गौतम चौधरी
इन दिनों दक्षिण भारत इस्लामिक चरमपंथियों की जद में है। इसका जीता जागता उदाहरण तमिलनाडु का कोयम्बटूर विस्फोट है। इसी वर्ष दिवाली के ठीक एक दिन पहले कोयम्बटूर के एक संवेदनशील इलाके में बम विस्फोट की घटना हुई। दरअसल, यह विस्फोट कोयम्बटूर के संवेदनशील, उक्कड़म कोट्टई ईश्वरन मंदिर के सामने हुआ था। यह इलाका अति संवेदनशील माना जाता है। यहां दो समुदायों के बीच तलवारें खिंची होती है। हालांकि इस घटना में एक व्यक्ति की ही मौत हुई लेकिन यह विस्फोट कई मायने में गंभीर है। इस विस्फोट के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा और खास कर दक्षिण भारत की सुरक्षा जुड़ी हुई है। इस मामले की जांच पहले तामिलनाडु पुलिस के हवाले थी लेकिन बाद में इसे राष्ट्रीय जांच अभिकरण यानी एनआईए को सौंप दी गयी। प्रथम दृष्टया विस्फोट सामान्य-सा लगा, लेकिन इसके तह को जितना खंगाला गया उतने ही रहस्य सामने आए। मसलन, इसके तार बेहद खतरनाक नेटवर्क के साथ जुड़े हुए हैं। विस्फोट एक कार में हुआ। इस कार को जेमिशा मुबीन नामक व्यक्ति चला रहा था। विस्फोट कार में लगे गैस सिलेंडर में हुआ और कार चलक की मौत हो गयी।
इस घटना में पांच और व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। जांच एजेंसी ने जब पूरे मामले की तहकीकात की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि जेमिशा, जो कार चला रहा था और विस्फोट में जिसकी मृत्यु हो गयी उसके घर से देशी बमों में इस्तेमाल होने वाले घटक पोटेशियम नाइट्रेट और अन्य कम तीव्रता वाले विस्फोटक बरामद किए गए। जानकारी में हो कि वर्ष 2019 में जेमिशा को श्रीलंकाई ईस्टर संडे बम धमाकों के सिलसिले में भी एनआईए ने पूछताछ की थी। तब यह भी खबर आयी थी कि जेमिशा का संबंध श्रीलंकाई इस्टर संटे विस्फोट के मास्टरमाइंड जाहरान हाशिम के साथ है। हालांकि वह मामला श्रीलंका का था और उसे भारतीय समाचार माध्यमों ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी लेकिन जेमिशा का अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवाद के साथ संबंध होने के प्रमाण सिद्ध हैं। आने वाले समय में दक्षिण भारत में इस प्रकार की और घटनाएं भी हो सकती है। हालांकि भारत सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन उसके नेटवर्क अभी स्लीपर सेल की तरह काम कर रहे हैं।
इस मामले में जांच एजेंसी अपना काम कर रही है और कानून भी अपना काम कर रहा है लेकिन मामले से न केवल सरकार और जांच एजेंसियों को सतर्क रहना चाहिए अपितु आम लोगों को भी गंभीर होना चाहिए। कानून तो अपना काम करेगा और समय आने पर न्याय भी मिलेगा लेकिन इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि उग्रवाद और आतंकवाद के कारण युवाओं को कितना नुकसान होता है। इसके साथ ही जिस परिवार के युवक इस प्रकार की गतिविधि में संलिप्त होते हैं उसको कई प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ता है। मानों उसके उपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। इसलिए हमें जागरूक होना होगा। धार्मिक विद्वानों को उग्रवाद के दुष्परिणामों के बारे में बताना होगा। यहां किसी जाति या पंथ की बात नहीं है। प्रत्येक जाति-पंथ में कट्टरता पनप सकती है। इससे सावधान रहने की जरूरत है। समुदाय के बुजुर्गों को शांतिपूर्ण जीवन जीने का ज्ञान फैलाना होगा और माता-पिता को अपने बच्चों पर सतर्क निगाह रखनी होगी। उन्हें कट्टरपंथ की भनक लगते ही बच्चों पर नकेल कसने चाहिए। यदि बच्चा हाथ से निकलता नजर आएं तो तुरंत इसकी जानकारी स्थानीय प्रशासन को दें। कोई भी धर्म नफरत और हिंसा नहीं सिखाता है। हर धर्म में सांस्कृतिक विविधता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और जीवन के मूल्य पर जोर दिया गया है।
जहां तक इस्लाम की बात है तो यह धर्म विशेष रूप से अपने अनुयायियों को शांति और सद्भाव का संदेश देता है। यह उन्हें एक पवित्र जीवन जीने और मानव जाति के खिलाफ हिंसा में शामिल नहीं होने का आदेश देता है। इस्लाम के धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए इस्लामिक धार्मिक विद्वान मोहम्मद आलम साहब कहते हैं कि हमारे यहां साफ तौर पर यह आदेश दिया गया है कि धरती पर ईश्वर ने विविधता पैदा की है और प्रत्येक आस्तिक को सच्चाई तक पहुंचने के लिए उस विविधता से सीखना चाहिए। इसलिए गलत काम करने वालों से दूरी बनाए रखते हुए मुसलमानों को सतर्क रहना अनिवार्य है। इस्लाम के पैगंबर शांति और सद्भाव के प्रकाशस्तंभ के समान थे।
सरकार को भी विकासात्मक राजनीति को कारगर बनाने और युवाओं को कैरियर निर्माण व नवाचार में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करनी चाहिए। मुस्लिम युवाओं को विशेष रूप से राज्य एजेंसियों के साथ एक स्वस्थ संबंध बनाए रखने और सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतिकूल कुछ भी मिलने पर समय पर सूचित करने की आवश्यकता है। उन्हें ऑनलाइन नफरत और गाली-गलौज और नकारात्मक अभियान का संज्ञान लेना चाहिए और अगर वे इससे परेशान और असहज महसूस करते हैं तो इसकी सूचना पुलिस को देनी चाहिए। साथ ही भारतीय न्याय प्रक्रिया का सहारा लेना चाहिए न कि कानून को अपने हाथ में ले लेना चाहिए। हमारे यहां का कानून सबके लिए बराबर है। हम एक लोकतांत्रिक, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष देश में जीते हैं। जब तक संविधान सुरक्षित है किसी के साथ अन्याय नहीं होगा, इस बात पर हमें भरोसा करना चाहिए। यदि कट्टरता की सूचना सही समय पर नहीं दिया जाता है और कानून को अपने हाथ में लिया जाता है तो हानि सबकी है।