IGNCA के तत्वावधान में गांधी व टैगोर के विचारों में भिन्नता पर चर्चा

IGNCA के तत्वावधान में गांधी व टैगोर के विचारों में भिन्नता पर चर्चा

रांची/ इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र एवं संत जेवियर्स महाविद्यालय, रांची के संयुक्त तत्वाधान में आजादी का अमृत महोत्सव श्रृंखला में शुक्रवार को आजादी के 75वें शाश्वत अवसर पर एक परिचर्चा की गयी। परिचर्चा का शीर्षक] महात्मा एवं गुरुदेव, स्वातंत्र्योत्तर भारत में वृहत्तर भूमिका थी। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि के रूप में झारखण्ड लोक सेवा आयोग के सदस्य डॉ. अजीता भट्टाचार्या, शामिल हुईं।

कार्यक्रम के मौके पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र रांची के निदेशक डॉ. कुमार संजय झा ने कहा कि गाँधी एवं टैगोर के बीच जो सहमति एवं असहमति है उसकी चर्चा होनी चाहिए और इसकी शुरुआत के लिए इस महाविद्यालय से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि महात्मा गाँधी कई बार झारखण्ड आये और हमेशा कुछ सीख के गये। महात्मा गाँधी ने अपने प्रवास के दौरान ताना भगत के आन्दोलन से प्रेरणा ली। 1920 के असहयोग आन्दोलन के दौरान गांधीजी के द्वारा उठाये गये कुछ कदमों के प्रति गुरुदेव टैगोर एवं महात्मा गाँधी के बीच असहमति थी। लगभग 20 वर्षों तक महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ रंगभेद, नस्लभेद के आधार पर गोरी सरकार द्वारा किये जा रहे अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध सत्याग्रह संग्राम चलाकर पुरे विश्व में प्रसिद्ध हो चुके थेद्य 1913 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त टैगोर विश्व कवि के रूप में स्थापित हो चुके थेद्य दक्षिण अफ्रीका से लौट कर के गाँधीजी सबसे पहले टैगोर के सान्निध्य में शांति निकेतन में महीनों तक ठहरे। दोनों ही भारत में पुरातन आश्रम व्यवस्था से प्रभावित होकर जहाँ गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में फीनिक्स, टॉलस्टॉय जैसा आश्रम, उधर भारत में गाँधीजी ने साबरमती, सेवाग्राम आश्रमों की स्थापना कुष्ठ रोगियों को नयी जीवन देने का प्रण लियाद्य वहीं टैगोर ने भारत सहित दुनिया के श्रेष्ठ विद्वानों को शांति निकेतन में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. अजीता भट्टाचार्या ने कहा कि आजादी के जंग में जिनलोगों ने अपना सर्वस्व लुटा दिया, उनमें से अधिकांश लोग आज गुमनामी में खो गये हैं। उन्हें एवं उनके स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को लोगों तक पहुंचाना ही आजादी का अमृत महोत्सव का मुख्य उद्देश्य है। स्वतंत्रता के 75 वर्ष बीतने के बाद भी हम अब तक न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी स्वतंत्र, आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त करना भी सीखा है। एक भयमुक्त, अपराध से विहीन, अहिंसावादी एवं स्वतंत्र आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना गांधी एवं टैगोर जैसे विभुतियों ने की थी। बाबा आंबेडकर के स्वाधीन भारत के प्रति विचारों एवं गांधी व टैगोर के विचारों में भी काफी असहमति और भिन्नताएं थीं।

कार्यक्रम के वक्ता तिलका मांझी विश्वविद्यालय, भागलपुर के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं गांधीवादी चिंतक भगवान सिंह ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने वैश्विक स्तर तक भारतीय चिंतन एवं दर्शन को पहुंचाया। रवींद्र नाथ टैगोर ने ही सर्वप्रथम गांधीजी को महात्मा कह कर संबोधित किया था, जिसके प्रत्युत्तर में गांधीजी टैगोर को गुरुदेव कहकर संबोधित किया था। किंतु इनलोगों के ये नाम भारतीय समाज ने ही दिया था। गुरुदेव को असहयोग आंदोलन के दौरान लोगों द्वारा विदेशी वस्त्र और सामान का बहिष्कार करना खटक रहा था, क्योंकि वे विश्व चिंतन की भावना रखते थे।

कार्यक्रम का समन्वय संत जेवियर्स महाविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. कमल कुमार बोस ने किया। अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन प्रो. फादर फ्लोरेंस ने किया था। कार्यक्रम में इं.गां.रा.क केंद्र के अंजनी कुमार सिन्हा, बोलो कुमारी उरांव सहित महाविद्यालय के शिक्षक, कर्मचारी, शिक्षार्थी एवं एनएसएस के वॉलिंटियर आदि शामिल रहे।

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