प्रेम रावत जी
कई बार इस संसार में रहते हुए एक हालत बन जाती है मनुष्य की और हालत कुछ ऐसी है कि अंधेरे में रहते-रहते कुछ ऐसा हो जाता है इतनी आदत पड़ जाती है अंधेरे की कि जब रोशनी आती है तो मनुष्य उस रोशनी की तरफ देख नहीं पाता है। अभी लोग इतने डरे हुए हैं कि कुछ भी कह दो लोगों को, यहां तक कि यह कह दो कि आप एक पत्ते पर किसी का नाम लिख दो तो आप ठीक हो जाओगे और ऐसा करने के लिए लोग तैयार हैं।
यह सोचने के लिए तैयार नहीं हैं कि इससे मेरा क्या होगा और जरूरत है यही सोचने के लिए कि यह जो मुझे जीवन मिला है, अभी भी मेरे अंदर यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है यही उस बनानेवाले की कृपा है। दौलत बनाने वाले की कृपा नहीं है। यह स्वांस जो आपके अंदर आ रहा है, जा रहा है यह उस बनानेवाले की कृपा है। जो असत्य है, सत्य है इसमें वह अंतर देख नहीं पाता है, क्योंकि एक तरफ देखा जाये तो बहुत सारे कानून हैं। देश के, शहर के, पुलिस के, मिलिट्री के कानून हैं और इन कानूनों में रहते-रहते हमें लगता है कि यही कानून है। परंतु एक और कानून है और वह है प्रकृति का कानून है। जो कुछ भी मनुष्य कानून बनाता है इसको वह बदल सकता है और बदलने की सभी कोशिश करते ही हैं। जो प्रकृति का कानून है उसके साथ ये सब नहीं चलता है। उस प्रकृति के कानून में सबको बंधे रहना है, चाहे वह कोई भी हो।
सबको डर लगता है अब क्या होगा। यह जो महामारी है इससे बचने के लिए, थोड़ी-सी चीज करनी है। मास्क पहनिये, आइसोलेशन – लोगों के बीच में मत जाइये। मास्क भी ऐसा पहनना चाहिए जो उस वायरस को आप तक न आने दे। इसके लिए कपड़े के मास्क के साथ ही एन-95 मास्क भी काफी सहायक साबित हो रहा है। और हाथ धोइये। पर सबसे बड़ी बात डरिये मत। आनंद में रहें और धीरज रखें। यह समय भी एक दिन जायेगा।एक ही है जो था, जो है, जो रहेगा। अगर उसको पहचानने की कोशिश नहीं की तो फिर फायदा क्या हुआ यहां आने का। व्यस्त रहना तो चींटी भी जानती है। फिर मनुष्य का शरीर क्यों मिला ?
कई लोग हैं जो कहते हैं “बहुत बोर्डम हो गयी है, अब हम इस तरीके से नहीं रह सकते।” इसका कारण है कि अपने साथ रहने की जो विधि है वह मनुष्य भूल गया है। वह यह भूल गया है कि वह उन चीजों का अनुभव कर सकता है। एक समय था कि लोगों के पास फोन नहीं थे। प्रकृति को देखते थे और उसका आनंद लेते थे। लोग अपनी जिंदगी के बारे में सोचते थे, विचारते थे कि मैं कौन हूं, कहां से आया, कहां जाऊंगा! वो भी मनुष्य थे, वो भी जीते थे। और हम भी मनुष्य हैं। प्रकृति वही है। बस बात इतनी है कि एक दिन हम सभी को जाना है। कोई चीज यहां स्थायी नहीं है। न पहाड़, न बड़ी-बड़ी इमारतें जो मनुष्य बनाता है। ये भी हमेशा नहीं रहेंगी।
सूरज, पृथ्वी हो या चन्द्रमा कोई भी चीज स्थायी नहीं है। वो सभी चीजें जो बनी हैं एक दिन उनका अंत होना अनिवार्य है। परंतु जबतक हम जीवित हैं, जबतक यह स्वांस हमारे अंदर आ रहा है, जा रहा है, डर से नहीं, हिम्मत से इस समय को गुजारें। इस समय हिम्मत की जरूरत है। बात यह पुलिस की, मिलिट्री की या फिर इन कानूनों की नहीं है। वह कानून, जो प्रकृति का कानून है, बात सिर्फ उसकी है।
सबसे बड़ी बात यह है कि आपके जीवन के अंदर जो असली आनंद है उसका आनंद लीजिये और किसी न किसी तरीके से हर दिन को सफल बनाइये।