पुष्पिंदर
पिछले वर्ष अगस्त महीने में कविता, जो हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के अंजी गाँव की वासी और सरपंच है, अपने घर की छत पर खड़ी थी कि अचानक ही उसे कोई आवाज सुनाई दी। उसने पीछे मुड़कर देखा कि उसके घर के साथ बना चार-लेन राजमार्ग भारी बारिश के कारण नीचे की तरफ खिसकने लगा है और अपने साथ कई गाड़ियों को लेकर नीचे की तरफ जा रहा है। पूरी तरह धँस चुकी यह वही सड़क थी जिसे “भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण” ने 2020 में एक हजार करोड़ की लागत से तैयार किया था।
हिमाचल प्रदेश की यह कोई अकेली घटना नहीं है। इस बार बरसात के महीने में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बाढ़ ने जो तबाही मचाई, वह पहाड़ों के निवासी कभी नहीं भूलेंगे। इस तबाही के दौरान 112 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग लापता हुए। हिमाचल सरकार के मुताबिक बाढ़ ने 10,000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान किया है। जोशीमठ की त्रासदी हमारे सामने है कि कैसे इस मुनाफाखोर व्यवस्था ने एक पूरे कस्बे को खत्म करके रख दिया। यही सब कुछ शिमला और मनाली जैसे सैर-सपाटे वाले केंद्रों में दोहराया जा रहा है। कई इलाकों के निवासियों की जिंदगी एक डर से गुजर रही है कि पता नहीं कब पत्थर या पूरा पहाड़ खिसक जाए और जान-माल का नुकसान कर दे। सरकार द्वारा यहाँ विकास के नाम पर बनाए जा रहे हाइडल प्रोजेक्ट और फोरलेन राजमार्ग स्थानीय निवासियों के लिए विकास के चिह्न नहीं बल्कि मौत के रास्ते बन गए हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि बारिश का आना एक प्राकृतिक घटना है, जिसके बढ़ने या घटने को काबू करने में मनुष्य फिलहाल समर्थ नहीं, पर इस बार हुई यह तबाही सीधा-सीधा खराब राजनीतिक प्रबंधन और इस मुनाफाखोर हुकूमत का नतीजा है। साल 2015 की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया था कि सरकार द्वारा बनाई जा रही चार-लेन सड़कें और पुनर्निर्माण के प्रोजेक्ट किसी भी तरह सुरक्षित नहीं। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार द्वारा की जा रही पहाड़ों और जंगलों की कटाई के परिणाम भयानक होंगे, पर जैसे कि इस शोषक व्यवस्था का उद्देश्य लोगों की सेवा नहीं मुनाफा कमाना है, फिर वह भले ही लोगों की जिंदगियों को दाँव पर लगाकर ही क्यों ना हो। इसलिए सैर-सपाटा और इसके साथ जुड़े होटल-कारोबार के फायदे के लिए जंगलों-पहाड़ों की कटाई जारी रखी गई इसका खामियाजा आम लोगों ने पिछले साल और इस साल भयानक तबाही के रूप में चुकाया। इस तबाही के कई कारण है, जिन्हें समझने की जरूरत है।
गैर-वैज्ञानिक ढंग से की जा रही पहाड़ों की कटाई, भूवैज्ञानिकों के मुताबिक अगर पहाड़ों को वैज्ञानिक ढंग से 45 डिग्री तक के कोण तक काटा जाए, तो काफी हद तक पहाड़ों या ढलानों के खिसकने के खतरों को कम किया जा सकता है, पर रिपोर्ट बताती है कि लागत घटाने और तुरंत काम खत्म करने के लिए चार-लेन सड़क बनाते वक्त हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ों की कटाई ज्यादातर 48 से 70 डिग्री के बीच की गई है, अनेकों जगहों पर तो यह 90 डिग्री भी देखने को मिलती है। इसके अलावा वैज्ञानिकों के मुताबिक पहाड़ों को काटने के लिए विस्फोटक सामग्री का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, बल्कि ड्रिलिंग और कटर का प्रयोग होना चाहिए। पर यहाँ विस्फोटक सामग्री के इस्तेमाल के कारण आसपास के पहाड़ों, यहाँ तक की लोगों के घरों में भी दरारें पड़ चुकी हैं। बरसात के दौरान पानी भरने से ये दरारें बड़ी हो जाती हैं और नुकसान करती हैं। स्थानीय लोगों ने कई बार संबंधित अधिकारियों से मिलकर इस बारे में बात की, पर सरकारों द्वारा कोई गौर नहीं किया गया।
