गौतम चौधरी
भारत की अध्यक्षता में संपन्न जी20 शिखर सम्मेलन 2023 की समीक्षा हो रही थी कि दुनिया के दो प्रमुख राष्ट्राध्यक्षों ने अपने बयानों से इस कार्यक्रम को नकारात्मक स्वरूप देने क कोशिश की। इन दो राष्ट्राध्यक्षों में पहले स्थान पर हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और दूसरे, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो। जी20 शिखर सम्मेलन के बाद जस्टिन ने भारत पर आरोप लगाया कि उसके यहां ब्रिटिश कोलंबिया में मारे गए खालिस्तान समर्थक चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों का हाथ है। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जी20 शिखर सम्मेलन के बाद वियतनाम की आधिकारिक यात्रा में एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा, ‘‘उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी मुलाकात के दौरान ‘मानवाधिकारों का सम्मान’ और ‘स्वतंत्र प्रेस’ का मुद्दा उठाया था।’’ भारत ने इन दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बयानों को सिरे से खारिज कर दिया है।
भारत के लिए यह दोनों देश अहम है। इन दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों का बयान भी बेहद महत्वपूर्ण है। हालांकि इन दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बयान को अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता है। भारत की वर्तमान सरकार जिस प्रकार अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर आक्रामक है वैसा अतीत में बहुत कम देखने को मिलता है। कई मामलों में श्रीमती इंदिरा गांधी आक्रामक थी लेकिन पश्चिम दबाव के कारण उसकी आक्रामकता थोड़ी कमजोर पड़ जाती थी लेकिन नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार अपने राष्ट्रीय हितों के प्रति बेहद संवेदनशी है। यह सरकार एसा कोई मौका अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहिती, जिसमें राष्ट्रीय हित सन्नहित है।
अमेरिका और पश्चिमी जमात लंबे समय से कुछ पूर्वाग्रह पाले हुए है। उस पूर्वाग्रह के कारण पश्चिमी ताकत कभी रूस तो कभी चीन के खिलाफ मोर्चा खोलता रहा है। यही नहीं पश्चिम के प्रभावशाली राष्ट्र, जिन्होंने किसी समय दुनिया पर शासन किया वे अब भी यह मानकर चल रहे हैं कि दुनिया को वो जैसे चाहें चला लेंगे लेकिन वर्तमान परिस्थिति बदल चुकी है। वर्तमान दौर में चीन ने अपने तरीके से इनके खिलाफ मोर्चा खोला है। उस मोर्चे में रूस, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका शामिल है। इन देशों के समूह ब्रिक्स ने व्यापार, वित्त, विज्ञान, तकनीक और कूटनीति की दिशा बदल दी है। यही नहीं चीन के द्वारा स्थापित शांधाई सहयोग संगठन, अमेरिकी नेतृत्व में स्थापित नाटो को मात देने लगा है। इसके कारण पूरा पश्चिमी जमात सकते में है। उसे यह लगने लगा है कि जो नई ताकतें खड़ी हो रही है वह विश्व के कूटनीति की दिशा बदल कर रख देगी। और तब पश्चिम की साम्राज्यवादी व जनविरोधी तानाशाही कमजोर पड़ जाएगी।
सच पूछिए तो जो बाइडेन और टूडो के बयान उसी पूर्वाग्रह का नतीजा है जो पश्चिमी जगत विगत कई शताब्दियों से पाले हुए है। अमेरिकी राष्ट्रपति भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और मानवाधिकार हनने की बात कर रहे हैं। यही नहीं बाइडेन के मंत्री और कूटनीतिक, भारत के खिलाफ मीडिया युद्ध में जमकर हिस्सा भी ले रहे हैं। यदि सचमुच अमेरिका मानवाधिकार समर्थक है तो वह अपने देश में हो रहे काले लोगों के खिलाफ अपराध को रोकने में नाकाम क्यों है? सवाल यहां खत्म नहीं होता है। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने दुनिया में जितने अपराध किए हैं, उतना आजतक किसी देश ने नहीं किया। मानवाधिकार की दुहाई देने वाला अमेरिका अपने मित्र देशों के अपराध पर सदा से रहस्यमय चुप्पी साधे रहा है। यही नहीं खुद अमेरिका ने बिना किसी प्रमाण के इराक व लिबिया पर जैविक व राशायनिक हथियार होने का आरोप लगा हमला किया और लाखों निर्दोष नारिकों की हत्या की। जापान के दो बड़े शहरों पर परमाणु बम गिराकर उसे इस तरह तबाह कर दिया कि आज भी वहां शारिरिक व मानसिक रूप से अक्षम बच्चे पैदा हो रहे हैं। जी20 शिखर सम्मेलन के बाद जिस वियतनाम की आधिकारिक यात्रा पर जो बाइडेन गए, वहां के निर्दोष नागरिकों पर अमेरिका ने ऐसा कहर ढ़ाया था, जिससे मानवता शर्मसार हो जाए। वहीं अमेरिका अब भारत को मानवाधिकार और प्रेस की स्वतंत्रता का पाठ पढ़ा रहा है।
