भारतीय उपमहाद्वीप में आतंकवाद के नए मॉड्यूल पर विमर्श करती पुस्तक, ‘‘PFI : इस्लाम के नाम पर आतंक का धंघा’’ 

भारतीय उपमहाद्वीप में आतंकवाद के नए मॉड्यूल पर विमर्श करती पुस्तक, ‘‘PFI : इस्लाम के नाम पर आतंक का धंघा’’ 

आतंकवाद की कोई वैश्विक परिभाषा नहीं है लेकिन इस मानव जनित रोग से पूरी दुनिया की संक्रमित है। दुनिया का लगभग प्रत्येक देश परोक्ष या प्रत्यक्ष आतंकवाद से प्रभावित है बावजूद इसके खिलाफ कोई वैश्विक सहमति नहीं बन पाई है। आतंकवाद या उग्रवाद को दुनिया का हर देश अपने तरीके से इसे परिभाषित करता है। यह वह अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रख कर गढ़ने का दावा करता है। द्वीतिय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने देशों के बीच आपसी वैमनष्य को कम करने की कोशिश जरूर की है लेकिन आतंकवाद या उग्रवाद को लेकिन कोई आपसी सहमति नहीं बन पायी है। आतंकवाद व उग्रवाद के कारण विश्व मानवता को अपार हानि झेलनी पड़ रही है। 

आतंकवाद और उग्रवाद के कई रूप हैं। उन रूपों में से धार्मिक श्रेष्ठताबोध को केन्द्र में रख कर आतंक पैदा करना और विरोधियों को हानि पहुंचाना भी एक है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण इस्लाम के नाम पर फैलाया जाने वाला आतंकवाद दुनिया की मानवा के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। इसके कारण खुद इस्लामिक जगत लहूलुहान है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्कीय, मिस्र, फिलिस्तीन, सीरिया, अजरबैजान, आर्मेनिया, चेचेनिया आदि में इस्लाम के नाम पर आतंक आम बात है। अभी हाल ही में आईएसआईएस नामक संगठन ने पूरी दुनिया के इस्लामिक देशों को एक कर खिलाफत का आंदोलन प्रारंभ किया था। इसके कारण कई देश तबाह हो गए। उसका खामियाजा आज भी कई देश भुगत रहे हैं। वही हाल हूती आतंकवादियों का भी है। फिलहाल इस्लाम का हर फिरका एक दूसरे को काफिर कह कर उसके खिलाफ संघर्ष की बात कर रहा है। इस संघर्ष में आमने-सामने की लड़ाई कम और आतंकवाद व उग्रवाद की भूमिका बड़ी है। 

भारत लंबे समय से इस्लामिक आतंकवाद के जद में है। भारतीय उपमहाद्वीप में, समय के साथ, इस शैली के आतंकवाद ने भले अपने स्वरूप और काम करने की तरीकों में परिवर्तन किया हो लेकिन सिद्धांतिक रूप से इसका मकसद भारत के लोकतांत्रिक ढंचे को तबाह करना एवं डेढ़ हजार वर्ष पहले के शरीया कानून को देश पर थोपना है। इधर हाल ही में इसी इस्लामिक आतंकवाद के एक मॉड्यूल, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर ‘‘आकृति प्रकाशन’’ ने एक पुस्तक छापी है। दरअसल, पॉपुलर फ्रांट ऑफ इंडिया की संदिग्ध गतिविधि को लेकर भारत सरकार ने विगत डेढ़ वर्ष पहले उसपर प्रतिबंध लगा दिया था। फ्रंट के लगभग सभी नेता या तो जेल में हैं, या फिर भूमिगत हैं। उस प्रतिबंध के कारण भारत में कई सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल रहा है। इसमें से सबसे बड़ा परिवर्तन आपसी सौहार्द में बढ़ोतरी है। जानकारों की नजर में पॉपुलर फ्रांट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई सबसे शातिर आतंकवादी मॉड्यूल है। इसे मुस्लिम ब्रदरहुड का भारतीय वर्जन भी कहा जाता है। 

आकृति प्रकाशन द्वारा छापी गयी पुस्तक, ‘‘पीएफआई: इस्लाम के नाम पर आतंक का धंधा’’ उक्त तमाम विमर्शों को अपने में समेटे हुए है। इस पुस्तक को वरिष्ठ पत्रकार गौतम चौधरी ने लिख है। गौतम चौधरी मूलतः दरभंगा, बिहार के रहने वाले हैं और देश के कई भागों में पत्रकारिता की है। गौतम विगत लंबे समय से पीएफआई पर लिखते भी रहे हैं। पुस्तक में पीएफआई के सभी पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही इस्लाम के आंतरिक गतिरोधों की भी इसमें व्याख्या की गयी है। भारत में इस्लाम के आगमन से लेकर वहाबी आन्दोलन तक की चर्चा इस पुस्तक में की गयी है। इस्लाम के मानने वाले कुछ चरमपंथी किस प्रकार आतंकवाद के माध्यम से अपने विरोधियों को क्षति पहुंचाते हैं इसकी मुकम्मल व्याख्या इस पुस्तक का आधार विषय है। इस पुस्तक में ब्रितानी साम्राज्यवाद का इस्लामिक आतंकवाद के साथ क्या संबंध है ऊपर भी व्यापक विमर्श प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक में भारत के आतंकवाद और उग्रवाद को भी बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया गया है। इस्लामिक आतंकवाद के पीएफआई वाले मॉड्यूल की चर्चा तो इस पुस्तक का केन्द्रीय विषय है ही। कुल 114 पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य 250 रुपये है। इस पुस्तक को कोई भी पाठक अमेजॉन नामक डिजिटल दुकान से खरीद सकता है। फिलहाल इस पर ऑफर भी चल रहा है। https://www.amazon.in/dp/9392480822/ref=olp-opf-redir?aod=1#immersive-view_1715166467271

पुस्तक का उपसंहार भारत में मुस्लिम असंतोष पर केन्द्रित है। पुस्तक का सबल पक्ष सिद्धांत एवं बौद्धिक विमर्श है, जबकि भाषा की कतिपय अशुद्धि इसका नकारात्मक पक्ष है। 

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