आर्थिक चर्चा/ सात्विक समृद्धि सहकारिता के सिंद्धांत पर ही संभव

आर्थिक चर्चा/ सात्विक समृद्धि सहकारिता के सिंद्धांत पर ही संभव

पंकज गांधी

सरकार के स्तर पर कुछ राज्यों में सहकारिता के सफल प्रयोगों से उत्साहित हो केंद्र सरकार भी इसे पूरे देश में विस्तारित करने के लिए गंभीर दिख रही है। हाल ही में केंद्र सरकार ने सहकारिता के क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अन्न भंडारण योजना के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति के गठन को मंजूरी दिया है। नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति का मसौदा तैयार करने के लिए गठित राष्ट्रीय स्तर की समिति के अध्यक्ष सुरेश प्रभु ने हाल ही में केंद्र सरकार को एक मसौदा दिया है। प्रस्तुति के दौरान, समिति के सदस्यों ने मसौदा नीति के उद्देश्यों, विजन और मिशन के साथ-साथ संरचनात्मक सुधारों और शासन, वायब्रेंट आर्थिक संस्थाओं के रूप में सहकारी समितियों, सहकारी समितियों के लिए समान अवसर, पूंजी के स्रोतों, प्राथमिकता वर्गों को शामिल करना, प्रौद्योगिकी का उपयोग, अपस्किलिंग और प्रशिक्षण, स्थिरता और कार्यान्वयन योजना सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रमुख सिफारिशों के बारे में जानकारी दी। अब राज्य सरकारों, केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों, राष्ट्रीय सहकारी समितियों आदि सभी हितधारकों से विचार-विमर्श के बाद जुलाई, 2023 में नई सहकारिता नीति की घोषणा होने की संभावना है. उसके लिए दिल्ली में बैठक भी इस हफ्ते शुरू हो गया है। ज्ञातव्य हो नई राष्ट्रीय सहकार नीति का मसौदा तैयार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की समिति का गठन 02 सितंबर, 2022 को सहकार से समृद्धि के विजन को साकार करने के लिए एक नई राष्ट्रीय नीति तैयार करने के लिए किया गया था।

भारत में दक्षिण या पश्चिम के राज्य अगर पूरब के राज्य से समृद्ध हैं तो सप्लाई चेन की प्रचुरता के अलावा एक और चीज है जिसने इन्हे अग्रणी बनाया है वह है सहकारिता। महाराष्ट्र, गुजरात या तमिलनाडु में जो समृद्धि आई है उसमें सहकारिता का बड़ा योगदान है। हमारे यहां वैसे तो त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था है, केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं स्थानीय निकाय लेकिन अगर आप पश्चिम के राज्य गुजरात, महाराष्ट्र एवं दक्षिण के राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं केरल का अध्ययन करेंगे तो आप पाएंगे की वहां चार स्तर की शासन व्यवस्था है केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय एवं सहकारी समितियां. इस चार स्तरीय व्यवस्था के कारण ही यहां का विकास, जीवन स्तर, रहन सहन और नागरिक सुरक्षा का स्तर ऊँचा है। इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण पहलू है और अंतर का बिंदु है वह यह है की पश्चिम एवं दक्षिण के राज्यों में सहकारिता का वहां के जनजीवन में समावेश होना। यहाँ हर चीज आपको व्यवस्थित और सुसज्जित मिलेगी, सामान्यतया लोग सहकारी व्यवस्था के नियमों को स्वीकारते और पालन करते हुए मिलेंगे और यदि कभी नियम भंग हो जाता है तो कानून भी सहकारी व्यवस्था के साथ मजबूती से लागू होता है। यहाँ चाहे घरों या कारखानों की बसावट हो, कृषि हो या फ्लैट की बिल्डिंग हो सबने अपनी अपनी एक सहकारी समिति बना ली है, प्रत्येक वर्ष इसके कमिटी का चुनाव होता है, देश और राज्य के संगत कानूनों से मेल खाता इनका कानून होता है और यह प्रति वर्ष चुनी गई कमिटी ही उस घर, कारखाने, खेत या फ्लैट की बसावट का पूरा रखरखाव एवं ख्याल रखती है जिससे बाकी सदस्य आराम से अपना कार्य एवं जीवन यापन कर सकें और चूँकि प्रतिवर्ष चुनाव होते हैं तो जिम्मेदारी भी एक एक कर बंटती जाती है।

सहकारिता इन राज्यों के जनमानस के रग रग में बसी है। एक उदाहरण देता हूँ, एक बार मैं एक बस स्टॉप से गुजर रहा था देखा बस तो नहीं आई है लेकिन स्वतः ही लोग पंक्ति में खड़े हो गए हैं, जब बस आई जितने चढ़ सकते थे उतने चढ़े और बाकी पंक्ति में ही खड़े रहे अगले बस के इंतजार में और यह माहौल आपको दक्षिण एवं पश्चिम के राज्यों में प्रायः ही मिल जायेगा। पुलिस भी यहाँ लगभग सभ्य तरीके से ही व्यवहार करती है और मुंबई में तो पुलिस स्टेशन में शिकायत करने के लिए जाते वक्त डर भी नहीं लगता है।

