कमलेश पांडेय
यदि आप उत्तर प्रदेश और बिहार का समग्र विकास चाहते हैं तो सीमा पर्यटन की पुख्ता तैयारी सुनिश्चित करनी होगी। क्योंकि कभी बीमारू राज्यों में शुमार इन दोनों प्रदेशों में सीमा पर्यटन विकसित करने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं और यहां के मौजूदा चमत्कारी राजनीतिक नेतृत्व से लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ी हुई हैं, इसलिए अब उन्हें निराश करने की जरूरत नहीं है, बल्कि नागरिक प्रशासन को उस सांचे में ढालने की दरकार है जहां पर किंतु-परन्तु के लिए कोई स्थान नहीं हो।
वजह यह कि इफ एन्ड बट से प्रशासनिक स्वार्थ तो साधा जा सकता है, जो अब न्यायिक स्वार्थ सिद्धि का पर्याय बनता जा रहा है। एक हद तक इससे राजनीतिक स्वार्थ भी सध सकता है, लेकिन जनता का स्वार्थ इससे कभी भी पूरा नहीं होगा। इसके लिए हमें संकुचित दृष्टि यानी बहुमत के पैंतरेबाजी से आगे बढ़कर सबको सुख-शांति-सुरक्षा की गारंटी देने वाले समग्र विकास यानी सर्वसम्मति की बात को ही आगे बढ़ानी होगी। यूपी की योगी सरकार का ध्येय भी यही है और उनकी प्रशासनिक टीम भी कुछ इसी दिशा में ततपर है।
देखा जाए तो घटते जनाधार के चलते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सियासी व प्रशासनिक स्थिति भले ही कमजोर समझी जा रही हो, लेकिन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राजनैतिक व प्रशासनिक तदबीर अभी बुलंदियों पर है। निष्पक्ष रूप से कहा जाए तो योगी आदित्यनाथ और उनकी टीम से पारस्परिक समझदारी विकसित करके नीतीश कुमार अपना और बिहार दोनों का भला कर सकते हैं। बस इसके लिए कुछ ओछी राजनीतिक फितरतों से उन्हें ऊपर उठना होगा। यह कहने का साहस उनके आसपास के लोगों में न कभी था और न होगा। लेकिन यदि वो समय और परिस्थिति के इन संकेतों को समझने में कामयाब हो गए, तो अवशेष राजनीतिक लक्ष्य भी सधते देर नहीं लगेगी।
ऐसा कहने का कुछ कारण है- पहला, यूपी-बिहार को भारतीय राजनीतिक क्षितिज पर जुड़वां भाई समझा जाता है, जिसकी दिल्ली दरबार में सबसे ज्यादा पूछ और दखल दोनों रहता आया है। दूसरा, दोनों राज्यों की सीमाएं पड़ोसी देश नेपाल से सटती हैं, जहां से निकलकर दोनों प्रदेशों में बहने वाली नदियां बरदान और अभिशाप दोनों बनती हैं। यहां की रखवाली जिस अंदाज में कर रही है, वह भारत और नेपाल दोनों पड़ोसी देशों के लिए एक सुखद बात है।अभी हाल ही में अपनी बहराइच, उत्तरप्रदेश की यात्रा के दौरान मैंने यह महसूस भी किया है।
तीसरा, कई अन्य प्राकृतिक संसाधनों का समझदारी पूर्वक आदान-प्रदान करके दोनों राज्य न केवल अपनी श्रम शक्ति का उपयोग अपने कृषि, बागवानी, दुग्ध, मत्स्य, मांस, आदि कारोबार में कर सकते हैं, बल्कि इन पर आधारित उद्योग-धंधों को एक नई दिशा प्रदान करने के लिए सम्बन्धित आधारभूत ढांचा भी खड़ा कर सकते हैं। चैथा, दोनों राज्यों में जल, थल और नभ पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं, जिसके लिए चाक-चैबंद सुरक्षा और प्रवास तथा परिवहन के सर्वसुलभ साधनों का होना प्राथमिक शर्त है, जिसे दोनों राज्य मिलकर पूरा कर सकते हैं। पांचवां, यूपी-बिहार मिलकर केंद्र सरकार को रजामंद करके नेपाल से जलविद्युत उत्पादन की भी रणनीति तैयार कर सकते हैं, जिससे सीमाई इलाकों में ऊर्जा-संकट को दूर किया जा सकेगा, जो कि पर्यटन विकास के लिए जरूरी चीज है।
आमतौर पर जब हम पर्यटन की बात करते हैं तो हमारा ध्यान धार्मिक पर्यटन पर जाकर स्थिर हो जाता है। लेकिन हमें ऐसा करने के बजाय दोनों राज्यों में मौजूद जल और जंगल विहार की संभावनाओं को तलाशना और तराशना होगा। यहां मौजूद जैव विविधताओं से देश-दुनिया को अवगत करवाना होगा। यहां के दियारांचल (नदियों के छाड़न के बीच के क्षेत्र ), चैरांचल (नदियों के तटवर्ती क्षेत्र), वनांचल (वन सम्पदाओं से भरे पूरे क्षेत्र) को ग्रामीण पर्यटन के लिहाज से विकसित करना होगा, जिससे जैव विज्ञान, प्राणी विज्ञान, कृषि विज्ञान, वानिकी और समाजविज्ञान के अध्ययन-अध्यापन में भी नई शोध दृष्टि मिलेगी। शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवसाय को भी मजबूती मिलेगी। समग्रता में इनसे आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान भी परिपुष्ट होगा।
यदि सरकार के पास इस क्षेत्र में निवेश करने के लायक पर्याप्त धन नहीं है तो पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की अवधारणा को भी वह यहां पर लागू कर सकती है। ऐसा इसलिए कि पर्यटन ही एक ऐसा मात्र उद्योग है जो न्यूनतम प्रदूषण पैदा करने के बावजूद अपने साथ साथ कई वैसे उद्योगों के विकास और विस्तार की वजह बन जाता है, जिससे आमलोग सीधे तौर पर जुड़े हुए होते हैं। इससे दो सभ्यताओं और संस्कृतियों के बीच सामंजस्य की भावना भी पैदा होती है, विकसित होती है और पल्लवित-पुष्पित होती है, जो भारत जैसे विविधता पूर्ण देश के लिए बहुत जरूरी है। यदि ऐसा पायलट प्रोजेक्ट यूपी-बिहार में सफल होता है तो इससे मिले जुले रूप को अन्य राज्यों में उनकी जरूरतों के हिसाब से विकसित किया जा सकता है।
सच कहा जाए तो अब हमारी सेना भी इस बात को मानने लगी है कि सीमा पर्यटन सिर्फ देश की सुरक्षा के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं होगा, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार भी सृजित करेगा। उसने इसी नजरिए से उन इलाकों में भी आबादी को बसाने की वकालत की है, जहां पर दो देशों के बीच हुए युद्धों और उसकी भावी आशंकाओं के मद्देनजर लोग पलायन कर गए। सेना ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि प्राकृतिक जटिलताओं के मद्देनजर लोगों को सीमाई क्षेत्रों में बसाना संभव नहीं है तो वहां पर पर्यटक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इससे सीमा के नजदीकी क्षेत्रों को पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।
(युवराज)