गुलाम शाहिद
विगत दिनों झारखंड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने एक बार फिर झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया। साहदेव ने झारखंड की हेमंत सरकार पर बांग्लादेशी घुसपैठियों पर नरम रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। बहुत अच्छी बात है। इस मामले को लेकर पहले भी प्रदेश से लेकर देश तक में बड़ी सियासतें हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है। भाजपा और संघ परिवार कथित तौर पर यह आरोप लगाती रही है कि भारत में दो करोड़ से अधिक बांग्लादेशी घुपैठिए हैं, जिसे उनके देश वापस भेजना चाहिए लेकिन विगत 9 वर्षों से केन्द्र में भाजपा सरकार चला रही है और झारखंड में कई वर्षों तक भाजपा सरकार में रही लेकिन एक भी बांग्लादेशी न तो पकड़ा गया और न ही उसे वापस उनके देश वापस भेजा गया। हां, छिटपुट घटनाएं घटती रही है, जिसे कानून व्यवस्था का मुद्दा बना कर उस पर मिट्टी लाडा जाता रहा है।
यह मुद्दा तब और जोर पकड़ा था जब असम में बांग्लादेशियों को चिंहित करने का काम प्रारंभ किया गया था। लगा था कि अब इस मामले पर निर्णय हो कर रहेगा लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हुई और मामला वहीं का वहीं रुक गया। असम वाले मुद्दे में हुए यूं कि वहां मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू बांग्लादेशी घुसपैठिए निकले। इसके बाद सरकार ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। झारखंड में इतने दिनों तक भाजपा की सरकार रहने के बाद भी बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर न तो कोई नीति बनायी गयी और न ही कोई व्यापक कार्रवाई की गयी। पांच वर्ष तक रघुवर दास मुख्यमंत्री रहे लेकिन कार्रवाई नहीं हो पायी। इस मामले में सरकार को कायदे से एक समिति बनाकर जांच करनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। अब जब रघुवर दास हार गए और भाजपा सत्ता से बेदखल हो गयी है तो एक बार फिर हिन्दुओं की भावनाओं से खेलने की कोशिश की जा रही है।
हैरानी की बात यह है कि शाहदेव ने इस बार कुछ विशेष कहा है। जिस ट्वट के माध्यम से यह बात कही उन्होंने कही है उसमें उन्होंने इस बार दो बातें साफ किया है। एक भारतीय मुसलमान और दूसरा बांग्लादेशी मुसलमान। उन्होंने कहा कि बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियो को हेमंत सरकार में दामाद का दर्जा प्राप्त है और मूलवासी मुसलमान के साथ सौतेले बेटे की तरह बर्ताव हो रहा है। उनका दावा यह भी है कि इन बांग्लादेशी घुसपैठियों के द्वारा यहां की आदिवासी महिलाओं के साथ शादी कर उनका धर्मांतरण करवाया जाता है और इसके साथ ही उन्हे यहां की नागरिकता मिल जाती है। स्थानीय स्तर पर मौजूद उनके मददगारों के द्वारा उन्हें फर्जी दस्तावेज मुहैया करवाया जाता है। अब शाहदेव साहब को यह कौन समझाए कि यह खेल सीमा पार बांग्लादेश ही प्रारंभ हो जाता है। शाहदेव के द्वारा इन दावों के समर्थन में कोई वास्तविक और वैज्ञानिक आंकड़ा पेश नहीं किया गया है। शाहदेव साहब को कथित बांग्लादेशी घुसपैठियों के द्वारा कितनी संख्या में स्थानीय आदिवासी महिलाओं के साथ विवाह हुआ है, इसकी भी कोई वास्तिवक संख्या सामने नहीं रखी गयी है।
यहां यह याद रहे कि जब भी भाजपा के द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया जाता है, राज्य सरकार इस मामले में केन्द्र की सराकर को ही कटघरे में खड़ा कर देती है। राज्य सरकार का आरोप है कि यदि अंतरराष्ट्रीय सीमा को धता बताकर बांग्लादेशी भारत में घुसपैठ कर रहे हैं तो इसके लिए जिम्मेबार केन्द्र सरकार और केन्द्रीय एजेंसी है। राज्य सरकार की जिम्मेबारी तो केवल कानून व्यवस्था की होती है। कार्रवाई तो केन्द्र सरकार के जिम्मे होता है। इसलिए अगर बांग्लादेशी घुसपैठिए हमारे देश में आ रहे हैं तो इसके लिए केन्द्र सरकार को ही इस दिशा में सोचना होगा। सीमा पर ही उसे क्यों नहीं रोका जा रहा है? सीमा की सुरक्षा करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी में नहीं आता है। भाजपा के नेताओं को यह भी समझना चाहिए कि भारत सरकार और बांग्लादेशी की सरकार के बीच जो समझौता है उसमें आजतक कभी भी बांग्लादेशी घुसपैठिए का मुद्दा नहीं उठाया गया। जब देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी तो उन्होंने अवैध घुसपैठ को लेकर उस समय के पाकिस्तान पर आरोप लगाया था और बांग्लादेश आन्दोलन का समर्थन किया था लेकिन उसके बाद भारत की किसी सरकार ने बांग्लादेश के साथ इस मुद्दे पर कोई बात नहीं की है। यहां तक कि भाजपा के सबसे होनहार प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने भी बांग्लादेश के प्रधानमंत्री से इस मुद्दे पर कोई बात नहीं की है। अब सवाल यह है कि इस समस्या का समाधान कैसे होगा?
जो सवाल भाजपा हेमंत सरकार से पूछ रही है, वही सवाल उसे भारत के गृह विभाग से पूछना चाहिए। जिसके जिम्मे यह पूरा मामला है लेकिन भाजपा को इस मुद्दे को निवटाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उसे केवल भावना को भरकाने में आनंद आता है। उसे हिन्दुओं का एकीकृत वाट चाहिए इसलिए एक बार फिर से भाजपा वही पुराना राग अलापने लगी है। भाजपा झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठा कर सियासी लाभ लेने के फिराक में है। झामुमो यह सवाल भी पूछती रही है कि झारखंड गठन के बाद अधिकांश समय तो यहां भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों की ही सरकार रही। अर्जुन मुंडा से लेकर रघुवर दास यहां के मुख्यमंत्री रहे लेकिन तब इस मामले को क्यों नहीं उठाया गया। इस मुद्दे को लेकर सिर्फ हेमंत सरकार को कटघरे में खड़ा करना कितना उचित है? प्रतुल शाहदेव साहब को यह भी बता देना चाहिए कि कथित घुसपैठियों की पहचान के लिए उनके पास क्या प्लानिंग और तंत्र है? वह कौन-सा मानक और मापदंड है जिसके आधार पर घुसपैठियों की पहचान की जायेगी?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और एक उर्दू अखबार के स्थानीय संपादक हैं। आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)