इसी दृश्य की कल्पना यदि आप पूरब के राज्यों के परिप्रेक्ष्य में करें तो तीनो परिस्थितियों में आप उलट परिणाम पाएंगे। पहली स्थिति में तो लाठी डंडे तक खिंच आयेंगे, दूसरी स्थिति में हर आदमी बस में पहले चढ़ना चाहेगा और अफरातफरी मच जायेगा। तीसरी स्थिति में पुलिस के कठोर रवैये के कारण लोग पुलिस स्टेशन में जाने से डरते हुए पाए जायेंगे। दिल्ली में भी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन बनाये गए हैं लेकिन वो भी सहकारिता के कसौटी पे फेल हैं और आपको दिल्ली की कॉलोनियों में बेतरतीब तरीके से पार्क किए गए कार मिल जायेंगे. दिल्ली में तो अब बहुमंजिला इमारतें मिल जाएँगी और लखनऊ में भी इसकी शुरुवात हो गई है लेकिन अभी भी यूपी बिहार दिल्ली जैसे राज्यों में आपको स्वतंत्र मकान बहुतायत में मिल जायेंगे. स्वतंत्र मकानों का आलम यह होता है कि उस घर की हर एक व्यवस्था उस घर के मालिक को करनी पड़ती है। यहाँ तक की उस घर की सुरक्षा, काम पर जाते वक्त उसके परिवार की सुरक्षा भी उसे भगवान भरोसे छोड़नी पड़ती है. स्वतंत्र मकानों की कोई सोसाइटी नहीं होती है अतः कूड़ा निस्तारण की कोई एकीकृत व्यवस्था नहीं है, आपको कूड़ा घरों के बाहर मिल जायेंगे, पंचायत एवं निगम उतने पेशेवर नहीं है जो की हर घर से इस कूड़े का निस्तारण कर पायें. नालियों में आपको पोलीथिन से लेकर हर कचरा फिंका हुआ मिल जायेगा। इसका नतीजा यह होता है की आदमी अव्यस्वथित माहौल में रहने लगता है और खुद को व्यवस्थित नहीं कर पाता है और समझ भी नहीं पाता है कि वह वहां अव्यवस्थित क्यूँ है। जबकि इसका कारण है कि सहकारिता का सफल मॉडल नहीं होना और उसकी अनुपस्थिति से हो रहे नुकसान का आंकलन नहीं कर पाना।

अगर अन्य राज्यों को विकसित होना है तो वहां के लोगों को सहकारिता के मॉडल को अपने जीवन चर्या में अपने मानसिकता में और अपने कार्यक्षेत्र में उतारना पड़ेगा और स्वीकार करना पड़ेगा। तभी जाकर वह निश्चिंत हो पाएंगे, उनका परिवार सुरक्षित हो पायेगा और उनकी संताने सुव्यवस्था के प्रति आज्ञाकारी बन पाएंगी। कुछ साल पहले एक बार मैं एक राज्य के औद्योगिक क्षेत्र में गया, वहां की सड़कों, बिजली, नाली की हालत बहुत खराब थी, सड़क किनारे बड़े बड़े झाड़ दिख रहे थे, मैंने एक बड़े अधिकारी से इस बावत जिज्ञासा हेतु पूछा तो उनका जबाब था कि यहाँ कोई भी मेंटेनेंस भरना ही नहीं चाहता है और लोगों के मेंटेनेंस शुल्क कई सालों से बकाये हैं तो मेंटेनेंस कैसे हो पायेगा. बात भी सही है यदि समूह में रहने के लिए कोई व्यवस्थागत कानून बना है तो उसे सभी को पालन करना पड़ेगा, चुनिन्दा लोगों के पालन करने से तो यह व्यवस्था खत्म हो जाएगी। आवास और व्यवसाय के अलावा पूरब के राज्यों में कृषि में भी स्वतंत्र खेतियाँ ही हैं, लोग छोटे छोटे जोत और बिखरे हुए अलग अलग जोत पर कार्य करते हैं जिससे लागत भी अधिक आती है और परिवहन से लगायत बाजार पे नियंत्रण भी नहीं रह पाता है और यदि इसकी जगह वह महाराष्ट्र की कृषि सहकारिता को अपना लें तो सहकारिता खेती के माध्यम से ना केवल उनकी कृषि लागत कम हो जाएगी वरन बाजार में एक बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में होने पर बाजार और मूल्य पर नियंत्रण रख पाने में सक्षम हो पाएंगे।

(युवराज)

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »