लालच या दबाव में इस्लाम कबूलना नापाक, इमान वाले अपनी छवि के प्रति रहें सतर्क

लालच या दबाव में इस्लाम कबूलना नापाक, इमान वाले अपनी छवि के प्रति रहें सतर्क


खुशबू खान

दुनिया का सबसे व्यावहारिक संप्रदाय इस्लाम है। इस्लाम में लालच या दबाव में मतांतरण को घोर अपराध बताया गया है। इस्लाम में इसकी कोई जगह ही नहीं हैै। अमूमन लोग कहते हैं कि सेवा के बदौलत ईसाइयत का विस्तार हुआ है और तलवार के जोर पर इस्लाम फेला है, यह अवधारणा बेबुनियाद है। इसके कई प्रमाण इतिहास में दर्ज हैं।

लोकप्रिय धारणा के विपरीत इस्लामी साहित्य में धर्मांतरण के लिए कोई सुपरिभाषित तर्क नहीं है। संदेशवाहकों को किसी भी तरह से अपनी धार्मिक मान्यताओं को दूसरों पर थोपने से स्पष्ट रूप से मना किया गया है। इसके अतिरिक्त, व्यक्तिगत उद्देश्यों और लाभों के लिए किसी को लुभाने की अनुमति भी नहीं दी गयी है। अभी हाल में धर्म परिवर्तन का मुद्दा सुर्खियों में तब आया जब हाल ही में तमिलनाडु के मदुरै जिले में एक किशोरी की नागूर हनीफा नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति के साथ भाग जाने के बाद मौत हो गयी। इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई है और जांच की जा रही है। हालांकि, कुछ चरमपंथी तत्वों ने इस मुद्दे को धर्म परिवर्तन के मामले से जोड़कर प्रचारित करना प्रारंभ कर दिया हे। यह मामला मौत से जुड़ा है स्थानीय पुलिस को इसकी तसल्ली से जांच करनी चाहिए। दोषियों को न्याय के शिकंजे में लाया जाना चाहिए। दूसरी बात यह है कि उन चरमपंथियों की बात पर भरोसा बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए जो इस मामले को धर्म परिवर्तन के साथ जोड़ रहे हैं। क्योंकि इस्लाम में आस्था के परिवर्तन की पूरी व्यवस्था है लेकिन लालच या दबाव में इसे नापाक घोषित किया गया है।

लालच या दबाव के तहत धर्म परिवर्तन के मामले को इस्लामी धर्मग्रंथों के आधार पर समझने की जरूरत है, न कि सोशल मीडिया के फॉरवर्ड किये हुए मेसेज के आधार पर। इस्लामी कानून के अनुसार, किसी पर किसी भी तरह का धर्मांतरण का दबाव व्यवस्थित आधार पर कुरान द्वारा निषिद्ध है। कुरान के अनुसार, धर्म में कोई जबरदस्ती नहीं है (2ः256)। इस मामले में इस्माइल इब्न कथिर कहते हैं, ‘‘किसी को मुसलमान बनने के लिए मजबूर न करें, संदर्भ स्पष्ट करते हुए कहते हैं, इस्लाम पूरी तरह स्पष्ट है और इसके कारण और सबूत भी स्पष्ट हैं। नतीजतन, किसी को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर करने की आवश्यकता नहीं है।’’ जैसा कि कुरान की एक और आयत में बताया गया है, ‘‘ज्ञान और अच्छी सलाह के साथ, (लोगों को) अपने रब के रास्ते पर बुलाओ। इसके अलावा, उनके साथ यथासंभव विनम्र तरीके से बहस करें।’’ (16ः125)। इसलिए, इस्लाम में बल और प्रलोभन का कोई स्थान नहीं है। इस्लामी संदर्भ में उनका कोई मतलब नहीं है। यह मुसलमानों पर निर्भर है कि वे पैगंबर मुहम्मद के संदेश का प्रसार करें और उनके उदाहरण का अनुसरण करते हुए उनके चरित्र, सामाजिक बातचीत, और जीवन के तरीके को व्यक्त करने के लिए योगदान दें।

भारत में अपने आगमन के बाद से, सूफी संतों ने यह सुनिश्चित किया है कि आसपास के क्षेत्रों के लोग इस्लाम के अनुयायियों के चरित्र, ईमानदारी, करुणा, उच्च नैतिक मानकों के प्रति आकर्षित हों। पश्चिम एशिया के सूफियों ने कभी भी अरब संस्कृति को थोपने का प्रयास नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने अपना और अपने धर्म का भारतीयकरण किया और देश की मिश्रित संस्कृति का हिस्सा बन गए, जिसकी आज भी सराहना की जाती है। सूफीवाद ने भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी यात्रा भक्ति आंदोलन के साथ प्रारंभ की। भारतीय रहस्यवाद के साथ इस्लामिक रहस्यवाद को विकसित किया। ऐसे समन्वित परिदृश्य में, यदि किसी भी रूप में जबरन धर्मांतरण की प्रथा बनी रहती है, तो मुस्लिम समुदाय के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह भविष्य में इसे होने से रोके और इस्लाम की छवि को खराब होने से बचाए।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखिका के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

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