दूसरे राष्ट्राध्यक्ष जस्टिन टूडो हैं। उन्होंने अपने देश की सुरक्षा कमजोरी का ठिकड़ा भारत पर फोड़ने की कोशिश की है। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में सिख नेता और खालिस्तान समर्थक 45 वर्षीय हरदीप सिंह निज्जर की इसी वर्ष 18 जून को हत्या कर दी गयी। टूडो की निंद तब खुल रही है जब जी20 का सम्मेलन होता है। इससे पहले न तो उनके पास कोई खुफिया इनपुट था और न ही कोई जानकारी। कनाडा में रह रहे लोगों की सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम रहे टूडो अपनी असफलता को भारत के मात्थे मढ़ना चाहते हैं। दूसरी बात यह है कि विगत कई वर्षों से टूडो और उनके सहयोगी खालिस्तान समर्थक आंदोलन को हवा दे रहे हैं। यदि खालिस्तान से टूडो को इतना ही प्रेस है तो वे अपने देश का एक हिस्सा बांट कर खालिस्तान नामक स्वतंत्र देश बना दें। ऐसा करने पर दुनिया का पहला देश भारत होगा जो उस खालिस्तान को मान्यता प्रदान करेगा। वैसे भारत सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ चाइना और बांग्लादेश जैसे स्वतंत्र राष्ट्र को मान्यता देने वाला दुनिया का पहला देश रहा है। यही नहीं अमेरिका और पश्चिमी जगत भले तिब्बत को भुला दिया हो लेकिन तिब्बत की स्वतंत्र सरकार आज भी भारत में काम कर रही है। उस सरकार को भारत पूर्ण रूप से न केवल समर्थन दे रहा है अपितु दुनिया भर में अपनी बात रखने के लिए उसको अपना मंच भी प्रदान करता है।
टूडो इस बात से अनभिज्ञ हैं। उन्हें न तो अपने देश के नागरिकों की चिंता है और ही दुनिया में शांति की चिंता है। टूडो उस आग से खेल रहे हैं, जो अंततोगत्वा उनके लिए ही परेशानी खड़ा करेगा। भारत अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध व कटिबद्ध है। पहले पश्चिमी देश खासकर अमेरिका और कनाडा पर्दे के पीछे से पाकिस्तान को माध्यम बना खालिस्तानियों का सहयोग करते थे लेकिन अब वे भारत की एकता एवं अखंडता पर आक्रमण कर रहे हैं। यह भारत कैसे बर्दाश्त करेगा? हर राष्ट्र को अपनी सीमा और नागरिकों की रक्षा का अधिकार है। टूडो भारत को उससे रोक नहीं सकते हैं। उनका आरोप यदि सही है तो वे प्रमाण लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाएं। यदि उनके पास प्रमाण नहीं है तो वे भारत से माफी मांगे। हालांकि उनका एजेंडा सिखों की सुरक्षा का कतई नहीं है। वे तो भारत को महज बदनाम करना चाहते हैं। साथ ही सिखों को यह दिखाना चाहते हैं कनाडा का प्रधानमंत्री उनकी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। यदि वे सचमुच में सिखों की सुरक्षा को लेकर संवेदनशील होते तो निज्जर के असल हत्यारे अबतक पकड़े गए होते। अब टूडो यह कह रहे हैं कि उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका की खुफिया एजेंसी ने जो इनपुट दिए हैं उसमें यह बताया गया है कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों का हाथ है। यह बचकानी बातें हैं और इससे यह साबित होता है कि टूडो एक खास प्रकार के पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं।
कुल मिलाकर अमेरिका व कनाडा के राष्ट्राध्यक्षों के बयानों को पूर्वाग्रही सोच का नतीजा ही समझा जाना चाहिए। साथ ही इससे यह भी साबित होता है कि भारत की ताकत बढ़ रही है और रूस, चीन के बाद भारत पश्चिम के लिए चुनौती बन कर खड़ा होने स्थिति में आ गया है। इन बयानों और गतिविधियों से भारतीय कूटनीति को न तो कोई धक्का लगेगा और न ही इसका दूरगामी प्रभाव पड़ने वाला है। भारत में निवास करने वाले सिख अच्छी तरह भारतीय राष्ट्रवाद के साथ जुड़े हुए हैं। मुठी कर चरमपंथी आम सिखों की राय नहीं बन सकते। आतंकवाद ने पंजाब और सिख दोनों को परेशान किया है। टूडो चाहे जितना जोर लगा लें पंजाब में अब आतंकवाद का दौर लौटने वाला नहीं है। क्योंकि पंजाब और सिखों को आतंकवाद की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। दूसरी बात टूडो याद रखें, जिस प्रकार इस्लामिक आतंकवाद का समर्थन करने के कारण पाकिस्तान परेशान हुआ, उसी प्रकार कनाडा को भी इसकी कीमत चुकानी होगी।