डॉ. श्यामा प्रसाद मुखजी : भारत की एकता व अंखड़ता के लिए पहला शहीद

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखजी : भारत की एकता व अंखड़ता के लिए पहला शहीद

पंकज सिंहा

हमारे राजनीतिक आंदोलन और यात्रा की शुरुआत आधुनिक भारत के सबसे महान राष्ट्रवादी और राजनेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (1901-1953) द्वारा की गई थी। हम सभी ने उनके बारे में सुना है। डॉ. मुखर्जी द्वारा शुरू किए गए राजनीतिक आंदोलन को पं दीनदयाल उपाध्याय ने आगे बढाया और इसकी मजबूत नींव रखी। जैसा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, भारत के लिए नई राजनीतिक दृष्टि का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद में 3 से 300 तक की हमारी यात्रा काफी हद तक इसलिए संभव हो पाई क्योंकि डॉ श्यामा प्रसाद मुखजी ने नई दृष्टि से एक नया राजनीतिक आंदोलन खडा किया और क्योंकि डॉ मुखजी की मृत्यु के बाद अनगिनत कार्यकर्ताओं के सहयोग से पं दीनदयाल उपाध्याय ने अपने अथक परिश्रम से उस आंदोलन और नई पार्टी को मजबूती दी।

अपने छोटे, महत्वपूर्ण और घटनाक्रमों से भरे जीवन में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इतना कुछ हासिल किया जो कई अन्य लोग अपने कई जन्मों में भी हासिल नहीं कर पाये। 23 जून 1953 को कश्मीर के श्रीनगर में हिरासत के दौरान 52 वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु के समय तक डॉ. मुखर्जी भारतीय राष्ट्रवाद और भारत की एकता एवं स्वंतत्रता के सबसे ऊर्जावान प्रतिको में से एक के रूप में उभर चुके थे। शिक्षाविद, राजनेता, प्रशासक, विचारक और राष्ट्र निर्माता के रूप में अपनी विभिन्न उपलब्धियों के साथ-साथ डॉ. मुखजी ने ऐसे तीन ऐतिहासिक योगदान या हस्तक्षेप किए जिनसे स्वंतत्रता के बाद भारत के इतिहास की धारा बदल गई।

उनके पहले ऐतिहासिक हस्तक्षेप से पश्चिम बंगाल राज्य का निर्माण हुआ। उनके प्रयासों ने पूरे बंगाल को जिन्ना के पाकिस्तान का हिस्सा बनने से बचा लिया।डॉ. मुखर्जी ने 1947 में बंगाल विभाजन की मांग की और वे इसके पक्ष में आंदोलन शुरू करने में सफल रहे। उन्होंने राष्ट्रीय और प्रांतिय जनमत जुटाकर बंगाल के राजनीतिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से अग्रणी लोगों का भारी समर्थन प्राप्त किया और वे पश्चिम बंगाल के गठन में सफल रहे। जिससे जिन्ना को कटा-फटा पाकिस्तान ही मिल पाया। इस तरह पश्चिम बंगाल के निर्माण पर जोर देकर और इसे भारतीय संघ का अविभाज्य हिस्सा बनाकर उन्होंने बंगाल के एक हिस्से को बचा लिया। पूर्वी पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण बड़ी संख्या में बंगाली हिंदुओं को भागना पड़ा । उनको पश्चिम बंगाल में शरण और रहने की जगह मिली।

डॉ. मुखर्जी का दूसरा ऐतिहासिक योगदान 21 अक्टूबर 1951 में था, जब तत्कालीन मुख्य पार्टी नेहरूवादी कांग्रेस के मुकाबले वैकल्पिक राजनीतिक आंदोलन के रूप में उन्होंने भारतीय जन संघ (बीजेएस) की स्थापना की। जनसंघ का उद्देश्य था कि एक नई राजनीतिक दृष्टि गढी जाए, भारत के पुनरुद्धार के लिए काम किया जाए और ऐसी नीतियां तैयार की जाएं जो भारत के सांस्कृतिक लोकाचार, इसकी परिस्थितियों,आकांक्षाओं और जरूरत के अनुरूप हों। भारतीय जन संघ के उदघाटन भाषण का मसौदा डॉ मुखजी ने तैयार किया था। उन्होंने कहा भारतीय जनसंघ का उद्देश्य है कि भारतीय संस्कृति और मर्यादा के आधार पर भारत का पुनर्निर्माण किया जाए और राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के रूप में अवसर की समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रदान की जाए ताकि भारत को ऐसा समृद्ध, शक्तिशाली और संगठित, प्रगतिशील,आधुनिक और प्रबुद्ध राष्ट्र बनाया जा सके,जो दूसरों के आक्रमणकारी इरादों का सामना करने में और विश्व शांति की स्थापना के लिए अपनी भूमिका निभाने में सक्षम हो।

