अमित शुक्ल
संसदीय आम चुनाव 2024 में लोकसभा के कुल 398 ग्रामीण सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को मात्र 165 सीटें ही मिल पायी, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 236 का था। आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में भाजपा को कुल 71 सीटों का नुकसान हुआ है। इधर शहरी क्षेत्र में भाजपा ने इस बार बढ़िया प्रदर्शन किया है और यहां 8 सीटों का बढ़त दिख रहा है. बावजूद इसके भाजपा 303 से सिमट कर 240 पर आ गयी। 2024 के आम चुनाव को देखें तो ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्र में भाजपा का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा है। उत्तर प्रदेश पर यदि नज़र डालें, तो कांग्रेस ने सहारनपुर और प्रयागराज की सीटें जीत ली और समाजवादी पार्टी ने मुज़फ्फरनगर व मुरादाबाद में बाजी मारी। इसके अलावा भाजपा सभी शहरी सीटों पर मजबूत दिख रही है। इसका सीधा संकेत यह है कि भाजपा जहां शहरी मतदाताओं के बीच लोकप्रिय है, वहीं उसने ग्रामीण मतदाताओं के बीच अपनी लोकप्रियता खो रही है। एक विश्लेषण यह भी है कि इस बार जहां एक ओर शहरी मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी की पार्टी को जमकर वोट दिया, वहीं ग्रामीण मतदाता भाजपा के प्रति उदासीन दिखे।
भारत गांवों का देश है। आज भी भारत की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या गांव में ही निवास करती है। ऐसे में मतदान का यह स्वरूप भाजपा के लिए खतरे का संकेत है। इस पर गंभीरता से मंथन किया जाना चाहिए। आखिर बहुसंख्यक क्षेत्र, जो गांव का है, वह भाजपा के प्रति उदासीन क्यों हो रहा है? ग्रामीण भारत में भाजपा की हार बढ़ते विरोध का परिचायक है, जो रोजगार के अवसर, आधारभूत संरचना. बुनियादी सूचना और आवश्यक आवश्यकताओं का समाधान करने में सरकार की विफलता को परिलक्षित करता है। याद रहे इसी प्रकार की गलती कांग्रेस ने भी की थी, उसे ग्रामीण जनता ने नकार दिया और आज कांग्रेस राजनीति के हाशिए पर है।
सालों से, चुनावों के पहले भारत की विभिन्न राजनीतिक पार्टियां ग्रामीण विकास को लेकर लंबे-चौड़े वादे करती है। उनके घोषणापत्र ऊँचे वादों और नए कल्याणकारी योजनाओं से अटापटा होता है। इन वादों का लक्ष्य ग्रामीण मतदाता को प्रलोभित करना है, न कि उनका सर्वांगिण विकास करना। हमारे संविधान में ग्रामीण विकास और प्रशासनिक प्रबंधन की मुकम्मल जिम्मेबारी ग्राम पंचायतों को सौंपी गयी है लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारें ग्राम पंचयतों को उनके अधिकार मुहैया कराने में लगातार बाधाएं खड़ी करती रही है। उस दिशा में ग्राम प्रचायतों के अधिकार और काम लगातार कटौती जारी है। हालांकि वर्तमान सरकार ने ग्रामीण भारत के विकास को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया है और इस क्षेत्र में बजट का आवंटन भी बढ़ा है लेकिन ग्राम पंचायत आज भी हासिए पर है। संवैधानिक रूप से ग्राम पंचायतों के पास 29 कार्य आवंटित हैं। प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, भूमि विकास, सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाएं, ग्राम पंचायत के पास ही होनी चाहिए लेकिन इसमें से कई कार्य केन्द्र और राज्य की ताकबर सरकारें अपने पास रखे हुई हैं। उदाहरण के लिए किसानों को दिया जाने वाला किसान सम्मान निधि और ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न आय वर्ग के लिए भवन निर्माण का काम संवैधानिक तौर पर ग्राम पंचायत के जिम्मे होना चाहिए था लेकिन यह योजना फिलहाल केन्द्र सरकार के पास है। शिक्षा और स्वास्थ्य राज्य की सरकारें अपने कब्जे में रखे हुई है। केन्द्र सरकार या राज्य की सरकारें एक पूरी चुनी हुई ग्रामीण स्थानीय सरकारों के लिए मंत्रालय कैसे बना सकती है? बिहार या उत्तर प्रदेश के लिए कोई मंत्रालय जब नहीं है तो ग्राम पंचायतों के लिए अलग से मंत्रालय की क्या जरूरत है? दूसरी तरफ पंचायती राज मंत्रालय का बजट देखिए और ग्रामीण विकास मंत्रालय का बजट, दोनों में व्यापक फर्क है। वैधानिक रूप से ग्रामीण विकास का पूरा काम पंचायती राज के पास होना चाहिए था लेकिन उन तमाम कामों को ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्वारा संचालित किया जाता है।
यहां एक बात बताना और जरूरी है। कल्याणकारी योजनाओं में यदि आप पांच किलो मुफ्त अनाज या कुछ पैसे देकर ग्रामीणों को अपनी ओर करते हैं, तो कल दूसरी पार्टियां इसी प्रकार कुछ ज्यादा की घोषणा कर मतदाताओं को प्रभावित कर सकती है। इससे किसी का भला नहीं होगा। दूसरी बात, इस प्रकार की कल्याणकारी योजनाओं की व्यवस्था भी ग्राम पंचायत के जिम्मे ही होना चाहिए था। ऐसे हल्के और लोकलुभावन कल्याणकारी योजनाओं और उसके प्रबंधन से न तो ग्रामीण भारत का कायाकल्प होगा और न ही देश का विकास ही संभव हो पाएगा। उलटे दिन व दिन मुफ्तखोरी बढ़ती जाएगी, जो भारत के भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
इसलिए कुछ ठोस करने की जरूरत है। यदि सत्ता प्रतिष्ठान सचमुच लोककल्याण का काम करना चाहता है और वह चाहता है कि भारत का लोकतंत्र मजबूत हो तो ग्राम पंचायतों को मजबूत बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को ग्राम पंचायतों को संवैधानिक रूप से जो अधिकार और काम प्राप्त हैं, उसे यथाशीघ्र सौंप देनी चाहिए। दूसरी बात, राज्य सरकारों पर दबाव डालकर ग्रामीण विकास के सभी काम पंचायतों के जिम्मे करवाना चाहिए। ग्राम पंचायतें कैसे सशक्त हो उस दिशा में लगातार प्रयास करने के लिए आयोग का गठन किया जाना चाहिए। ग्राम विकास के लगभग सभी काम पंचायतों के जिम्मे होते हैं इसलिए उन्हें यह काम सौंपा जाना चाहिए। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में केन्द्र और राज्य सरकारों के प्रति विश्वास बढ़ेगा और आने वाले समय में एक मजबूत सशक्त भारत का निर्माण होगा। यदि सत्ता और प्रशासनिक प्रबंधन का वर्तमान दौर केन्द्रीकृत होता रहा तो आने वाले समय में ग्रामीण क्षेत्रों में सत्ता के प्रति असंतोष बढ़ेगा। वर्तमान व्यवस्था के आधार पर ग्राम पंचायतें हासिए पर रही तो केन्द्र और राज्य सरकारों को अप्रासांगित होते देर नहीं लगेगी। वह दौर बेहद खतरनाक होता है। इसलिए सत्ता प्रतिष्ठान को सतर्क हो जाना चाहिए।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)