आर्थिक चर्चा/ आज मेटा-इकोनामिक्स का अध्ययन जरुरी

आर्थिक चर्चा/ आज मेटा-इकोनामिक्स का अध्ययन जरुरी

पंकज गांधी

दुनिया में अर्थशास्त्रा से प्रतिदिन हमें दो चार होना पड़ता है। पूरी दुनिया ने इसे समझने और परिभाषित करने का प्रयास किया। इसका अपना एक दर्शन है और हर समय के पड़ाव पर हर किसी ने इसे अपने तरीके से परिभाषित करने का प्रयास किया है। अगर शब्द पर जायें तो इस का मतलब है कि अर्थ का शास्त्रा, इसे कह सकते हैं जो भी अर्थवान है उसका शास्त्रा। थोड़ा और सरल बनायें तो जो भी मूल्यवान है उसका शास्त्रा या वह शास्त्रा जो मूल्य (वैल्यू) वृद्धि का अध्ययन करता है।

इतने सरल शास्त्रा को कई वैज्ञानिक और विशेषज्ञों ने अपने अपने तरीके से समझाया है। मोटा मोटी इसे मैक्रो और माइक्रो अर्थशास्त्रा में बांटा गया है। माइक्रो यानी कि सूक्ष्म, व्यक्तिगत जो सूक्ष्म स्तर पर अर्थशास्त्रा का अध्ययन करता है जबकि मैक्रो वृहद और समूह स्तर पर करता है। जब आर्थिक वातावरण और काम्प्लेक्स होने लगा, नये नये टर्म व्यवस्थायें और अध्ययन आने लगे तो अर्थशास्त्रा का अध्ययन माइक्रो एवं मैक्रो से आगे बढ़कर मेसो इकोनामिक्स और फिर पश्चिम की परिभाषा के तहत आने वाले मेटा इकोनामिक्स के विस्तार तक पहुंचा।

वैसे भी आजकल सब तरफ मेटा मेटा शब्द ही सुनाई दे रहा है। शुरू में हमने मेटा फिजिक्स सुना, बाद में मेटा डाटा फिर मेटावर्स फेसबुक कंपनी ने तो नाम ही बदलकर अपनी कम्पनी का नाम मेटा रख लिया। अब चूंकि चारों ओर मेटा की चर्चा है तो हमने सोचा क्यों न इकोनामिक्स में भी मेटा की खोज की जाय हालांकि मेटाइकोनामिक्स शब्द का प्रयोग और इसे परिभाषित पश्चिम के कुछ विद्वानों ने किया है। उनके इन मेटा की परिभाषाओं में नैतिकता को शामिल करते हुए माना गया है कि व्यक्ति अपने हित के साथ साथ साझा हित या अन्य के हित का भी ख्याल रख संतुलन साधता है। इसीलिए इसे ड्यूल इंटरेस्ट थ्योरी का सिद्धांत भी कहा जाता है लेकिन उनके इस परिभाषा के बाद भी उनका मेटाइकानामिक्स मेटा की जगह एक लिमिटेड इकोनामिक्स ही रहा है।

पश्चिम चाहे जो कहे, मेरे हिसाब से तो सनातन अर्थशास्त्रा ही मेटा इकोनामिक्स है। वैसे भी मेटा का अर्थ होता है परे, चिंतन से परे, इसलिए इसे पराविज्ञान भी कहते हैं और सनातन अर्थशास्त्रा भी यही कहता है। यह सृष्टि, ज्ञात अज्ञात अंतरिक्ष की उन सब चीजों को शामिल करता है जिसकी आज हम कल्पना नहीं कर सकते। यह कहता है कि किसी भी चीज का वर्तमान मूल्य,उसका बढ़ना, घटना या भविष्य में उसका मूल्य केवल उस चीज या उसके मांग या आपूर्ति से नहीं प्रभावित होता है। नियंत्राण से परे इकोसिस्टम भी चीजों के वर्तमान और भविष्य के मूल्य को प्रभावित कर सकते हैं जो प्रायः सौदा कर रहे दो व्यक्तियों या दो देशों के वश में नहीं है। हम, हमारा सिस्टम या पृथ्वी कई ज्ञात और अज्ञात चीजों से इस तरह बंधी और अंतर्निर्भर है कि कहीं कोने में घटी कोई अनजान घटना भी प्रभावित कर सकती है।