डॉ. मुखर्जी की हालांकि 1953 में ही देहावसान हो गया था परंतु उनके द्वारा प्रशिक्षित और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भेजे गए कार्यकर्ताओं के कुशल नेतृत्व में जनसंघ भारतीय राजनीति का मुख्यस्तंभ बन गया। राष्ट्रवादी और भारत की मिट्टी में मजबूत जडें रखने वाली नई राजनीतिक दृष्टि के उनके सपने को साकार करते हुए भारतीय जनसंघ की राजनीतिक उतराधिकारी के रूप में भाजपा ने डॉ मुखर्जी की राजनीतिक विरासत को आगे बढाया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ष्एक राष्ट्र, एक संविधानष् के डॉ मुखजी के सपने को साकार किया है और अब वह एक भारत, श्रेष्ठ भारत की दृष्टि को साकार करने के लिए प्रयासरत है।

डॉ मुखर्जी जी का तीसरा हस्तक्षेप भारत की एकता के ध्येय के लिए था। जिसके लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी। यदि वह नहीं होते, यदि वह संसद के भीतर और संसद के बाहर प्रयास नहीं करते, यदि कश्मीर में धारा 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर के भारत से पूर्ण एकीकरण के समर्थन में जनमत जुटाने के लिए वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास नहीं करते, यदि उन्होंने ष्एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान, नहीं चलेंगे , नहीं चलेंगेष् की दहाड नहीं लगाई होती, कश्मीर भारत से अलग नहीं हो यह सुनिश्चित करने के लिए यदि वह राज्य के दौरे पर नहीं जाते तो भारत जम्मू और कश्मीर को हमेशा के लिए गंवा चुकी होती। यह क्षेत्र पाकिस्तान का शिकार बन गया होता, अलगाववाद और आतंकवाद की ताकते जीत गईं होती। जिससे भारत छोटे छोटे टुकड़ों में बंटने की राह पर आगे बढ जाता। डॉ. मुखजी ने धारा 370 निरस्त करने का आह्वान किया क्योंकि इसके कारण जम्मू और कश्मीर के लोगों को भारतीय संविधान द्वारा दिए गए लाभ और अधिकार नहीं मिल पा रहे थे। उन्होंने तर्क दिया और प्रश्न पूछा ष्एक लोकतांत्रिक संघीय राज्य में,एक इकाई के नागरिकों के मौलिक अधिकार दूसरे इकाई के नागरिकों की तुलना में अलग नहीं हो सकते। क्या जम्मू-कश्मीर के लोग उन मौलिक अधिकार के हकदार नहीं हैं जो हमने जम्मूऔर कश्मीर को छोडकर शेष भारत के लोगों को दिए हैं”? उन्होंने नेहरू को चेतावनी दी कि श्आप जो करने जा रहे हैं उससे भारत छोटे छोटे हिस्सों में बंट सकता है , इससे उन लोगों के हाथ मजबूत हो सकते हैं जो मजबूत संगठित भारत नहीं देखना चाहते है।श् जब उनके सारे अनुरोध और प्रयास विफल रहे तो डॉ. मुखजी ने जम्मू और कश्मीर के पूर्ण एकीकरण संबंधी आंदोलन का समर्थन करने का निर्णय किया और उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान देकर राज्य को भारत के हाथ से निकलने से बचाया और परिणामस्वरूप स्वंतत्र भारत को छोटे छोटे हिस्सों में बंटने और विघटित होने से बचाया । उनके सबसे करीबी राजनीतिक शिष्यों में से एक और जम्मू की सीमा तक उनके साथ जाने वाले श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें भारत की एकता और अंखड़ता के लिए पहला शहीदश् बताया।

इसलिए डॉ. मुखर्जी के इन ऐतिहासिक हस्तक्षेप भारत के इतिहास की दशा और दिशा बदल दीय उन्होंने भारत का भूभाग बचाया, भारत की एकता मजबूत की देश को टूटने से बचाया और भारत की राजनीतिक धरती में गहरी जडें जमाने के लिए नवीन राजनीतिक दृष्टि का मार्ग प्रशस्त किया।

(लेखक झारखंड भारतीय जनता पार्टी के सह प्रशिक्षण प्रमुख हैं। आलेख के व्यक्त विचार आपके निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

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