”ऑपरेशन मार्टरडम” को इस्लाम के साथ जोड़ना नबी के उम्मत के साथ नाइंसाफी है

”ऑपरेशन मार्टरडम” को इस्लाम के साथ जोड़ना नबी के उम्मत के साथ नाइंसाफी है

अभी हाल ही में बीते 10 नवंबर 2025 की शाम लाल किले के पास हुआ भयावह आतंकवादी हमला दिल और दिमाग को झकझोर देने वाला था। इस कायराना और निंदनीय कृत्य में 14 निर्दाेष लोगों की जान चली गई। स्वाभाविक रूप से कई परिवार उजड़ गए और करीब 30 लोग गंभीर रूप से घायल हुए, जो न जाने कब तक इस आघात से जूझते रहेंगे।

इस भयावह घटना के बाद समाचार माध्यमों से आई जानकारियों ने मन को और विचलित कर दिया। यदि हमारी पुलिस और एजेंसियाँ समय पर कार्रवाई न की होती और इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक बरामद न करतीं, तो पता नहीं ये सिरफिरे लोग क्या करते। इस आतंकी घटना का सबसे नकारात्मक पक्ष पढ़े-लिखे लोगों का इसमें शामिल होना है। इस घटना के मुख्य आरोपी डॉक्टर उमर नबी का वीडियो सामने आया तो ऐसा लगा कि गलतफहमी का शिकार अनपढ़ लोग ही नहीं हैं, बल्कि एक पढ़ा-लिखा तबका भी है जो धर्म की गलत व्याख्या का शिकार हो गया है। वीडियो में उमर ने फिदायीन हमलों को “ऑपरेशन शहादत” या “ऑपरेशन मार्टरडम” कहकर उसका महिमामंडन करता दिख रहा है। दरअसल, इस प्रकार की घटना को तार्किक बनाने के लिए ऐसे तर्क गढ़ लिए जाते हैं। आतंकवादी संगठन जानबूझकर अपनी घृणित और कायराना हरकतों को इस्लामी शब्दावली के पीछे छिपाने की कोशिश करते हैं। वे इस्लाम की दया, शांति और सुरक्षा पर आधारित स्पष्ट शिक्षाओं को विकृत कर अपने नापाक मकसद को सही ठहराने की कोशिश करते हैं।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि आजतक किसी भी आतंकवादी समूहों के नुमाइंदों ने कभी इस्लाम या मुसलमानों को कोई लाभ नहीं पहुंचाया है। इसके बजाय उन्होंने नुकसान ही पहुंचाया है और दुनिया भर में इस्लाम और मुसलमानों की छवि को धूमिल किया है। हैरानी की बात यह है कि ये संगठन अपनी गुमराह और इस्लाम-विरोधी विचारधारा को उन युवाओं पर थोपते हैं जिन्हें इस्लामी शिक्षाओं का वास्तविक ज्ञान नहीं होता है। वे गैर-मुस्लिम देशों ही नहीं, बल्कि मुस्लिम देशों, मस्जिदों, कब्रिस्तानों, बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं तक को नहीं छोड़ते। इस मामले में बरेलवी फिरके के विद्वान मुफ्ती मौलाना तुफैल खान बताते हैं कि ‘‘इस प्रकार के सिरफिरे नौजवान सबको निशाना बनाते हैं और निर्दाेष लोगों की हत्या को “जिहाद” या “शहादत” कहते हैं, जबकि इस्लाम और कुरान की स्पष्ट शिक्षाएं उनकी इस गलत विचारधारा को पूरी तरह खारिज करती हैं। इस्लाम में निर्दाेष की हत्या को बहुत बड़ा पाप माना गया है।’’

यहां एक और बात बता दें कि ‘‘जो लोग “ऑपरेशन शहादत/ऑपरेशन मार्टरडम” जैसी विचारधारा फैलाते हैं, वे हमेशा अपनी जान बचाते हैं। वे स्वयं कभी फिदायीन नहीं बनते। वे हमेशा उन युवाओं को चुनते हैं जिन्हें इस्लाम की शिक्षाओं का स्पष्ट ज्ञान नहीं होताकृजैसा कि डॉक्टर उमर ने स्वयं वीडियो में स्वीकार किया है।’’

डॉ. उमर एक आधुनिक, शिक्षित व्यक्ति था। उसकी बहन ने बताया कि वह गरीब परिवार से था और कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए डॉक्टर बना। उसके परिवार ने उम्मीद की थी कि अब उनके संघर्ष के दिन समाप्त होंगे लेकिन आतंकवादी सरगनाओं ने अपनी चालों से उसे गुमराह कर दिया। इस्लाम का गलत अर्थ समझाकर उसके दिमाग को भ्रमित किया। निर्दाेष लोगों की हत्या कर उसने न केवल कई परिवारों को तबाह किया, बल्कि खुद के लिए नरक का रास्ता भी चुन लिया।