जैसे रूस और यूक्रेन के झगड़े में कई देश ऐसे हैं जो जुड़े नहीं हैं लेकिन अचानक से घटी घटना उनके इकानमी को प्रभावित कर रही है। जैसे कहा जा रहा है कि कोरोना लैब से निकला है तो ऐसे में कई देश जो अपने धुन में मस्त अपनी स्पीड से विकास कर रहे थे वे दूर देश में घट रही किसी घटना से प्रभावित हो गये। आज भी कोरोना से प्रभावित उनकी इकानमी खड़ी नहीं हो पा रही है जिसका होना उनके वश में नहीं था। जब नियंत्राण से परे दूर किसी घटना के कारण आर्थिक इकोसिस्टम प्रभावित होता है और उसका वृहद प्रभाव किसी दूर के आर्थिक सिस्टम पर होता है।

मेरा मानना है कि यह इकानामी का मेटा-इको इफेक्ट होता है और कमोबेश यही हुआ सिलिकान वैली बैंक के साथ। यह मेटा इसलिए कि जो हुआ, उस पर इस बैंक का कोई वश नहीं था। पूर्व में इसके द्वारा लिए गए वित्तीय निर्णय वर्तमान में बदल रहे आर्थिक इकोसिस्टम से मेल नहीं खा पाये और आज यह धराशायी हो गया। जैसे कइयों के आकलन और नियंत्राण से परे कोरोना का अटैक, फिर रूस यूक्रेन का युद्ध, दोनों से जनित मंदी, मंदी से जनित महंगाई, महंगाई से जनित फेडरल बैंक समेत दुनिया के कई देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज के बढ़ने ने ऐसा प्रभाव डाला है जिसका आज आकलन करना जल्दबाजी होगा। दुनिया आज एक जाल में बंधी है और किसी भी आर्थिक घटना का खासकर अमेरिका के किसी वित्तीय प्रतिष्ठान का, ठहरे हुए पानी में कंकड़ मारने जैसा है जिसकी लहर किनारे तक आयेगी।

आज हमारी पृथ्वी अपनी धुन में सूर्य के चक्कर काट रही है और सब कुछ खगोलीय संतुलन पर टिका हुआ है, यह टिका होना भी हमारे वश में नहीं है। सूर्य हमारे अस्तित्व की सबसे मूल शर्त है। सनातन अर्थशास्त्रा जिसे मैं मेटा इकोनामिक्स ही कहता हूं। यह बताता है कि किसी कारक का मूल्य केवल मांग पूर्ति ही नहीं, मेटा इकोनामिक्स भी निर्धारित करता है जो परे की चीज है।

मेरा मानना है कि अर्थशास्त्रा स्वमेव उपस्थित स्वयं विद्यमान है। ज्ञात और अज्ञात ब्रह्मांडों की उत्पत्ति से ही कारक फैले हुए हैं परन्तु किसी कारक को उपयोगी बनाने के लिए उनकी उपयोगिता या ज्ञान के बारे में, ज्ञान की सीमा के कारण, अर्थशास्त्रा का दायरा लंबे समय तक सीमित रहा है। अर्थशास्त्रा इतना विशाल है कि यह संपूर्ण ज्ञात और अज्ञात ब्रह्मांड और इन ब्रह्मांडों के सभी तत्वों को भी कवर करता है। वर्तमान में भी अर्थशास्त्रा का अध्ययन प्रतिबंधित है और यह केवल मनुष्यों, उनकी जरूरतों और उन कारकों के इर्द-गिर्द घूमता है जो सिर्फ इतना जानते हैं कि कारकों को उनके उपयोग में कैसे लाया जाए या कैसे वह उसके लिए मूल्यवान हैं।

