नुक्ताचीनी : “दलबदलू में मेल नहीं देश चलाना खेल नहीं”

नुक्ताचीनी : “दलबदलू में मेल नहीं देश चलाना खेल नहीं”


गौतम चौधरी

एक तरफ पटना और बिहार के कुछ क्षेत्रों में नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने वाला हरे बैकडाॅप पर बड़े-बड़े होडिंग लगाए जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ खुद जनता दल यूनाइटेड अपने आधिकारिक बयान में यह कहता है कि नीतीश जी पीएम पद के दावेदार नहीं हैं। आखिर माजरा क्या है? मामला अटपटा लग रहा है। नीतीश कुमार या उनकी पार्टी आखिर चाहती क्या है?

अद्यतन समाचार के अनुसार मणिपुर जनता दल यूनाइटेड के 6 में से 5 विधायक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। सूचना तो यह भी आ रही है कि बिहार में भी जनता दल यू के कुछ विधायक जल्द अपना पाला बदलने वाले हैं। कुछ जानकार तो यह भी बता रहे हैं कि इन दिनों नीतीश कुमार के खास कहे जाने वाले ललन सिंह जी भी भाजपा के अपने स्वजातीय नेताओं के साथ मेलजोल बढ़ा रहे हैं। इसका अर्थ उनका पार्टी छोड़ना ही नहीं हो सकता है लेकिन नीतीश कुमार के लिए यह खतरे की घंटी तो जरूर है।

‘‘नीतीश जी पीएम मटैरियल हैं’’ का सबसे पहले नारा देने वाले भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी जी एन दिनों बड़े भाई पर खासे अहलाबर हैं। उन दिनों सीनियर मोदी यानी नरेन्द्र मोदी की स्थिति पार्टी में थोड़ी कमजोर थी लेकिन अब नरेन्द्र मोदी मतलब भाजपा और भाजपा मतलब नरेन्द्र मोदी हो गया है। ऐसे में जूनियर मोदी साहब का भी मूड थोड़ा चेंज हुआ है। वे अब नीतीश कुमार से कन्नी काटने लगे हैं। उन्हें यह लग रहा है कि भाजपा में यदि रहना है तो मोदी का गुणगान करना ही होगा। सो, सुशील जी नीतीश जी पर टिप्पणी करने में थोड़ी भी चूक नहीं कर रहे हैं।

वैसे सच पूछिए तो बिहार में नया राजनीतिक समीकरण जो बना है, उसे एक राजनीतिक समस्या भी कह सकते हैं। प्रतिपक्ष का हर पार्टी अपने आप में पूर्ण है और हर पार्टी अपूर्ण भी है। हर के उम्मीदवार को पीएम की कुर्सी चाहिए। ऐसे में तो अब पीएम की कुसी के स्थान पर एक बेंच लगाना होगा, जहां प्रतिपक्षी सभी पीएम प्रत्याशी एक साथ बैठ सकें। इसमें कोई शक नहीं है कि सभी प्रतिपक्षी एकट्ठे लड़े तो कम से कम बिहार में भाजपा की दुर्गति कर ही सकते हैं लेकिन 2024 के आम चुनाव तक सब एकट्ठे रहें तब तो। किसी जमाने में कांग्रेस के लोग एक नारा लगाते थे, –

‘‘दल बदलू में मेल नहीं देश चलाना खेल नहीं।’’  

वर्तमान दौर प्रतिपक्षी दलों के लिए ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। देश को चलाने के लिए लोकतंत्र तो चाहिए ही लेकिन सर्वमान्य एक नेतृत्व भी तो चाहिए, जिसे समय रहते तय कर लिया जाना चाहिए अन्यथा नीतीश ही नहीं केसीआर, स्टालिन, ममता दीदी, केजरीवाल आदि सबके स्वप्न धरे के धरे रह जाएंगे।

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