अच्छी पकड़ बतायी जाती है। जानकार बताते हैं कि झामुमो कभी कांग्रेस को मजबूत होते नहीं देखना चाहेगी। चुकी बंधु जेवीएमपी से मांडर के उम्मीदवार थे इसलिए वे चुनाव जीत गए लेकिन इस बार शिल्पी कांग्रेस की उम्मीदवार हैं। झामुमो किसी कीमत पर मांडर उप चुनाव में का समर्थन नहीं करेगा। ऐसे में मुस्लिम वोट कांग्रेस के पक्ष में जाना आसान नहीं दिख रहा है। दूसरी बात इस बार सुदेश ने भाजपा का समर्थन किया है। ऐसे में कुर्मी मतदाता भाजपा को वोट कर सकते हैं। इसलिए गंगोत्री मांडर उप चुनाव जीत सकती है।