इतना कुछ होने के बावजूद भी हिमाचल प्रदेश में चार नए चार-लेन प्रोजेक्ट, पिंजौर-बद्दी-नालागढ़, शिमला-मटोर, पठानकोट-मंडी और स्वारघाट-मंडी-मनाली में बन रहे हैं। 2023 के जुलाई महीने में ही सोलन-शिमला मार्ग भूस्सखलन के कारण 11 बार बंद किया जा चुका है।
चार-लेन सड़क प्रोजेक्ट हो या दूसरे निर्माण, इनके लिए की जा रही अंधाधुंध पेड़ों की कटाई ने पहाड़ी इलाकों में मिट्टी ढीली कर दी है, जिस कारण अक्सर ही पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्सखलन की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। 2019 में जब परवाणु-सोलन सड़क चैड़ी करने का प्रोजेक्ट पास हुआ और उसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई, तो उसमें 2700 पेड़ काटने की बात कही गई। लेकिन जब काम शुरू हुआ तो उस दौरान 10,000 से ज्यादा पेड़ों को काटा गया, जिसके बाद कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सोलन-परवाणु राजमार्ग बनाने के लिए पर्यावरण सुरक्षा प्रबंध की शर्तों को बिल्कुल भी पूरा नहीं किया गया, इसके बिना पहाड़ों पर अमीरों की अय्याशी के लिए बनाए जा रहे आलीशान होटलों, घरों और पर्यटक स्थलों को बनाने के लिए गैर-जरूरी पहाड़ों और पेड़ों की कटाई की जा रही है। मॉर्निंग-व्यू (सवेरे का दृश्य), नाइट-व्यू (रात का दृश्य) और लाइट-व्यू (रोशनी का दृश्य) जैसी अमीरों की शोशेबाजी के लिए पहाड़ों की बेढंगी और बेहिसाब कटाई ने इन खूबसूरत जगहों का बहुत नुकसान किया है।
हिमाचल-उत्तराखंड में सड़क प्रोजेक्ट तभी सफल रह सकते हैं, जब उनके साथ बारिश के पानी की निकासी के विकास की अच्छी व्यवस्था हो, पर खर्च घटाने और ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए सड़क निर्माण कंपनियाँ लापरवाह होकर सरकारी शह पर पानी की निकासी का कोई प्रबंध नहीं करतीं। इसलिए जब बारिश होती है, तो पानी को जहाँ रास्ता मिलता है, वहीं से रास्ता बनाते हुए नीचे की ओर बढ़ता है और बाढ़ जैसी स्थिति पैदा होती है।
आज पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश के कारण जो तबाही हो रही है, उसके लिए राजनीतिक व्यवस्था सीधे तौर पर जिम्मेवार है। सरकारें पूँजीपतियों को ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा कर देने पर उतारू हैं। लोगों के संघर्ष के कारण जंगलों और पहाड़ों को बचाने के लिए जो कानून बनवाए गए थे, उन्हें खत्म करके राज्य सरकारों और यूनियन की भाजपा हुकूमत प्राकृतिक साधनों की बेहिसाब लूट के लिए रास्ते तैयार कर चुकी है। पर इन लुटेरी सरकारों के ये कदम स्थानीय लोगों को मौत के मुँह में धकेल रहे है।
आज ऐसी तबाहियों से बचने के लिए लोगों को इस इंसान और प्रकृति द्रोही पूँजीवादी निजाम को खत्म करके एक ऐसे समाज के निर्माण की तरफ बढ़ना पड़ेगा, जहाँ विकास का मतलब प्रकृति की तबाही करके मुट्ठी-भर पूँजीपतियों को मुनाफा देना ना हो, बल्कि आम लोगों के लिए कुदरत एक वरदान साबित हो।
(लेखक साम्यवादी चिंतक हैं। आलेख में व्यक्त आपके विचार निजी हैं। इसके तथ्य भी आपने ही एकत्र किए हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)