चेतन चैहान
विश्व के त्योहारों में अपनी अलग ही अद्भुत छवि लिए दीपोत्सव भारतीय जनजीवन का सांस्कृतिक पर्व है जिसे सभी वर्गो व धर्मो के लोग मानते हैं। हालांकि यह पुनीत पर्व मुख्य रूप से हिन्दुओं का त्योहार माना गया है लेकिन भारतीय संस्कृति में रचे-बसे हमारे देश के मुगल बादशाह भी हिन्दुओं की तरह यह त्योहार न केवल शानो शौकत से मनाते थे अपितु वे धन की देवी लक्ष्मी का भी उस दिन श्रद्धा से पूजन करते थे।
मुगल बादशाह बाबर दीपावली को बड़ी धूमधाम से मनाता था। वह दीपावली से पूर्व अपने महलों की सफाई, रंगाई व पुताई करवाता था व दीपावली के रोज पूरे महल को दुल्हन की तरह सजा कर लाखों दीपक पंक्तिबð रखवाता था। रात्रि में पंडितों से मंत्रोच्चार कर लक्ष्मी पूजन पूरी श्रद्धा से करवाता था। इस अवसर पर बाबर गरीब व अनाथ बच्चों को नए-नए वस्त्रा और मिठाइयां भेंट करता था।
बाबर के उत्तराधिकारी उसके पुत्रा हुमायूं ने भी अपने पिता का पूरी तरह अनुसरण किया। वह दीपावली का त्योहार पूरे जश्न के साथ सभी मनाता था व अपने महल में लक्ष्मी जी के साथ-साथ सभी देवी देवताओं की भी पूजा-अर्चना करता था और गरीबों को सोने के सिक्के उपहार स्वरुप भेंट करता था। हुमायूं के महलों से दीपावली के दिन 101 तोपों की सलामी जनता को बधाई के तौर दी जाती थी। एक विशाल मैदान में भव्य आतिशबाजी भी की जाती थी।
हुमायूं को उसके हिन्दू मनसबदार पर्व की खुशी में स्वादिष्ट मिठाइयां व उपहार देते थे जिसे वह बड़ी आत्मीयता से स्वीकार करता था।
शाहआलम द्वितीय भी दीपावली को बड़ी धूम धाम से मनाता था। वह भी हजारों दीपक अपने महलों पर सजाता था, उसकी तमाम बेगमें व शहजादियां कीमती वस्त्रा पहन सजधज कर महलों की छतांे पर एकत्रा हो कर दीपावली का लुत्फ उठाती थी। महल के लंबे चैड़े आॅगन में शाह आलम मेले का आयोजन करवाता था जहाँ हुनरमंद अपनी कलाओं का प्रदर्शन करते थे। तरह तरह की मिठाइयां व अन्य कई प्रकार की वस्तुएँ मेले में बिकती थी।
बादशाह अकबर भी बड़ी रूचि से उस त्योहार को मनाते थे। दीपावली की रात महलों के मुंडेरों पर वह स्वयं दीये जलाते थे। महल की सबसे लम्बी मीनार पर 60 गज लम्बे रंग-बिरंगे फूलांे से महकते बांस पर कदील लटकाया जाता था। अकबर चंूकि मूर्ति पूजन नहीं करता था, इसलिए वह लक्ष्मी पूजन भी नहीं करता था बल्कि पर्व के अन्य क्रिया कलापों में वह बड़ी दिलचस्पी से भाग लेता था। हाँ, दीपावली के बाद होने वाली ‘गोवर्धन पूजा‘ में वह अवश्य भाग लेता था, उस अवसर पर वह समस्त हाथी। घोड़ों और गायों को जल में इत्रा मिलाकर स्नान करवाता था। फिर उन्हें सोने चांदी के जेवरोें से खूब सजवाता था
बादशाह जहाँगीर भी दीपावली मनाने में पीछे न था। दीपावली पर्व का बेहद शौकीन यह बादशाह दीपावली के दिन जी भरकर जुआ खेलता था। जहांगीर को ज्योतिष और तंत्रा विद्या पर बड़ा भरोसा था। दीपावली के दिन वह दुनिया भर के तांत्रिकों को अपने महल में बुलवाता था व उन्हें उपहार में हीरे-मोनी व माणक पन्ने जैसे बहुमूल्य द्रव्य पदार्थ देता था।
दीपावली जैसे पर्व को न केवल बादशाह ही मनाते थे अपितु नवाबों के दरबार में भी इस त्योहार को पूरी शानो-शौकत से मनाये जाने का उल्लेख मिलता है। नवाबों द्वारा नरक चतुर्दशी तथा दीपावली धूमधाम से मनाई जाती थी। इस पर्व के दिन नवाब सवेरे-सवेरे मंगल स्नान करने के बाद पूजा अर्चना के पश्चात् निर्धनों, वृðों व ब्राह्मणों को उपहार बांटता था व रात्रि में लक्ष्मी जी की मूर्ति के सम्मुख बैठ तीन दीपक जलाकर सुख-समृðि की कामना करता था। पूजन के बाद नवाब अपने राज्य कर्मचारियों को कीमती तोहफे व उपाधियां भेंट करता था। जैसे ही सूर्य ढलता, धूमधड़ाके के साथ आतिशबाजियों के साथ शौर्य प्रदर्शन किये जाते थे और देर रात्रि तक चलने वाले इस कार्यक्रम के अंत में अत्यन्त ही खूबसूरत युवतियों का मनमोहक नृत्य होता था।
कई मुगल सम्राट ऐसे भी थे जो रात्रि के दूसरे प्रहर की समाप्ति के बाद लक्ष्मी पूजन करते थे। वे अपने महल के दरवाजों और दीवारों पर बने कंवलिये में सोने के दीपक शुद्ध घी भरवा कर जलवाते थे। कुछ दीपकों को बादशाह स्वयं पानी में तैरा देते थे। वे उस दिन श्रद्धापूर्वक लक्ष्मी के साथ-साथ गणपति व सरस्वती का भी पूजन करते थे।
(अदिति)