उदाहरण के लिए सूर्य। सूर्य की उपयोगिता का अध्ययन जो आज हमें इतना मूल्य प्रदान कर रहा है, उसे न तो हम माइक्रो, मैक्रो या मेसो में कवर कर सकते हैं ना पश्चिम के मेटा वाले परिभाषा में । इस मूल्यवान सूर्य का अध्ययन मेटाइकोनामिक्स या जिसे मैं सनातन अर्थशास्त्रा ही कहता हूं, का विषयवस्तु हो सकता है। सूर्य का अस्तित्व सृष्टि, ज्ञात एवं अज्ञात ब्रह्मांड के करोड़ों साल से हैं और सिर्फ ऐसे एक ही सूर्य नहीं, ज्ञात अज्ञात ब्रह्मांड मंे कई ऐसे सूर्य हैं। आज जो हम सौर ऊर्जा एवं अन्य अक्षय ऊर्जा की चर्चा कर रहे हैं , उस पर शोध कर रहे हैं या उसके हम उपयोग कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इस ऊर्जा का हमने अविष्कार किया है। उसके अस्तित्व का हमने सृजन किया है। हमने अब उसे धीरे धीरे पहचानना शुरू किया है, धीरे धीरे उसकी बारे में जानना शुरू किया है और जैसे जैसे जानते गये हैं, उसके उपयोगिता का भी ज्ञान हुआ और अब जा कर हमारी दृृष्टि उस तरफ गयी है और हमें ऊर्जा के असीमित भंडारण के बारे में पता चला। इसी तरह हमारे वश से परे स्वमेव विद्यमान सोलर, विंड एवं अन्य अक्षय ऊर्जा के नये स्रोतों ने समाज और राज्यों के लिए ऊर्जा की उपलब्धता के लिए एक सुगमता भी खोज दी है जो सहज सरल और सुलभ है। इसके वितरण में भी कोई भेदभाव नहीं है। पृथ्वी पर जीवन और मूल्य के इस उत्पादन साधन का अध्ययन मेटा इकोनामिक्स के अलावा किसी और माइक्रो, मैक्रो या मेसो इकोनामिक्स में हो ही नहीं सकता।

सूर्य तो एक उदाहरण है। ऐसी कई उत्पादन के साधन हैं जिस पर हमारा वश नहीं है लेकिन आज की इकानमी वही चला रहे हैं, जैसे तरंगें रेडियो, टीवी या इंटरनेट की, इसे आप ब्रह्म ऊर्जा भी कह सकते हैं। अंतरिक्ष के सूत्रों एवं संपत्तियों एवं संभावनाओं को सम्पूर्ण रूप में कोई नहीं जानता सिवाय अपने सौर मंडल और कुछ उसके आसपास के। आज अन्तरिक्ष में विद्यमान कई ऐसी चीजें जो आज की सापेक्षता में हमारे लिए मूल्यवान नहीं है। हो सकता है कल में हमारे लिए मूल्यवान हो जाए। ऐसा नहीं है कि इसे हम पैदा करेंगे। ये इस ज्ञात और अज्ञात अन्तरिक्ष में सर्व संभावनायें लिए मौजूद हैं। हो सकता है पृथ्वी की जगह हम अन्तरिक्ष के ग्रहों और तैरते एस्टेरोइड से ही खनन का कार्य करें और पृथ्वी से इसका दोहन करने की बजाय अन्तरिक्ष से करें। हो सकता है इस पर इतना अनंत भंडार हो कि इसका पृथ्वी पर परिवहन लागत के बाद भी यह पृथ्वी पर आपूर्ति की अधिकता के कारण सस्ते लागत में पड़े।

हो सकता है ज्ञात धातुओं के अलावा भी ऐसी अन्य धातुयें इस अन्तरिक्ष, उसके ग्रह और एस्टेरोइड में पड़े और बिखरे हों जो कल हमारे लिए मूल्यवान हों। हो सकता है कि पृथ्वी या अन्य ग्रह के उपर तैरते एस्टेरोइड कल को हमारे लिए एक उत्पादन के केंद्र हों। उपर वर्णित रेडियो, टीवी एवं इन्टरनेट की तरंगें भी मेटा अर्थशास्त्रा के सबसे शाश्वत उदाहरण हैं। इन्हंे हमने पैदा नहीं किया है। ये तो अंतरिक्ष की अनंत उपस्थिति से ही पड़े हुये हैं। हम उसकी पुनर्खोज कर उसे बस क्रियाशील कर रहें हैं।

इसलिए पश्चिम का अर्थशास्त्रा का अध्ययन अनुप्रयोग का अध्ययन है उनका मेटा इकोनॉमिक्स भी सीमित परिभाषित है जबकि सनातन दर्शन में सनातन अर्थशास्त्रा ही मेटा इकोनामिक्स है।

(अदिति)

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