अशोक भाटिया
चीन ने अपना एक नया आधिकारिक नक्शा जारी किया है जिसमें उसने अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया है। दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग की अनौपचारिक मुलाकात और सीमा विवाद सुलझाने के प्रयासों पर बातचीत के तीन दिन के भीतर चीन ने यह नक्शा जारी किया है। भारत ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और कहा कि ऐसा बेहूदा दावों से किसी और का क्षेत्र आपका नहीं हो जाएगा।
भारत ने आधिकारिक रूप से इस पर तीखा प्रतिवाद दर्ज कराया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्विट करके मंगलवार को बताया- हमने आज डिप्लोमेटिक चैनल से चीन के सामने उसके ‘स्टैंडर्ड मैप 2023’ को लेकर कड़ा प्रतिवाद दर्ज कराया है जिसमें उसने भारतीय क्षेत्र को अपना बताया है। उन्होंने आगे लिखा है- हम उनके दावे को खारिज करते हैं क्योंकि इसका कोई आधार नहीं है। चीन की ओर से उठाए जाने वाले ऐसे कदम सीमा के सवालों के हल को और उलझा देंगे।
इससे पहले चीन ने सोमवार को अपना आधिकारिक मैप जारी किया है। इसमें भारत के अरुणाचल प्रदेश, अक्साई चीन, ताइवान और विवादित दक्षिण चीन सागर को अपने क्षेत्र में दिखाया है। चीन के सरकारी न्यूज पेपर ने ट्विटर पर नया मैप पोस्ट किया। इस पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि चीन की यह पुरानी आदत है। उनके दावों से कुछ नहीं होता। एक निजी टेलीविजन चैनल को दिए इंटरव्यू में जयशंकर ने भारत के इलाकों को अपना बताने के चीन के दावे को सिरे से खारिज कर दिया।
उन्होंने कहा कि चीन ने नक्शे में जिन इलाकों को अपना बताया है, वो उनके नहीं हैं। ऐसा करना चीन की पुरानी आदत है। अक्साई चिन और लद्दाख भारत का अभिन्न हिस्सा है। पहले भी चीन भारत के हिस्सों के लेकर नक्शे निकालता रहा है। उसके दावों से कुछ नहीं होता। हमारी सरकार का रुख साफ है। बेकार के दावों से ऐसा नहीं हो जाता कि किसी और के इलाके आपके हो जाएंगे।
गौरतलब है कि ऐसा पहली बार नहीं है जब चीन ने ऐसी हरकत की है। इससे पहले चीन की मिनिस्ट्री ऑफ सिविल अफेयर्स ने अरुणाचल प्रदेश के नक्शे में 11 जगहों के नए नाम दिए थे। चीन सिर्फ मैप पर ही ऐसी हरकत नहीं कर रहा बल्कि अरुणाचल प्रदेश से लगती लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के पास भी चीन ने इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया है। कई गांव बनाए हैं और इंडियन आर्मी को अंदेशा है कि चीन की सेना इन गांवों का दोहरा इस्तेमाल यानी सिविल के साथ ही मिलिट्री इस्तेमाल कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक जल्द ही चीन स्टडी ग्रुप की मीटिंग हो सकती है। जिसमें हाल ही में ईस्टर्न लद्दाख में गतिरोध दूर करने को लेकर हुई दोनो देशों के बीच हुई कोर कमाडंर स्तर की मीटिंग और उसके बाद के डिप्लोमेटिक स्तर पर हुए डिवेलपमेंट के बारे में बातचीत हो सकती है।
चीन के साथ ईस्टर्न लद्दाख में एलएसी पर तीन साल से ज्यादा वक्त से तनाव चल रहा है। बातचीत के जरिए इसे सुलझाने की कोशिशें जारी हैं लेकिन चीन ईस्टर्न सेक्टर में यानी अरुणाचल प्रदेश वाले इलाके में लगातार कुछ न कुछ हरकतें कर रहा है। पिछले साल दिसंबर में भी चीन ने ईस्टर्न सेक्टर में ऐसी हो कोशिश की थी। तब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में बताया था कि 9 दिसंबर को चीन ने अरुणाचल प्रदेश के यांग्त्से में यथास्थिति बदलने की कोशिश की। भारतीय सेना ने बहादुरी से चीनी सेना को हमारे क्षेत्र में अतिक्रमण करने से रोका और उन्हें उनकी पोस्ट पर वापस जाने को मजबूर कर दिया। इसी साल जनवरी में आर्मी चीफ ने कहा कि पिछले कुछ समय में चीनी सैनिकों की तैनाती ईस्टर्न सेक्टर (अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम) के दूसरी तरफ बढ़ी है। चीनी सैनिक वहां एक्सरसाइज करने आए थे और फिर उनकी तैनाती को वहां बढ़ा दिया गया।
चीन ने पिछले दो साल में रेस्ट ऑफ अरुणाचल प्रदेश त्।स्च्एरिया के पास चीनी सैनिकों की गश्ती भी बढ़ाई है। वहां चीन इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी फोकस कर रहा है। अरुणाचल प्रदेश में ईस्ट और वेस्ट कामेंग जिले को छोड़कर बाकी अरुणाचल प्रदेश को इंडियन आर्मी त्।स्च् कहती है। चीनी सेना ने जिस तरह से त्।स्च् एरिया के दूसरी तरफ अपने सैनिकों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ाई है उस पर इंडियन आर्मी की पूरी नजर है।
