डेटिंग : पश्चिमी शब्द को भारतीय परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत

डेटिंग : पश्चिमी शब्द को भारतीय परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत

पूनम दिनकर

भारत में आजकल पश्चिमी लहर तेजी से चल रही है। इस लहर के झोंकों से भारतीय युवा पीढ़ी के रहन-सहन में क्रांतिकारी परिवर्तन, तौर-तरीकों में एक विशेष बदलाव और सोचने-समझने के दृष्टिकोण में आधुनिकता का एक स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है। हमारे युवा वर्ग का एक बड़ा हिस्सा पश्चिम के अनुकरण को ही जीवन की सफलता समझने लगा है। युवा वर्ग भारतीय रहन-सहन को मानने के लिए तैयार नहीं है जो उसके अनुसार लक्ष्मण-रेखा की परिधि में रहकर जीवन को नीरस व एकाकी बना डालता है।

पश्चिमी अनुकरणों में से ही एक है डेटिंग। डेटिंग शब्द का वास्तविक अर्थ होता है किसी निश्चित स्थान पर व निश्चित तिथि पर मुलाकात करना। यह मुलाकात किसी भी भिन्न-भिन्न उम्र के लोगों के बीच हो सकती है परन्तु आजकल इस शब्द का अभिप्राय दो विपरीत सैक्स वाले व्यक्तियों की मुलाकात से लगाया जाता है। प्रख्यात मनोचिकित्सक डॉ. जयशंकर प्रसाद सिंह के अनुसार युवक-युवतियों में एक-दूसरे से मिलने की इच्छा विपरीत सैक्स का होने के कारण ही होती है और इसी मुलाकात को ‘डेटिंग‘ के नाम से जाना जाता है।

युवक-युवतियां प्रायः अपने मन की बात को उन्हीं को कहा करते हैं जिन पर उनका खास विश्वास होता है, यह बात भले ही पढ़ाई-लिखाई की हो या फिर जिन्दंगी के अन्य पहलुओं की, मुश्किलों की या सुनहरे भविष्य की। ऐसा विश्वास उन्हें अपनी किसी खास सहेली या मित्रा पर ही हुआ करता है। ये मित्रा दो विपरीत लिंगी या समलिंगी भी हो सकते हैं परन्तु ‘डेटिंग‘ का संबंध अधिकांशतः विपरीत लिंगियों के बीच ही हुआ करता है। वे अपनी मुलाकातों के जरिए साथ-साथ किसी एकान्त स्थान पर कुछ पल गुजारते हुए अपने-अपने मन की बातों को स्नेहिल वातावरण में प्रस्तुत कर डालते हैं।

डेटिंग करने वालों में एक-दूसरे पर गहरा विश्वास रहता है, इसीलिए वे अपने मन की बातों को डेटिंग साथी के साथ करते हिचकते नहीं हैं। उन्हें समाज का डर या चिंता नहीं होती। वे अपने इन हसीन पलों को और भी खूबसूरत बनाना चाहते हैं और भविष्य में आने वाली तकलीफों से खुद को बचाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

डेट्स आपस में मिलकर भविष्य के विषयों पर खुलकर चर्चा करते हैं। इन चर्चाओं में पढ़ाई, कैरियर, उज्जवल भविष्य आदि के साथ-साथ परस्पर प्रेम वार्ताएं भी हुआ करती हैं। हालांकि ये मुलाकातें चन्द समय की ही होती हैं, फिर भी इस मुलाकात से उनके अंदर आत्मविश्वास की भावना जागती है और उनमें एक नई उमंग, नई ताजगी और नया जोश भर जाता है।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक (प्रो.) गोपाल कुमार झा का मानना है कि डेटिंग नये पौधों की एक मानसिक खुराक भी है। जिस प्रकार खेत की हरियाली को बनाये रखने तथा उन्हें विकसित करने के लिए समय-समय पर खाद-पानी की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार युवक-युवतियों में आने वाली हताशा व निराशाओं को दूर करने में डेटिंग सहायक होती है। दो युवा दिल जिन बातों को अपने करीबी दोस्तों से भी नहीं कर पाते, उसे अपने साथी से कहने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती। डेटिंग के माध्यम से जीवन की मुश्किलों से लड़ने की ताकत मिलती है। आपसी बातचीत से उन्हें मानसिक रूप से आराम मिलता है।

डेटिंग के माध्यम से एक ऐसे सुख का आभास होता है जिसके लिए युवा भटकते रहते हैं। डेटिंग करने वालों के बीच आज की भागदौड़ और तनाव भरी जिन्दगी का कोई प्रभाव नहीं होता। वे प्रायः किसी पार्क या रेस्तरां में अपनी मुलाकात के लिए समय निकाल ही लेते हैं। दुनिया से बेखबर इन जोड़ों के मन में विश्वास की दृढ़ता होती है, प्रेम की मादकता होती है और तलाश होती है अपने सुंदर और सुहावने भविष्य की।

डेटिंग को हमारे समाज का एक वर्ग अनुचित मानता है तो दूसरा वर्ग इसे उचित ठहराता है। हमारा शिक्षित व उच्च वर्ग डेटिंग को उचित मानता है। इस वर्ग के अनुसार आज का युवा वर्ग अब शिक्षित होकर अपना हित-अनहित स्वयं समझने लायक हो चुका है। युवाओं को भी अधिकार है कि वे अपने ‘समवय‘ के साथ मिल-बैठकर जीवन में आने वाली कठिनाइयों व सुनहरे भविष्य के विषयों पर विचार विमर्श करे। इसलिए डेट्स के बीच बाधा डालकर उन्हें हतोत्साहित करना कतई उचित नहीं।

मध्यम वर्ग के लोगों का मानना है कि हमारे रीति-रिवाजों में भले ही बदलाव आ रहे हैं, मान्यताएं एवं परम्पराओं के प्रति विचार-धारायें बदल रही हैं, आदर्शों एवं सत्यों के प्रति धारणाएं बदल रही हैं, रूढि़यों एवं अंधविश्वासों के परिधि से भले ही हम ऊपर उठ रहे हैं लेकिन एकान्त में दो विपरीतलिंगियों का मिलन किसी भी प्रकार से हितकर नहीं हो सकता।

यह उम्र ऐसी होती है जिसमें भावनाएं अधिक होती हैं। भावनाओं की बाढ़ के कारण मर्यादा रूपी तट का बांध कभी-भी टूट सकता है। जब बांध टूटकर बाढ़ के रूप में प्रवाह को धारण कर लेता है तो विनाश निश्चित होता है। मित्राता तक की बात तो ठीक है परन्तु जब मित्राता से आगे बढ़कर यही संबंध ‘अवैध संबंधों‘ में बदल जाता है तो डेट्स का जीवन तबाह हो जाता है, अतएव डेटिंग भारतीय समाज के लिए हितकर नहीं है।

दो प्यार करने वाले सदियों से आपस में मिला करते हैं। सच्चा-प्यार किसी भी रूकावट से रूक नहीं सकता परन्तु प्यार का महत्त्व तभी तक होता है जब तक उसके मध्य वासना रूपी विकार का प्रवेश नहीं होता। प्यार को मन के बीच रखकर की जाने वाली डेटिंग बुरी नहीं है किन्तु इसे दो शरीरों के बीच रखकर देह की भूख मिटाने के निमित्त करना बुरा है।

(उर्वशी)

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