दरअसल, इस्लामिक जगत में “ऑपरेशन शहादत/ऑपरेशन मार्टरडम” की शुरुआत करने वाला व्यक्ति ओसामा बिन लादेन को माना जाता है। उससे पहले इस्लाम में आत्मघाती या फिदायीन हमलों की कोई मिसाल नहीं मिलती। कई लड़ाइयां हुईं, लेकिन कहीं आत्मघाती हमला नहीं हुआ। ओसामा ने इस गुमराह करने वाली विचारधारा का प्रचार किया, लेकिन वह स्वयं कभी ऐसे हमलों में शामिल नहीं हुआ। उसने हमेशा दूसरों को उकसाया। इस्लाम में एक स्पष्ट हदीस है कि “धर्म में नया बनाया गया हर काम जो उसका हिस्सा नहीं है, वह अस्वीकार्य है”कृयानी उसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं।

आज भी आतंकवादी संगठन मासूम और धार्मिक रूप से अनभिज्ञ युवाओं को फंसाते हैं। डॉ. उमर भी किसी और को फिदायीन हमले के लिए तैयार कर रहा था, लेकिन जब किसी ने साथ नहीं दिया और उसे पता चला कि उसके साथी पकड़े जा चुके हैं, तो जल्दबाज़ी में उसने खुद को उड़ा लिया। अब देखते हैं वे पवित्र कुरानी आयतें जिन्हें आतंकवादी नेता संदर्भ से हटाकर युवाओं को गुमराह करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। मौलाना तुफैल बताते हैं कि निर्दाेषों की हत्या को सही ठहराने के लिए आतंकवादी सूरह 2 की आयत 154 और सूरह 9 की आयत 111 का गलत अर्थ निकालते हैं लेकिन कुरान में कई आयतें हैं जो उनके गढ़े हुए अर्थों का खंडन करते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण, सूरह 2, आयत 155 स्वयं उनके गलत अर्थ का खंडन करते हैं। आयत 155 कहता है कि ‘‘अल्लाह विश्वासियों की परीक्षा लेगा-डर, भूख, धन की कमी, जान का नुकसान, और खेती में हानि के माध्यम से-लेकिन सब्र करने वालों को जन्नत की खुशखबरी है। जन्नत सब्र पर मिलती है-किसी की हत्या या बदला लेने पर नहीं।’’ सूरह 5, आयत 32 कहती है, “जो किसी एक निर्दाेष की हत्या करता है, वह मानो सारी मानवता की हत्या करता है।” सूरह 4, आयत 29 कहती है, “अपने आप को मत मारो।” सूरह 2, आयत 195, “अल्लाह की राह में खर्च करो और अपने आपको विनाश में मत डालो।” सूरह 7, आयत 56, “धरती पर फसाद मत करो।” सूरह 6, आयत 108, “जिन्हें वे अल्लाह के अलावा पूजते हैं, उनका अपमान मत करो।”

कई इस्लामिक विद्वानों ने साफ तौर पर कहा है कि इन सभी आयतों से स्पष्ट होता है कि इस्लाम निर्दाेषों की हत्या की अनुमति नहीं देता। आत्मघाती हमले पूरी तरह इस्लाम-विरोधी हैं। जो लोग कुरआनी आयतों को तोड़-मरोड़कर युवाओं को गुमराह करते हैं, वे कुरआन द्वारा ही खारिज किए जाते हैं। वे अपने उद्देश्यों के लिए आतंक और भय फैलाते हैं, लेकिन वे मानवता-विशेषकर इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ बड़ा अपराध करते हैं। इस्लाम का ऐसे लोगों से कोई संबंध नहीं, और उनकी हरकतों से मुसलमानों को कभी कोई लाभ नहीं मिला-सिर्फ नुकसान हुआ इै।

ध्यान देने की बात है कि जो धर्म दूसरों के धर्मों का अपमान करने से भी रोकता है, वह निर्दाेषों की हत्या या दुनिया में फसाद फैलाने की कैसे अनुमति दे सकता है? इस्लाम में युद्ध के समय भी महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को नुकसान पहुंचाने की मनाही है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया कि जिसने प्यासे बिल्ली को पानी पिलाकर उसकी जान बचाई, उसे जन्नत की खुशखबरी दी गई, तो फिर निर्दाेषों की हत्या जन्नत कैसे दिला सकती है? इसलिए बिनाकलतब हत्या एक गुनाह है। इस इस्लाम की अंग नहीं माना जाना चाहिए।

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