माना जा सकता है चीन के साथ पिछले कुछ वर्षों से भारत के सम्बन्ध जिस तल्खी के दौर से गुजर रहे हैं उसकी मूल वजह चीन की वह खोट भरी नीयत ही है जिसके चलते वह भारतीय सीमाओं में अतिक्रमण करता रहता है। जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में तैनात भारतीय सैनिकों के साथ चीनी फौजियों ने जिस तरह की हाथापाई और संघर्ष किया था उसमें भारत के 20 रणबांकुरे शहीद हो गये थे और उसके बाद से चीनी फौजें भारतीय सीमा क्षेत्र में घुस कर बैठ गई थीं। वैसे तो चीन की तरफ से बार-बार आपसी सम्बन्धों को सामान्य बनाने की बात कही जाती रही है मगर इसकी कथनी में भी फर्क देखने में आता रहता है। भारत की आन्तरिक राजनीति में भी चीन के रवैये को लेकर पिछले कुछ वर्षों से लगातार गर्मी बनी रहती है और विपक्षी दल सरकार की आलोचना करते रहते हैं परन्तु इतना निश्चित है कि जून 2020 से भारत-चीन की सीमाओं पर तनावपूर्ण माहौल लगातार बना हुआ है जिसे दूर करने के लिए अभी तक दोनों सेनाओं के कमांडर स्तर की 19 दौर की वार्ताएं भी हो चुकी हैं मगर नतीजा भारत की अपेक्षानुरूप नहीं निकल पाया है।
भारत के रक्षा व कूटनीतिक विशेषज्ञ शुरू से ही सावधान कर रहे है कि चीन लद्दाख से गुजर रही सीमाओं नियन्त्रण रेखा को बदल देना चाहता है जिसकी वजह से लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमाओं में यह परिवर्तन करने पर आमादा लगता है। चीन के बारे में भारत में यह धारणा बन चुकी है कि जून 2020 के बाद से वह भारत की कम से कम दो हजार वर्ग कि.मी. भूमि को कब्जाये बैठा है। उसके साथ कमांडर स्तर की जो वार्ताएं होती हैं उनमें किश्तों में वह भारतीय जवानों को पुरानी चैकियों पर तैनात होकर सुरक्षा करने को सहमति देता है और पीछे हटने का नाटक करता रहता है मगर भारत के इलाके वाले क्षेत्र में सैनिक निर्माण कार्य भी करता रहता है।
पूरा भारत चीन की इस खोटी नजर को भली-भांति पहचानता है क्योंकि 1962 में अकारण ही इसने भारत की पीठ में छुरा घोंपते हुए विश्वासघात करके हमला कर दिया था और इसकी फौजें असम राज्य के ‘तेजपुर’ तक आ गईं थीं। बाद में प. नेहरू की अन्तर्राष्ट्रीय छवि को देखते हुए विश्व के अधिसंख्य देशों ने चीन को इस कदर जलील किया कि इसे अपनी फौजें पीछे हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा मगर उस समय चीन भारत का पूरा अक्साई चिन इलाका अपने कब्जे में लेकर बैठ गया। तब से यह क्षेत्र इसके कब्जे में है मगर 1963 में पाकिस्तान ने एक और शातिराना हरकत की और पाक अधिकृत कश्मीर का काराकोरम घाटी वाला पांच हजार वर्ग कि.मी. का इलाका इसे सौगात में दे दिया और चीन के साथ नया सीमा समझौता कर लिया। इतना ही नहीं जब 2003 में भाजपा नीत एनडीए की वाजपेयी सरकार ने तिब्बत को चीन का हिस्सा स्वीकार किया तो चीन ने सिक्किम को भारतीय संघ का हिस्सा मानने के साथ ही अरुणाचल प्रदेश पर अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया। अतः चीन की विस्तारवादी नीति के प्रति हमें हमेशा ही सजग रहने की जरूरत है। यह ऐसा कम्युनिस्ट देश है जिसका यकीन अब पूंजीवादी विस्तारवाद पर भी हो गया है और यह दुनिया के कम विकसित व गरीब देशों को इसी नीति के चलते नयी साम्राज्यवादी व्यवस्था कायम करना चाहता है। मगर भारत की स्थिति अब 1962 वाली नहीं है और वह ऐसी स्थिति में 2006 में ही आ गया था जब भारत के तत्कालीन विदेशमन्त्री भारत रत्न स्व. प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रसंघ महासभा की बैठक के समानान्तर ही ब्रिक्स संगठन की मजबूत आधारशिला रख दी थी। बेशक इसमें चीन भी शामिल था मगर प्रणव दा इस संगठन के बहाने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से पूरी दुनिया में अमेरिका व पश्चिमी यूरोपीय देशों की वह दादागिरी तोड़ना चाहते थे जिसके चलते इन देशों ने दुनिया के अधिकांश वित्तीय स्रोतों व आय स्रोतों पर अपना अधिपत्य जमा रखा था। बाद में ब्रिक्स बैंक की स्थापना होना इसका प्रमाण भी है।
अब इसी ब्रिक्स संगठन में दुनिया के 23 और देश शामिल होना चाहते हैं और जोहान्सबर्ग ब्रिक्स सम्मेलन का इस बार यही प्रमुख एजेंडा भी था मगर भारत को सीधा मतलब चीन से है जो जून 2020 से ही भारत के लद्दाख क्षेत्र में अपनी सीनाजोरी चला रहा है और भारत को अपना माल निर्यात करने में भी हर साल तरक्की कर रहा है। भारत में चीनी कम्पनियों का कारोबार कम नहीं है लेकिन चीन भारत का पड़ोसी भी है। 1959 में स्वतन्त्र देश तिब्बत को हड़पने के बाद अब इसकी सीमाएं सीधे भारत से सटती हैं और समुद्री सीमाएं तो पहले से ही इससे लगती हैं। अतः हमें बड़े शान्त चित्त और कूटनीति से इसके साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाना होगा।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)